महाराजाधिराज अजयपाल भड़ाना
महाराजाधिराज अजयपाल भड़ाना | |
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भड़ाना देश का सम्राट
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शासनकाल | 11वीं शताब्दी |
राज्याभिषेक | 1150 |
पूर्वाधिकारी | कुमारपाल भड़ाना प्रथम |
उत्तराधिकारी | महाराजा हरिपाल भड़ाना |
अजयपाल भड़ाना 11 वीं शताब्दी में एक विस्तृत क्षेत्र पर शासन करते थे। इनके राज्य की पूर्वी सीमा पर ग्वालियर राज्य तथा पूर्वोत्तर दिशा में कन्नौज राज्य तक थी व अन्य सीमाएँ शाकुम्भरी के चौहान गुर्जरो के राज्य से मिलती थी।[१] यह क्षेत्र इनके राजनीतिक आधिपत्य के कारण भड़ाना देश अथवा भड़ानक देश कहलाता था। इनके राज्य मे 1 लाख 25 हजार गाँव आते थे। समकालीन चौहान गुर्जर राज्य में भी इतने गाँव थे। इनके राज्य की राजधानी श्रीपथनगर (वर्तमान मे बयाना) थी। [२][३]
इतिहास[सम्पादन]
अजय पाल एक शक्तिशाली एवं सम्प्रभुता सम्पन्न शासक था और वह महाराजाधिराज की उपाधि धारण करते था। उनके शासनकाल की जानकारी हमें उनकी महाबन प्रशस्ति (सन् 1150 ई0) से ज्ञात होती है। उनकी महाराजाधिराज की उपाधि से ऐसा प्रतीत होता है कि उनके अधीन अनेक छोटे राजा थे और वे एक विस्तृत क्षेत्र पर शासन करते थे।
12वीं बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भड़ानकों का शाकुम्भरी के चौहान गुर्जर वंश से राजनीतिक संघर्ष चला। उस समय उत्तर भारत में बुन्देलखण्ड के चन्देल गुर्जर , मालवा के परमार गुर्जर, गुजरात के चालूक्य गुर्जर एवं भड़ाने उत्तर भारत में प्रमुख राजनीतिक शक्ति थे। चौहान गुर्जरो का इन सभी से युद्ध हुआ परन्तु सम्भवतः सबसे पहले उनका युद्ध भड़ानकों के साथ ही हुआ। चौहान दिग्विजय की भावना से प्रेरित थे और उत्तर भारत में एक साम्राज्य का निर्माण करना चाहते थे। इसलिए उनका उत्तर भारत की अन्य राजनीतिक शक्तियों के साथ युद्ध अवश्यंभावी था। चौहानों ने भड़ाना देश पर कम से कम दो बार आक्रमण किया। भड़ानकों पर प्रथम आक्रमण के विषय में हमें चौहान गुर्जर राजा सोमेश्वर के सन् 1169 ई0 के ‘बिजौलिया अभिलेख’ से पता चलता है। इस समय भड़ाना देश पर कुमार पाल प्रथम अथवा उसके उत्तराधिकारी अजय पाल का शासन था।[४] अजयपाल के बाद महाराजा हरिपाल भड़ाना राज्य का उत्तराधिकारी हुआ, एक अभिलेख के अनुसार 1170 ई0 में शासन कर रहा था।[५][६]
इन्हे भी देखे[सम्पादन]
- गुर्जर प्रतिहार
- मैत्रक राजवंश
- चपराणा राजवंश
- कुषाण राजवंश
- हिंदु शाही खटाणा
- चालुक्य राजवंश
- चौहान वंश
- नांगडी राजवंश
संदर्भ[सम्पादन]
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- ↑ Catalogue of MSS in Pattan Bhandara I.G.Os, p. 156, Verse 22 as quoted by Dashrath Sharma.
- ↑ Page no. 101-102, Early Chauhan Dynasty, Dashrath Sharma, Jodhpur, 1992.
- ↑ Ibid, page 102-103, Dashrath Sharma.
- ↑ See his Mohaban Prasasti of the year, V. 1207, Epigraphica India pp. 289ff and II 276ff.
- ↑ Epigraphica Indica Vol. II page 275.
- ↑ Singhi Jain Granth Mala edition as quoted by Dashrath Sharma, Page - 28.