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वीरांगना मैना गुर्जरी

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इस लेख की निष्पक्षता विवादित है।
अपक्षपाती इतिहासकारों के अनुसार इस किंवदंती का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है - केवल कुछ गुर्जर / जाट लेखकों के बीच यह कथा लोकप्रिय है -- इसे इतिहास के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए.
कृपया इसके वार्ता पृष्ठ पर चर्चा देखें।
मैना गुर्जरी
जन्म गुजरात
धर्म हिन्दु

परिचय[सम्पादन]

मैना गुर्जर एक बहादुर गुजराती महिला थी जो गुजरात के एक गुर्जर परिवार की थी। मैना गुर्जरी के नाम से गुजरात की भूमि की एक महिला के गुण और बहादुरी का पता चलता है। आज के स्वतंत्र भारत में केवल मैना गुर्जरी का एक अकेला गुजराती नाटक है जो राष्ट्रपति भवन में मंचन किया जाता हो।[१]

तुर्क सुल्तान से युद्घ[सम्पादन]

तुर्क सुलतान मैना गुर्जरी के पिता को मैना से शादी करने का आमंत्रण भेजता है। जवाब में ना सुनके सुलतान को गुस्सा आता है और इस बात का बदला लेने के लिए वो मैना गुजरी के पूरे गांव पर हमला कर देता है। तुर्क सुलतान और मैना गुर्जरी के गांव वालों की लड़ाई होने लगी। मीना गुर्जरी के भाईयों ने बढ़ चढ़ कर तुर्को पर लाठी बरछे आदि से वर्षा की। महिलाएं भी पीछे नहीं रही। मीना गुर्जरी जिसके लिए खून की वर्षा हो रही अपने को संयत न रख सकी। उसका खून खौल उठा उसने अपनी तलवार म्यान से खींच ली और तुर्क शहजादों को ललकारा। चण्डी का रूप धारण करके मीना ने तुर्को के अनेक सिपाही व सिपहसालार यमलोक पहुंचा दिए। किसी को यह अहसास नहीं था कि यह युद्ध विकराल रूप धारण कर लेगा। शहजादे के मुकाबते ग्रामीण हथियार बंद भी नहीं थे। लेकिन गुर्जरों ने बड़ी वीरता से तुर्क शहजादे का मान मर्दन किया। मीना गुर्जररी के मन पर इस युद्ध में शहीद हुए अपने गुर्जर भाईयों के खून का बदला लेने की धुन सवार हो गई थी। इसलिए वह अन्त तक लड़ती रही और उसने ऐसी वीरता तथा युद्ध कौशल दिखाया कि सब हैरान रह गए वह आज इस धर्मयुद्ध क्षेत्र से जीवित लौटना नहीं चाहती थी वह भी अब भाई बन्धुओं की चिता के साथ अपनी चिता बनवाना चाहती थी वह अपने ऊपर कलंक नहीं चाहती थी कि उसके बचाने के लिए स्व बन्धुओं का इतना बलिदान हुआ है। वह लड़ती-2 चक्कर खाकर गिर पड़ी और उसने अपने कलेजे में भी खंजर भौंक कर शहीदों की लाइन में मिल गई। लेकिन उसने अपने शरीर पर कामुक तुर्क शहजादे का स्पर्श तक नहीं होने दिया। तुर्क वंहा से जो बचे थे दुम दबा कर भाग गए। मैना गुर्जरी की बहादुरी की चर्चा केवल गुजरात व गुर्जर देश में नहीं सारे भारत में फैल गई। आज तक लोक गीतों और लोक कथाओं में मैना गुर्जरी का साखा गाया जाता है। प्रायः कहा जाता है कि वास्तविकता भी है कि सुन्दर महिला बहुत नाजुक, कमसिन तथा शारीरिक तौर पर बलवान नहीं होती। मगर मीना गुर्जरी जितनी अनिन्दय सुन्दरी थी उतनी ही वीरांगना भी थी। मीना गुजरी की वीरता का वृतान्त है जो आज लोक गीतों और लोक कथाओं में प्रचलित है। [२]

मैना गुर्जरी पर आधारित फिल्म[सम्पादन]

1975 में Meena Gurjari नाम से फिल्म बनी जो उस समय काफी प्रचलित हुई और उसके बाद कई मीना गुजरी की बहादुरी के ऊपर भारतीय सिनेमा में कई फिल्मे बनी। यही कारण है कि वह लोक जीवन में लोकप्रिय हो गई है और मर कर भी अमर हो गई है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

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