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लाखाखेत

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अवस्थिति[सम्पादन]

लाखाखेत ग्राम है जो कि पाली (राजस्थान) जिलें के सोजत तहसील क्षेत्र में है। लाखाखेत अरावली पर्वतमाला की पहाडियों के दुर्गम पहाडों में बसा हुआ है। यह सोजत उपखंड के उत्तर पूर्व में ४० किमी. और पाली जिलें से ८२ किमी. दूरी पर बसा हुआ है।

इतिहास[सम्पादन]

चौहान वंशीय राव अनहल (चीता मोरेचा साख) की २८वीं पीढ़ी में बर मारवाड़ के ठिकानेदार “सूराजी चौहान” थे, जिनके वंशज सूरावत चौहान कहलाये। २९वीं पीढ़ी में कूकड़ा (भीम) के ठिकानेदार रावजी पचोंण जी के पुत्र माधवसिंह जी (मादाजी चौहान) ने विक्रम संवत १६८५ में ग्राम "बली" बसाया।

              रावजी माधव सिंह (मादाजी चौहान) के पुत्र -अमरा जी, लाखा जी, जस्सा जी (जसवंत जी) एवं सांवलदास जी हुए।  मादाजी के इन्हीं पुत्रों में से लाखा (लाखा सिंह) ने सबसे पहले यहाँ आ कर अपने नाम से लाखाखेत ग्राम बसाया। 
    लाखा जी के आने से पहले इन दुर्गम पहाडियों में डाकूओं का आतंक था। लाखा जी ने डाकूओं को यहाँ से मार भगा कर और पहाडियों की तलहटी में खेती करने लगें। कालांतर में लाखा जी ने अपने भाईयों-अमरा जी एवं सांवलदास के कुछ पुत्रों को यहाँ बसा लिया। अत: लाखा जी के खेतों को "लाखा का खेत " पुकारें जाने लगा। 
यहाँ के लोग बड़े परिश्रमी एवं काम के प्रति लगन् स्वभाव के है।  सन् १९८८ ई. में स्वयं के रुपये पैसों से बच्चों के शिक्षण हेतु २ कमरों वाला भवन की नींव रखी तदुपरांत राजस्थान सरकार ने विद्यालय हेतु सन् १९८९ ई. को स्वीकृति जारी कर शिक्षा का आरंभ कर राजकीय प्राथमिक विद्यालय -लाखाखेत हुआ। 
  १अक्टुबर १९४१(जन्म दिन) को श्रीमान रासा सिंह जी जो कि दिल्ली के राजनीति के गलियारों में ५ बार सांसद के रूप में पहुंचाने वाली नारी शक्ति (जन्मदात्री ) श्रीमती धापू कंवर की जन्मभूमि है। लाखाखेत गाँव दो भागों में बंटा हुआ है -ऊपरला लाखाखेत एवं नीचला लाखाखेत। सन् २००२ ई. में ऊपरला लाखाखेत में भी तत्कालीन ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी (सोजत) श्री पृथ्वीसिंह जी चौहान की अनुशंसा पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय - ऊपरला लाखाखेत का निर्माण हुआ। लाखाखेत ग्राम -ग्राम पंचायत बींजा गुड़ा के अन्तर्गत है जो कि लगभग १० किमी दूर है। यहाँ से कुछ दूरी पर जिला राजसमन्द, अजमेर एवं पाली की सीमाएं मिलती है।  कुछ अंग्रेज भारतीय स्वतंत्रता सेनानी - राजूजी चौहान (राजूसिंह) जो कि १२ वर्षों तक संघर्ष किया को ढूंढते -ढूंढते अप्रैल १८४२ई. को करतमाल  (स्थानीय भाषा में अंग्रेजी बोलते है) पहंचे थे। १८अप्रैल १८४२ई. को ब्यावर में महान स्वतंत्रता सेनानी राजूसिंह चौहान को फांसी दे दी गई, इसी जंगल में अंग्रेजी हुकूमत ने सड़क का निर्माण कर खनन कर खनिज पदार्थों का दोहन भी किया। यह सड़क जो कि जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अब भी विद्यमान है। 
    लाखाखेत के ग्रामवासी परिश्रमी, दयालु एवं परोपकारी स्वभाव के है। लाखाखेत के निवासियों के लिए मुख्य सीढ़ीनुमा खेती एवं पशुपालन पर निर्भर है। 

सन्दर्भ[सम्पादन]

http://sujal-swachhsangraha.gov.in/sites/default/files/Case_Study_Group_4.pdf https://www.google.com/maps/search/लाखाखेत+पाली+/@25.7773904,73.2909371,13z/data=!3m1!4b1

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