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राजगढ़ी, नौरंगिया

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स्थानीय विवरण[सम्पादन]

राजगढ़ी, भारतीय राज्य बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित प्राचीन ध्वंसावशेष से युक्त एक पुरातात्विक महत्व का स्थान है जहां देवी दुर्गा का एक ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। तिरहुत (प्राचीन नाम - तीरभुक्ति) प्रदेश में महापुण्यप्रद नदी गंडक के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित इस स्थान को स्थानीय निवासी किसी गढ़ (दुर्ग) का अवशेष मानते हैं। यहाँ प्राचीन काल से देवी की उपासना सात पिंडियों के रूप में की जाती रही है जो श्रीमद् देवीभागवत महापुराण और दुर्गा सप्तशती में वर्णित सप्तमातृका का रूप हैं। स्थानीय लोक-परंपरा में इन सप्त मातृकाओं की पूजा सात-बहन के रूप में भी की जाती है। हाल में हीं यहाँ के लोगों के सहयोग से संगमरमर से निर्मित देवी दुर्गा की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

बगहा, पश्चिमी चंपारण के वाल्मीकि टाईगर रिजर्व के जंगलों के बीच अवस्थित यह देवी स्थान पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध रहा है। समीपवर्ती क्षेत्र, वाल्मीकि नगर में कई प्राचीन मन्दिर के अवशेष हैं जो तीसरी से पाँचवीं सदी के गुप्तकाल के हैं। प्रख्यात विद्वान हवालदार प्रसाद त्रिपाठी ने चम्पारण के गंडकी तटवर्ती क्षेत्र के तीर्थ स्थलों की विशद चर्चा की है। उन्होंने इस क्षेत्र से संबंधित अनेकों पुराणों में वर्णित संदर्भो को अपनी पुस्तक बिहार की नदियां' में रेखांकित किया है।[१]

राजगढ़ी में शारदीय एवं चैत्र नवरात्र के अवसर पर अनेक श्रद्धालुओं एवं साधकों का आना यहाँ के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व को दर्शाता है।

इतिहास[सम्पादन]

बगहा से प्राप्त सूर्यादित्य ताम्रपत्र, जो अबतक प्राप्त भारत के प्राचीनतम ताम्रपत्रों में से एक है, से यह ज्ञात होता है कि 10वीं शताब्दी में यह क्षेत्र दर्द-गण्डकी मंडल के अंतर्गत था। संस्कृत शब्द ‘दर्द’ का अर्थ ‘पर्वत’ होता है। वर्तमान समय में बगहा का क्षेत्र हिमालय के तराई क्षेत्र में गंडक के तट पर बसा हुआ है, अतः 10वीं शताब्दी में इस क्षेत्र का ‘दर्द-गण्डकी मंडल’ नाम से अभिहत किया जाना स्वाभाविक है। ताम्रपत्रों में राजा द्वारा यशादित्य नाम के ब्राह्मण को वनपल्ली नामक ग्राम के दान में दिये जाने का उल्लेख है। ‘

राजगढ़ी, भारतीय राज्य बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित प्राचीन ध्वंसावशेष से युक्त एक पुरातात्विक महत्व का स्थान है जहां देवी दुर्गा का एक ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। तिरहुत (प्राचीन नाम - तीरभुक्ति) प्रदेश में महापुण्यप्रद नदी गंडक के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित इस स्थान को स्थानीय निवासी किसी गढ़ (दुर्ग) भी अनेक गाँव स्थित हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि नवरंगिया या यहीं के किसी समीपवर्ती गाँव को राजा सूर्यादित्य ने दान में दिया गया होगा।

बगहा स्थित ब्रह्म-स्थान, पठकौली के पाठक समुदाय की वंशावली द्वारा प्राप्त विवरण के अनुसार 13वीं शताब्दी में इस क्षेत्र का प्रशासन एक स्थानीय ब्राह्मण, भूपाल पाठक (अपभ्रंश नाम भुआल पाठक) द्वारा संचालित होता था।

स्थानीय मान्यता है कि राजगढ़ी की देवी दुर्गा, 13वीं शताब्दी के सामंत, दामोदर पाठक के भाई, ब्रह्मचारी भूपाल पाठक की आराध्य देवी थीं। स्थानीय समुदाय द्वारा राजगढ़ी देवी के स्थान पर देवी दुर्गा के साथ भूपाल पाठक के ‘चौरा’ समाधि की भी पूजा की जाती है।

तेरहवीं शताब्दी के आसपास जब भारत भारत के उत्तरी भाग में दिल्ली सल्तनत का शाशन था, उस समय नेपाल के बुटवल स्थित राजवंश के विरुद्ध यहां के स्थानीय प्रमुख पंडित भूपाल पाठक ब्रह्म एवं उनके बड़े भाई पंडित दामोदर पाठक ब्रह्म ने निशस्त्र विद्रोह किया था। कालांतर में इन पाठक द्वय के वंशज यहां के समीपवर्ती क्षेत्र जा बसे। इन पाठक वंश के लोगों के संरक्षण में रहने वाला यह क्षेत्र बाद में यह अंग्रेज़़ों के नियंत्रण में आ गया और लंबे समय तक उपेक्षित रहने के कारण खंडहर में तबदील हो गया। भारत के स्वतंत्रता के पश्चात भी यह स्थान उपेक्षित ही रहा।

ऐतिहासिक धरोहर[सम्पादन]

सम्भव है कि भारत के अनेक दुर्ग (गढ़) के समान यहाँ भी कुछ प्राचीन मन्दिर स्थानीय शाशकों द्वारा बनवाये गए हों जिनमें मदनपुर स्थित देवी स्थान और कैंची कोट का देवी स्थान प्रमुख हैं।

वर्तमान में अयोध्या से आए संत भागवत दास बाबा की सत्प्रेरणा से यहाँ के लोगों में अपने इस स्थानीय धरोहर के प्रति जागरुकता बढ़ी है। स्थानीय थारू समुदाय के पहल से अब इस स्थान की पहचान एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल के रूप में की गयी है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों के सत्प्रयासों से यह स्थान पश्चिमी चम्पारण, बिहार के आठ प्रमुख ऐतिहासिक महत्व के स्थलों के रूप में चिन्हित हुआ है। [१]

राजगढ़ी के परिसर कुछ ही दूर पर स्थित कैंची कोट नाम का स्थान भी आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व का है।

स्थानीय महत्त्व[सम्पादन]

आध्यात्मिक जागरण एवं सामाजिक सेवा के संलग्न यहाँ के लोगों ने अबतक राजगढ़ी की स्वच्छता और वन प्रांतर की अक्षुण शान्ति को बरकार रखते हुए अपने आस पास के इलाकों में अच्छी छाप छोड़ी है। कई स्थानीय लोग के सहयोग से मंदिर को संरक्षित करने के लिए एक न्यास का गठन भी किया गया है।

पुरातत्व विभाग की ओर से किसी भी संरक्षण के आभाव में यहां के स्मारक बिना संभाल के यत्रतत्र बिखरे पड़े हैं। पुरातात्विक महत्व के कुछ भवन, अनेकों कूप और सरोवर इस देवी मंदिर के इर्दगिर्द संभाल में कोताही के कारण क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। यदि समय रहते ऐतिहासिक महत्व के इस स्थल की सरकार द्वारा समुचित देखरेख नहीं हो पाई तो चम्पारण के अतीत का एक गौरवपूर्ण अध्याय विलुप्त हो जाएगा।

आवागमन[सम्पादन]

बस मार्ग[सम्पादन]

बगहा से वाल्मीकि नगर जाने वाले मार्ग की सारी बसें नौरंगिया हो कर जाती हैं।

रेल मार्ग[सम्पादन]

वाल्मीकि नगर रोड यहाँ से 10 किलोमीटर पर स्थित है। बगहा स्टेशन एक निकटवर्ती बड़ा रेलवे स्टेशन है।]]

वायु मार्ग[सम्पादन]

वायुमार्ग से आने के लिये राजगढ़ी से करीब १३० किलोमीटर (८१ मील) दूर गोरखपुर से वायु सेवा उपलब्ध है।

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]

https://web.archive.org/web/20170924135939/http://ssprajgadhi.in/history.html

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