महाराजा बिजली पासी
महाराजा बिजली पासी लखनऊ के बिजनौर गढ़ के राजा थे ,जो राज्य 12 सदी के अंत में अवध के एक बड़े भू-भाग पर स्थापित था । सरकारी अभिलेखों के हिसाब से ,इनके अवध में 12 किले थे । [१]
महाराजा बिजली पासी | |
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अवध प्रान्त, (1150-1184)ईस्वी |
महाराजा बिजली पासी बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अवध प्रान्त के शासक थे । इतिहासकारो का मत है राजपासियो का राजकाल (९४५-१२०७) ईस्वी तक माना है,राजा बिजली का राज्य काल (११५०-११८४)ई. गांजर युद्ध तक माना गया है,राजा बिजली सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नाथांवन के नाम पर नथवागढ़ की स्थापना की। यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था ।
राजा बिजली पासी और 12 किले[सम्पादन]
महाराजा बिजली पासी ने कुल 12 किले राज्य विस्तार के कारण बनवाये थे।
महाराजा बिजली पासी और 12 किले | |
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1- नटवागढ़ का किला 2- बिजनौरगढ़ का किला 3- महाराजा बिजली पासी किला 4- माती किला 5- परवर पश्चिम 6- कल्ली पश्चिम 7- पुराना किला 8-औरावां किला 9- दादूपुर किला 10- भटगांव किला 11- ऐनकिला 12- पिपरसेंड किला उत्तर में पुराना किला, दक्षिणी में नींवाढक जंगल सीमा सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। इसके मध्य में महाराजा बिजली पासी का केन्द्रीय किला सुरक्षित था। महाराजा बिजली पासी के अंतर्गत 94,829 एकड़ भूमि अथवा 184 वर्ग मील का भू-भाग सम्मिलित था [२] [३]
राजा जयचंद[सम्पादन]
जयचन्द कन्नौज (1170-1194) साम्राज्य के राजा थे। वो गहरवार राजवंश से थे जिसे अब गढ़वाल राजवंश के नाम से जाना जाता है।[४] जयचंद अपनी साम्राज्य की विस्तारवादी सोच के कारण वो अवध के बड़े भू-भाग को जीतना चाहता था ,जहाँ पासी राजाओ के स्वतंत्र राज्य थे जिनमें से शक्तिशाली महाराजा बिजली पासी थे जो 12 किलो के मालिक थे ,जयचंद ने भारी कर की मांग रखते हुवे,उनकी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा था, जिससे राजा बिजली बल पूर्वक मना कर देते है जिससे कुपित होकर जयचंद ने दो बार अपनी सेना राजा बिजली पासी से युद्ध करने के लिए भेजा और दोनों ही युद्धों में राजा जयचंद को करारी शिकस्त समाना करना पड़ा जिससे जयचंद को भारी छति पहुंची बाद में उसने महोबा से निष्काशित आल्हा ऊदल को अपने तरफ मिलाकर ,जयचंद ने गांजर युद्ध अभियान छेड़ दिया था ,जिसका उल्लेख आल्हा खंड में मिलता है ।
गांजर युद्ध अभियान[सम्पादन]
गांजर का युद्ध अवध के इतिहास में अपना अलग पहचान बनाये हुवे है जो तराइन का युद्ध और चन्द्रवार के युद्धों से पहले लड़ी गयी थी । गांजर यानी अवध का वो भाग था जहाँ के ज्यादातर पासी राजा और अन्य राजा स्वतंत्र राज करते थे जिसे जयचंद जीतना चाहता था क्योंकि ये क्षेत्र मिलने से उसकी ताकत में बृद्धि होती । इसलये जब उसके प्रयास विफल हो गए तो वो उसने महोबा से निष्काशित आल्हा ऊदल जो मशहूर योद्धा थे अपना सेनापति बनाया था क्योंकि जयचन्द की बुरी हार ने उसे आगबबूला कर दिया था ये सारी लड़ाईया एक दूसरे की अधीनता को लेकर हुऐ बाद में जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली महोबा बाके शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली पासी के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया और गांजर युद्ध छेड़ा था ।
गांजर-भांगर युद्ध संग्राम[सम्पादन]
जयचन्द ने सेना तैयार करवाई जिसकी जिम्मेदारी अब आल्हा ऊदल को दी थी । आल्हा ऊदल कन्नौज की सेनायें लेकर अवध आये और उनका पहला पड़ाव लक्ष्मण टीला था। लक्ष्मण टीला सुरक्षा के दृष्टि से सही नहीं था,इसलिए बाद में पहाड़ नगर टिकरिया में अपना पड़ाव डाला [५]
जिस समय महाराजा बिजली पासी अपने पड़ोसी मित्र राजा काकोरगढ़ के किले में आवश्यक कार्य से गये हुए थे। उसी समय मौका पाकर आल्हा ऊदल ने अपना एक दूत इस संदेश के साथ भेजा कि राजा हमें अधिक धनराशि देकर हमारी अधीनता स्वीकार करें। यह सूचना तेजी से संदेश वाहक ने महाराजा बिजली पासी को काकोरगढ़ किले में दी उसी समय सातन पट्टी के राजा सातन पासी भी किसी विचार विमर्श के लिए काकोरगढ़ आये थे। संदेश पाकर महाराजा बिजली पासी उनके इस चुनौती स्वीकार किया और अधीनता में रहना अपना अपमान समझा ,और उन्होंने उसका मुंह तोड जवाब भिजवाया कि महाराजा बिजली पासी न तो किसी राज्य के अधीन रहकर राज्य करते हैं और न ही किसी को अपनी आय का एक अंश भी देने को तैयार हैं। जब आल्हा ऊदल का दूत यह संदेश लेकर पहुंचा उसे सुनकर आल्हा ऊदल झुंझलाकर आग बबूला हो गये और अपनी सेनाएं गांजर में उतार दी। यह खुला मैदान था, यहां पेड़ पौधे नही थे। इस स्थान पर मुकाबला आमने सामने हुआ। यह मैदान इतिहास में गांजर भांगर के नाम से मशहूर है।यह युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक चला। [६] इस युद्ध में सातन कोट के राजा सातन पासी ने भी पूरी भागीदारी की थी। युद्ध बड़ा भयानक था। इसमें अनेक वीर योद्धाओं का नरसंहार हुआ। गांजर भूमि पर तलवार और खून ही खून था इसलिए इसे लौह गांजर भी कहा जाता है। वर्तमान में इस स्थान पर गंजरिया फार्म है। इस घमासान युद्ध में पराक्रमी राजा महाराजा बिजली पासी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । यह समाचार जब पड़ोसी राज्य देवगढ़ के राजा देवमाती को मिला तो वह अपनी फौजों के साथ आल्हा ऊदल पर भूखे शेर की भांति झपट पड़ा। इस युद्ध की भयंकर गर्जन और ललकार सुनकर आल्हा ऊदल भयभीत होकर कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए। परन्तु आल्हा ऊदल के साले जोगा भोगा राजा सातन ने खदेड़ कर मौत के घाट उतार दिया और पड़ोसी राज्य से सच्ची मित्रता तथा पासी समाज के शौर्य का परिचय दिया। महाराजा बिजली पासी के किले के अलावा उनके अधीन 12 किलों का वर्णन इतिहास में बहुत ही सतही ढंग से किया गया है। बिजली पासी ऩे जयचन्द, से युद्ध किया विजयश्री प्राप्त की, और अंत में लोगो ने उन्हें छल से मारा, महाराजा बिजली पासी जो एक संघर्ष शील पासी जाती के थे [७] [८]
सन्दर्भ[सम्पादन]
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- ↑ [१]
- ↑ book= the imperial gazetteer of India volime-2 |Edit=S.william Wilson Hunter |Year=7,may1936 |Page=436 |Url=[२]
- ↑ |websites=http://pasi.in/bijli.php
- ↑ Vincent A. Smith (1 जनवरी 1999). The Early History of India. Atlantic Publishers & Dist. पृ॰ 385–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7156-618-1. http://books.google.com/books?id=8XXGhAL1WKcC&pg=PA385. अभिगमन तिथि: 23 जुलाई 2013.
- ↑ |sourcelink=gazttter of province the oudh |year=1877 |page =354 [३]
- ↑ |लेखक= बद्री नारायण |पुस्तक = उपेछित समुदायों का इतिहास |विषय=गांजर युद्ध |संख्या=181 |url=https://books.google.com/books/about/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A4_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%BE.html?id=4pUQYlepONwC
- ↑ |name=badri narayan |first=badri |last=narayan |{{citebook|title=उपेक्षित समुदायों का आत्म इतिहास |ISBN=81-8143-593-1 | Publish=वाणी प्रकाशन |year=2006 |url=https://books.google.com/books/about/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A4_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%BE.html?id=4pUQYlepONwC
- ↑ [४]