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महाबली जोगराज सिंह गुर्जर

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इस लेख की निष्पक्षता विवादित है।
अपक्षपाती इतिहासकारों के अनुसार इस किंवदंती का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है - केवल कुछ गुर्जर / जाट लेखकों के बीच यह कथा लोकप्रिय है -- इसे इतिहास के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए.
कृपया इसके वार्ता पृष्ठ पर चर्चा देखें।
जोगराज सिंह गुर्जर
उत्तर भारत का भीम
पूरा नाम महाबली दादावीर जोगराज सिंह गुर्जर
पिता मानसिंह पंवार गुर्जर
धर्म सनातन धर्म

सर्वखाप सेना के प्रधान सेनापति महाबली दादावीर जोगराज पंवार जी महाराज

परिचय[सम्पादन]

हरियाणा के प्रसिद्ध इतिहासकार स्वामी ओमानन्द जी के एक आलेख में तैमूर के युद्ध का वर्णन उन्होंने इस प्रकार किया है वीर गुर्जर जाति में पीछे भी अनेक वीर हुए हैं जिनमें जोगराज गुर्जर जिला सहारनपुर बहुत ही प्रसिद्ध हुआ है। वह हरियाणें की सर्वखाप पंचायत का मुख्य सेनापति था। वह बड़ा बलवान और वीर था। उसका शरीर अत्यंत सुन्दर और सुदृढ़ था। उसमें 64 धड़ी (320 किलो) अर्थात 8 मण पक्का भार था। इसने ज्वालापुर के निकट पथरी रणक्षेत्र में तैमूरलंग से भयंकर युद्ध किया था।


जोगराज खूबड़ परमार वंश गुर्जर जाति के यौद्धेय थे| इन्होने मानसिंह गुर्जर के यहां सन 1375 ईस्वी में हरिद्वार के पास गाँव कुंजा सुन्हटी में अवतार लिया था| बाद में यह गाँव मुगलों ने उजाड़ दिया तो वीर जोगराज सिंह के वंशज उस गांव से चल लंढोरा (जिला सहारनपुर) में आकर आबाद हो गये, जहां कालांतर में लंढोरा गुर्जर राज्य की स्थापना हुई। ये अपने समय के उत्तर भारत के भीम कहे जाते थे, इनका कद 7 फुट 9 इंच और वजन 8 मन (320 किलो) था। ये विख्यात पहलवान थेइनकी दैनिक खुराक 4 सेर अन्न, सब्बी-फल, 1 सेर गऊ का घी और 20 सेर गऊ का दूध था।


खापसेना की महिला-विंग की 5 सेनापति[सम्पादन]

वीरांगना रामप्यारी गुर्जरी[१]
दादीराणी हरदेई जाट
दादीराणी देवीकौर
दादीराणी चन्द्रो ब्राह्मण
दादीराणी रामदेई त्यागी

इन सब ने देशरक्षा के लिए शत्रु से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की।

जोगराज के नेतृत्व में बनी 40000 हजार ग्रामीण महिलाओं को युद्ध विद्या का प्रशिक्षण व् निरीक्षण जा जिम्मा रामप्यारी चौहान गुर्जरी व् इनकी चार सहकर्मियों को मिला था। इन 40000 महिलाओं में गुर्जर, जाट, अहीर, हरिजन, वाल्मीकि, त्यागी, तथा अन्य वीर जातियों की वीरांगनाएं थी। इस महिला सेना का गठन इन पांचों ने मिलकर ठीक उसी ढंग से किया था जिस ढंग से सेना का था। प्रत्येक गांव के युवक-युवतियां अपने नेता के संरक्षण में प्रतिदिन शाम को गांव के अखाड़े पर एकत्र हो जाया करते थे और व्यायाम, मल्ल विद्या तथा युद्ध विद्या का अभ्यास किया करते थे। गांव के पश्चात खाप की सेना विशेष पर्वों व आयोजन पर अपने कौशल सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित किया करती थी। सर्व खाप पंचायत के सैनिक प्रदर्शन यदा-कदा अथवा वार्षिक विशेष संकट काल में होते रहते थे| लेकिन संकट का सामना करने को सदैव तैयार रहते थे। इसी प्रकार रामप्यारी गुर्जरी व् अन्य चारों महिला सेनापतियों की महिला सेना पुरूषों की भांति सदैव तैयार रहती थी। ये महिलाएं पुरूषों के साथ तैमूर के साथ युद्ध में कन्धे से कन्धा मिला कर लड़ी। महिला सेनापतियों खासकर दादी वीरांगना रामप्यारी गुर्जरी के रण-कौशल को देखकर तैमूर दांतों के नीचे अंगुली दबा गया था। उसने अपने जीवन में ऐसी कोमल अंगों वाली, बारीक आवाज वाली बीस वर्ष की महिला को इस प्रकार 40 हजार औरतों की सेना का मार्गदर्शन करते हुए ना कभी नहीं देखा था और ना सुना था। तैमूर इनकी वीरता देखकर वह घबरा उठा था।

सेनापतियों व उप सेनापतियों का निर्वाचन[सम्पादन]

प्रधान व् उप-प्रधान सेनापतियों के नीचे पांच सेनापति चुने गए

सेनापतियों का निर्वाचन
गजेसिंह जाट गठवाला
तुहीराम गुर्जर
मेदा रवा
सरजू ब्राह्मण
उमरा तगा (त्यागी)
दुर्जनपाल अहीर
उपसेनापतियों का निर्वाचन
मामचन्द गुर्जर (जोगराज सिंह का बांया हाथ)
धारी गडरिया (धाड़ी)
भौन्दू सैनी
हुल्ला नाई
भाना जुलाहा (हरिजन)
अमनसिंह पुंडीर गुर्जर
नत्थू पार्डर गुर्जर
दुल्ला (धाड़ी)
कुन्दन जाट

सहायक सेनापति: भिन्न-भिन्न जातियों के 20 सहायक सेनापति चुने गये वीर कवि: प्रचण्ड विद्वान् चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) को वीर कवि नियुक्त किया गया जिसने तैमूर के साथ युद्धों की घटनाओं का आंखों देखा इतिहास लिखा था।

जोगराजसिंह गुर्जर के ओजस्वी भाषण[सम्पादन]

प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर के ओजस्वी भाषण के कुछ अंश: “वीरो! भगवान् कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जो उपदेश दिया था उस पर अमल करो। हमारे लिए स्वर्ग (मोक्ष) का द्वार खुला है। ऋषि मुनि योग साधना से जो मोक्ष पद प्राप्त करते हैं, उसी पद को वीर यौद्धेय रणभूमि में बलिदान देकर प्राप्त कर लेता है। भारत माता की रक्षा हेतु तैयार हो जाओ। देश को बचाओ अथवा बलिदान हो जाओ, संसार तुम्हारा यशोगान करेगा। आपने मुझे नेता चुना है, प्राण रहते-रहते पग पीछे नहीं हटाऊंगा। पंचायत को प्रणाम करता हूँ तथा प्रतिज्ञा करता हूँ कि अन्तिम श्वास तक भारत भूमि की रक्षा करूंगा। हमारा देश तैमूर के आक्रमणों तथा अत्याचारों से तिलमिला उठा है। वीरो! उठो, अब देर मत करो। शत्रु सेना से युद्ध करके देश से बाहर निकाल दो।”

“मैंने अपनी सारी आयु में अनेक धाड़े मारे हैं। आपके सम्मान देने से मेरा खून उबल उठा है। मैं वीरों के सम्मुख प्रण करता हूं कि देश की रक्षा के लिए अपना खून बहा दूंगा तथा सर्वखाप के पवित्र झण्डे को नीचे नहीं होने दूंगा। मैंने अनेक युद्धों में भाग लिया है तथा इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दूंगा।” यह कहकर उसने अपनी जांघ से खून निकालकर खून के छींटे दिये। और म्यान से बाहर अपनी तलवार निकालकर कहा “यह शत्रु का खून पीयेगी और म्यान में नहीं जायेगी।” इस वीर यौद्धेय धूला के भाषण से पंचायती सेना दल में जोश एवं साहस की लहर दौड़ गई और सबने जोर-जोर से मातृभूमि के नारे लगाये। "

यह भाषण सुनकर वीरता की लहर दौड़ गई। 80,000 वीरों तथा 40,000 वीरांगनाओं ने अपनी तलवारों को चूमकर प्रण किया कि हे सेनापति हम प्राण रहते-रहते आपकी आज्ञाओं का पालन करके देश रक्षा हेतु बलिदान हो जायेंगे।


सूरत-ए-मैदान-ए-जंग[सम्पादन]

पंजाब को उजाड़ कर और दिल्ली को तबाह करके अब तैमूर लंग ने अपनी टिडडी दल की तरह चलने वाली फौज का मुंह जाट-गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र मेरठ-हरिद्वार की तरफ कर दिया। यहां महाबली जोगराजसिंह पंवार गुर्जर के नेतृत्व में सेना इस राक्षस के मान मर्दन के लिए पहले से ही विधिवत तैयार हो चुकी थी।

मेरठ युद्ध[सम्पादन]

तैमूर ने अपनी बड़ी संख्यक एवं शक्तिशाली सेना, जिसके पास आधुनिक शस्त्र थे, इस क्षेत्र में तैमूरी सेना को सेना ने दम नहीं लेने दिया। दिन भर युद्ध होते रहते थे। रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर सेना गुरिल्ला धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थी। वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं। शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं। आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे। इस प्रकार गुरिल्ला मार, रसद पर हमलों व् रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी। इससे तंग आकर व् दरकिनार करने की कोशिश करते हुए तैमूर यहां से हरिद्वार की ओर बढ़ा।

हरिद्वार युद्ध[सम्पादन]

मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तथा सहारनपुर तक पंचायती सेनाओं ने तैमूरी सेना से भयंकर युद्ध किए तथा इस क्षेत्र में तैमूरी सेना के पांव न जमने दिये। प्रधान एवं उपप्रधान और प्रत्येक सेनापति अपनी सेना का सुचारू रूप से संचालन करते रहे। एक तरफ भारत माता की रक्षा करने वाले धर्मयुद्ध करने वाले, आत्म रक्षा के लिए लड़ने वाले रणबांकुरे यौद्धेय और वीरांगनाओं की सेना जो अपने प्रधान सेनापति के नेतृत्व में तैयार थी और दूसरी तरफ राक्षस रूपी तैमूर की खूनी और इंसानियत का सर्वनाश करने वाली लुटेरों की भीड़ रूपी सेना थी। उस से दो-दो हाथ करने को, भूखे भेडिए की तरह भयंकर रौद्र रूप धारण किए हुए थी जोगराज की वीर सेना। बहादुर धर्म रक्षक सेना राक्षस तैमूर का मानमर्दन करने के लिए प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों ओर से रण की धोषणा की प्रतीक्षा किए बिना घोर घमासान युद्ध तैमूर ने ही शुरू कर दिया। बस फिर क्या था। किसी विश्वमहायुद्ध सा विशाल व् भंयकर दृश्य पथरी रणक्षेत्र में प्रगट हो गया। कई दिन घोर घामासान युद्ध हुआ। हरिद्वार से 5 कोस दक्षिण में तुगलुकपुर-पथरीगढ़ (ज्वालापुर) में पंचायती सेना ने तैमूरी सेना के साथ तीन घमासान युद्ध किए:

सेना के 25,000 वीर यौद्धेय सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। उसी समय प्रधान सेनापति जोगराज सिंह ने अपने 22000 मल्ल यौद्धेयओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला। जोगराजसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीरसिंह को उठाकर यथास्थान पहुंचाया। परन्तु कुछ घण्टे बाद यह वीर यौद्धेय वीरगति को प्राप्त हो गया। जोगराजसिंह को इस यौद्धेय की वीरगति से बड़ा धक्का लगा।

युद्ध के कई मोर्चों पर वीरता से आगे बढ़ते हुए एक जगह हरिद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी वीर यौद्धेय ने 190 अति-बहादुर सैनिकों के साथ धावा बोल दिया। शत्रु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्षा हेतु वीरगति को प्राप्त हो गये।

तीसरे युद्ध में प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर यौद्धेयओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। तथापि जोगराज सिंह स्वयं भी बुरी तरह जख्मी हो चूका था, परन्तु 45 संगीन घाव लगने पर भी अन्त तक होश में रह कर सेना का भली भांति संचालन करता रहा और वह वीर होश में रहा। पंचायती सेना के वीर सैनिकों ने तैमूर एवं उसके सैनिकों को हरिद्वार के पवित्र गंगा घाट (हर की पौड़ी) तक नहीं जाने दिया। तैमूर हरिद्वार से पहाड़ी क्षेत्र के रास्ते अम्बाला की ओर भागा। उस भागती हुई तैमूरी सेना का वीर सैनिकों ने अम्बाला तक पीछा करके उसे अपने देश हरयाणा से बाहर खदेड़ दिया तथा समस्त हरियाणा व हरिद्वार तक के क्षेत्रों को सर्वनाश से बचा लिया। [२]

वीरगति को प्राप्ति[सम्पादन]

वीर सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ दिल्ली दरवाज़े के निकट स्वर्ग लोक को प्राप्त हुये। जोगराज की मृत्यु कालांतर में रहस्य बनी रही, परन्तु एक लोकमत कहता है कि वीर यौद्धेय प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर युद्ध के पश्चात् ऋषिकेश के जंगल में स्वर्गवासी हुये थे।

वीर यौद्धेय हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह यौद्धेय अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।[३]

इस युद्ध में केवल 5 सेनापति बचे थे तथा अन्य सब देशरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुये।

इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से हमारे वीर यौद्धेयओं ने 1,60,000 को मौत के घाट उतार दिया था और तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया।

जोगराज सेना के 35000 वीर एवं वीरांगनाएं देश के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे।

इस युद्ध के बाद वीर जोगराज सिंह का क्या बना यह इतिहास के अन्धकारमय भू-गर्भ में छिपा पड़ा है। परन्तु आगे चल कर जोगराज सिंह के वंशजों ने लंढोरा जिला सहारनपुर में गुर्जर रियासत की स्थापना की जिसका विस्तार सहारनपुर से करनाल तक हुआ| 19वी सदी तक सहारनपुर को गुर्जरगढ कहा जाता था। हरिद्वार की पौड़ी तले होने की वजह से गुर्जर रियासत के वंशज हरिद्वारी राजा भी कहलाते थे। [४] [५][६]

References[सम्पादन]

Mangal Sen Jindal (1992): "History of Origin of Some Clans in India" Page-48

Cothburn O'Neal. Conquest of Tamerlane.(Avon, 1952. ASIN: B000PM1IG8),29 articles of famous Historian of Haryana |last= Omanand |first=Swami


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