लहू बोलता भी है (पुस्तक)
'लहू बोलता भी है: जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार' | |
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लेखक |
सैयद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्कि |
विषय | जंग ए आजादी ए हिन्द में हजारों ज्ञात-अज्ञात मुस्लिम किरदारों और उनकी कुर्बानियों को संजाेया गया है |
प्रकाशन तिथि | हिंदी एडिशन 2017, उर्दू 2019 |
लहू बोलता भी है: लेखक सैयद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्कि द्वारा लिखित हिंदी और "उर्दू में प्रकाशित पुस्तक है। लेखक के अनुसार इसमें 1947 से 1857 तक जंग ए आजादी ए हिन्द में हजारों ज्ञात-अज्ञात मुस्लिम किरदारों और उनकी कुर्बानियों को संजाेया गया है। हिंदी संस्करण में 1233 और उर्दू संस्करण में देशभर के 1768 मुस्लिम किरदारों के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान का उल्लेख किया गया है।[१]
विमोचन[सम्पादन]
- 2017 में हिंदी-एडिशन 'लहू बोलता भी है: जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार'
- 2019 में उर्दू-एडिशन का विमोचन (रस्मे-इजराह) प्रतिष्ठित ‘प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया’ में दिल्ली-सरकार के उपमुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया के हाथों किया गया था।
समारोह का उद्घाटन राज्यसभा-सांसद संजय सिंह ने किया। इस समारोह में पूर्व-सांसद ओबैदुल्लाह खान आज़मी और अमर शहीद अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ खान के पौत्र शादाबउल्लाह खान भी मौजूद थे। [२]
कमेंट्स[सम्पादन]
जस्टिस राजिन्दर सच्चर ने कहा था पुस्तक फ़िरकापरस्ती की बुनियाद पर इतिहास बदलने की साज़िश का परदाफाश किया है, जो काबिले-तारीफ़ है। यक़ीनन यह किताब तारीख़ी किताबों में मील का पत्थर साबित होगी।
पूर्व-सांसद मौलाना ओबैदुल्लाह खान आज़मी ने इस पुस्तक को हिन्दी के ख़ज़ाने में एक बेशकीमती इज़ाफा करार दिया।
पुस्तक के हिन्दी-संस्करण पर चिंतक-विचारक रघु ठाकुर ने कहा था इतिहास के अन्याय को दुरुस्त करना समय की ज़रूरत थी. लेखक ने विरासत बचाकर सराहनीय काम किया है।
प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन के अनुसार इस कार्य को पूरा करने के लिए लेखक ने जो खाक छानी, वह कोई मामूली कार्य नहीं है। हालाँकि यह लिखी तो गई थी मुस्लिम देशभक्तों के इतिहास को सामने लाने के लिए, मगर इसमें 1857 से 1947 की जंगे-आज़ादी के मुकम्मल इतिहास को भी उजागर किया गया है।[३]
आउटलुक में लेखक विमल कुमार के अनुसार पुस्तक में मुस्लिम लीग के निर्माण की ऐतिहासिक परिस्थियों का भी जिक्र किया गया है। 1857 की लड़ाई हिंदुओं और मुस्लिम्स ने साथ लड़ी थी और उस जंग में एक लाख मुस्लिम शहीद हो गए थे। कानपुर से फर्रुखाबाद के बीच सड़क के किनारे जितने पेड़ थे उन पर मौलानाओं को फांसी पर लटका दिया गया था। इसी तरह दिल्ली के चांदनी चौक से लेकर खैबर तक जितने पेड़ थे उन पर भी मौलानाओं को फांसी पर लटकाया गया था। चोदह हजार उलेमाओं को मृत्यु की सज़ा दी गई थी। जामा मस्जिद से लाल किले के बीच मैदान में उलेमाओं को नंगा कर जिवित जलाया गया। लाहौर की शाही मस्जिद में प्रतिदिन 80 मौलवियों को फांसी पर लटका कर उनकी लाशें रावी नदी में डाल दी जाती थीं। [४]
उर्दु समाचार पत्र सियासत के अनुसार इस पुस्तक में 43 महिला मुस्लिम मुजाहिदीन आज़ादी और 1725 पुरूष मुस्लिम मुजाहिदीन आज़ादी के कारनामों पर ज़ोरदार अंदाज़ में रोशनी डाली गई। आमना तय्यब जी, बेगम कुलसूम सियानी, निशात अलनिसा-ए-बेगम, बेगम हसरत मोहानी، अबादी बानो बेगम जैसी ख़ातून मुजाहिदीन शामिल हैं। [५]
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
सन्दर्भ[सम्पादन]
- ↑ क़ादरी, सैय्यद शाहनवाज़ अहमद; कल्कि, कृष्ण (2017) (hi में). लहू बोलता भी है: जंगे-आज़ादी-ए-हिन्द के मुस्लिम किरदार. Lokabandhu Rājanārāyaṇa ke loga. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-934539-0-2. https://www.google.co.in/books/edition/%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A5%82_%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%AD%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%88/tpt0swEACAAJ?hl=en.
- ↑ लहू बोलता भी है किताब का हुआ विमोचन. http://metrofuturenews.com/newsdetails.php?newsid=26118.
- ↑ Rajan, Rajendra (12 जुलाई 2021). "लहू बोलता भी है". https://samtamarg.in/2021/07/12/blood-speaks/.
- ↑ विमल कुमार. "जंगे-आजादी में मुसलमानों की कुर्बानियां" (en में). https://www.outlookhindi.com/story/magazine-1565.
- ↑ Tabsara: کتاب : لہو بولتا بھی ہے جنگ ِآزادی ہند کے مسلم کردار. https://urdu.siasat.com/news/%DA%A9%D8%AA%D8%A7%D8%A8-%D9%84%DB%81%D9%88-%D8%A8%D9%88%D9%84%D8%AA%D8%A7-%D8%A8%DA%BE%DB%8C-%DB%81%DB%92-%D8%AC%D9%86%DA%AF-%D9%90%D8%A2%D8%B2%D8%A7%D8%AF%DB%8C-%DB%81%D9%86%D8%AF-%DA%A9%DB%92-1368176/.
बाहरी कड़ियां[सम्पादन]
لہو بولتا بھی ہے جنگ ِآزادی ہند کے مسلم کردار उर्दू-एडिशन flipkart पर
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