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शिवदेवी तोमर

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सन 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ में हुई थी। जनपद के महान क्रांतिकारी वीर जाट क्षत्रिय बाबा शाहमल तोमर ने जमकर अंग्रेज़ों से लोहा लिया था।

क्रांतिकारियों कों अंग्रेज़ों ने मौत के घाट उतारा। उन लोगों को पत्थर के कोल्हू से पीसकर चूर-चूर कर मसल दिया था। स्त्री, बूढ़े और बालकों को भी अन्न-जल के अभाव में तड़पा-तड़पा कर मारा।

तोमर जाटों के अनेक गाँवों को अंग्रेज़ों ने बागी घोषित कर दिया तथा उनकी जमीन, मकान, चल अचल सम्पत्ती जब्त कर ली। 1947 तक काले अंग्रेज़ों ने भी इन गाँवों को विशेष यातनाएं दी। केवल इतना ही अन्न दिया जाता था कि वे जिंदा रह सकें। पशुओं के लिए भूषा भी ले जाते थे। अतः भारतीयों को घास खोदकर पेट भरना पड़ता था। घी-दूध बेचकर इन्हें अपना गुजारा करते थे।

तब एक जाट-क्षत्राणी वीरांगना शिवदेवी तोमर ने जब यह अत्याचार देखा तो उन्होंने अंग्रेज़ों को मारने का निश्चय किया। शिवदेवी की उम्र उस समय मात्र 16 वर्ष ही थी।

उसकी सहेली किशनदेवी ने भी इस आजादी-यज्ञ में साथ देने का निश्चय किया।

बड़ौत के कुछ जाट युवकों के साथ वीर बालिका शिवदेवी ने बड़ौत में ही अंग्रेज़ों के तंबुओं पर हमला किया। शिवदेवी के नेतृत्व में वीरों ने 17 अंग्रेज़ों को तलवार के घाट उतार दिया। जबकि 25 भागकर छिपने में सफल रहे।

घायल शिवदेवी तोमर अपने घावों की मरहमपट्टी कर रही थी कि बाहर से आए अंग्रेज़ों ने उसे घेर लिया। अंग्रेज़़ सैनिक इस सिंहनी की ओर डरते डरते बढ़े। वीर बालिका ने मरते दम तक अंग्रेज़ों से लोहा लेकर देश के लिए अपने पूर्वजों की उच्चतम शौर्य प्रदर्शन करने की परंपरा निभाई तथा समाज व देश को गौरवान्वित किया।

शिवदेवी की बहन 14 वर्षीय वीरांगना जयदेवी तोमर की वीरता भी अवश्य पढ़ें।


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