प्रतिहार राजपूतों का इतिहास
- इन्हें भी देखें: प्रतिहार राजवंश का इतिहस और शाखाएँ
प्रतिहार राजपूत , गुर्जर देश पे शासन करने के कारण गुर्जर प्रतिहार कहलाये ! एवं प्रतिहार एक उपाधि थी जो प्रतिहार राजाओं ने द्वारपाल की भूमिका निभाने के कारण धारण की थी ।
उत्पत्ति[सम्पादन]
प्रतिहार गुर्जर वंश की उत्पत्ति पर चर्चा करने वाला सबसे पहला प्रतिहार शिलालेख बाउका परिहार 837 CE का जोधपुर शिलालेख है, यह भी वंश का नाम बताता है, जैसा कि परिहार लक्ष्मण से पूर्वजों का दावा करते हैं, जिन्होंने अपने भाई रामचंद्र के लिए द्वारपाल के रूप में काम किया था। इसका चौथा श्लोक कहता है, रामभद्र के बहुत भाई ने द्वारपाल की तरह कर्तव्य निभाया, इस शानदार वंश को प्रतिहार के नाम से जाना जाने लगा।[१] [२] अग्निवंश के अनुसार पृथ्वीराज रासो की बाद की पांडुलिपियों में दी गई कथा', प्रतिहार और तीन अन्य राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति माउंट आबू में अग्नि-कुंड (अग्निकुंड सिद्धांत) से हुई थी।[३] मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पढ़ियार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण माने जाते हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। कुछ जगहों पर इन्हें अग्निवंशी राजपूूूत बताया गया है, पर ये मूलतः सूर्यवंशी हैं। पृथ्वीराज विजय, हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व (एक) मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में परिहार वंश को सूर्यवंशी ही लिखा गया है| लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे, उन्ही के वंशज परिहार राजपूत हैं । इस वंश की 126वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे। जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था। इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जरात्रा राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हें सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी।
लेकिन नागभट्ट कुद्ध होकर गया और तीन हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली। इसके बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800) उल्लेखनीय है, जिसने परिहार साम्राज्य का विस्तार किया।
उज्जैन के शासन भण्डि को पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया। उस समय भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थी। परिहार साम्राज्य-उज्जैन राजा वत्सराज, 2 पाल साम्राज्य-गौड़ बंगाल राजा धर्मपाल, 3 राष्ट्रकूट साम्राज्य-दक्षिण भारत राजा धुरव ।
अंततः वत्सराज ने पाल धर्मपाल पर आक्रमण कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। लेकिन ई. 800 में धुरव और धर्मपाल की संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर पालों का अधिकार हो गया।
लेकिन उसके पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया। उसने कन्नौज पर आक्रमण उसे पालों से छीन लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर नहीं जमाने दिया। नागभट्ट का समय उत्तम शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। अजमेर का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व काल में राजपूत योद्धा पुष्पक सरोवर पर वीर पूजा के रूप में नाहड़राव नागभट्ट की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे। उसकी उपाधि “परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी।
नागभट्ट के पुत्र रामभद्र ने साम्राज्य सुरक्षित रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध मिहिर भोज साम्राट बना, जिसका शासनकाल 836 से 885 माना जाता है। सिंहासन पर बैठते ही भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्तदुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया।
व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। भोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है। इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। अस्तु भोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप राजधानियां तथा ग्वालियर को सह राजधानी बनाया।
प्रतिहारों का नागभट्ट के समय से ही एक राज्यकुल संघ था, जिसमें कई राजपूत राजें शामिल थे। पर मिहिर भोज के समय बुंदेलखण्ड और कालिजर मण्डल पर चंदलों ने अधिकार जमा रखा था। भोज का प्रस्ताव था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने,
जिससे सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका जा सके। पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए।
अंततः मिहिर भोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और इस क्षेत्र के चंदेलों को हरा दिया।
मिहिर भोज परम देश भक्त था उसने प्रण किया था कि उसके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उसने सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे।
इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय मिहिर भोज को जाता है। मिहिर भोज के शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ कन्नौज, पेज 246 में, उत्तर पश्चिम में सतलज नदी तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक, दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूताने के अधिक भाग तक विस्तृत थी। पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूताने के अधिक भाग तक विस्तृत थी।
सुलेमान अरब में लिखा है, कि मिहिर भोज अरब लोगों का सभी अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है।
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- ↑ K.M. Munshi Diamond Volume, II, p. 11
- ↑ Epigraphia Indica, XVIII, pp. 87
- ↑ dhanapala and his times: a socio political study based on his works