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भूपेंद्रनाथ सान्याल

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भूपेंद्रनाथ सान्याल
जन्म 20 जनवरी 1877
साधना पारा ग्राम, बंगाल, ब्रिटिश राज
मृत्यु 18 जनवरी 1962(1962-01-18) (उम्र 84)
गुरु/शिक्षक श्यामाचरण लाहिड़ी
दर्शन क्रिया योग
धर्म हिन्दू
दर्शन क्रिया योग

भूपेंद्रनाथ सान्याल (1877-1962) ने बंगाली में भगवद गीता पर कई आध्यात्मिक पुस्तकें और टीकाएँ लिखीं।[१] उन्होंने 1924 में भागलपुर के बौंसी में गुरुधाम नामक एक आश्रम की स्थापना की। भागलपुर क्रिया योग के प्रसार का केंद्र बन गया। कालान्तर में 1945 में यहाँ शांति निकेतन की तर्ज पर 'श्री श्यामाचरण गुरूधाम संस्कृत वेद विद्यापीठ' का निर्माण किया गया।[२] योगीराज ने एक अन्य आश्रम उड़ीसा के जगन्नाथ पूरी में वर्ष 1929 में भी स्थापित की।

भूपेंद्रनाथ सान्याल, जिन्हें बाद में सान्याल महाशय के नाम से जाना गया, का जन्म 20 जनवरी, 1877[३] को भारत के पश्चिम बंगाल में नदिया जिले के साधना पारा गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम कैलाशचन्द्र सान्याल और माता का भुवनेश्वरी देवी था।[४]

उनकी प्रतिभा और कौशल, उनके शुद्ध और बेदाग चरित्र और उनकी आंतरिक आध्यात्मिक संपदा के कारण, उन्होंने बाद में नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ ठाकुर से मित्रता की। साथ में उन्होंने प्रसिद्ध शांति निकेतन की स्थापना की । उन्होंने 1902 से 1909 तक शिक्षकों के रूप में एक साथ काम किया। बाद में रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने भूपेंद्रनाथ को शांति निकेतन के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के लिए कहा।[५] उन्होंने भागलपुर के पास मंदार में अपना स्वयं का ब्रह्म विद्यालय शुरू करने के लिए शांति निकेतन छोड़ दिया। बाद के जीवन में, उन्होंने योग को अपना लिया और योगाचार्य बन गए।[६]

सान्याल महाशय को सोलह वर्ष की आयु में महान गुरु लाहिड़ी महाशय द्वारा क्रिया योग में दीक्षित किया गया था। महावतार बाबाजी ने महाशय लाहिरी को क्रिया योग में दीक्षित किया था और लाहिरी को निर्देश दिया कि वह दूसरों को दीक्षित करना आरंभ करें। श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्म भी बंगाल के नदिया जिले में ही हुआ था यद्यपि उनका ग्राम नदिया जिले की प्राचीन राजधानी कृष्णनगर के निकट धरणी में था। नदिया श्री चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थान के रूप में भी जाना जाता है।

सान्याल क्रिया योग के अभ्यास के लिए इतने ईमानदार, समर्पित और प्रतिबद्ध थे कि वे जल्दी ही उच्च तकनीकों और अनुभवों की ओर बढ़ गए। इसने उनके गुरुदेव को दूसरों को क्रिया योग में दीक्षा देने की अनुमति देने के लिए प्रेरित किया।[७]

सान्याल लाहिरी महाशय द्वारा क्रिया योग की शिक्षा देने के लिये अधिकृत शिष्यों में शामिल थे।

इनके अलावा लाहिरी महाशय के कनिष्ठ पुत्र श्री तीनकोरी लाहिरी, स्वामी श्री युक्तेशवर गिरी, श्री पंचानन भट्टाचार्य, स्वामी प्रणवानन्द, स्वामी केबलानन्द और स्वामी केशबानन्द को भी लाहिरी महाशय ने क्रिया योग में दीक्षा देने का अधिकार दिया था। [८]

पुस्तकें[सम्पादन]

अपने गुरु लाहिड़ी महाशय द्वारा रचित भगवद्गीताभाष्य का आध्यात्मिक व्याख्या के रूप में हिंदी अनुवाद श्री भूपेद्रनाथ सान्याल ने प्रस्तुत किया है।इसमें उनके गुरु श्यामाचरण लाहिड़ी की टिप्पणी भी है। इनके द्वारा लिखित करीब 200 पुस्तकों में से कुछ अन्य पुस्तकें विल्वदल, आत्मानुसंधान और आत्मानुभूति, दिनचर्या,अभ्यास योग,मोक्षसाधना या योगाभ्यास,नित्यकृत्य,दीक्षा और गुरु तत्व इत्यादि हैं। इन पुस्तकों कों वेद विद्यापीठ की पुस्तकालय में रखा गया है ।

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]

यूट्यूब:-

[भूपेन्द्रनाथ सान्याल | Part 01]

[भूपेन्द्रनाथ सान्याल | Part 02]

[भूपेन्द्रनाथ सान्याल | Part 03]

सन्दर्भ[सम्पादन]


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