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शौक़ बहराइची

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शौक़ बहराइची
चित्र:Shauq Bahraichi.jpg
शौक़ बहराइची साहब की तस्वीर
जन्म रियासत हुसैन रिज़वी
6 जून 1884
सैय्यद वाड़ा मोहल्ला अयोध्या फैजाबाद ब्रिटिश भारत अब (अयोध्या उत्तर प्रदेश  भारत )
मृत्यु 13 जनवरी 1964
बहराइच, उत्तर प्रदेश,  भारत
मृत्यु का कारण बिमारी से
स्मारक समाधि बहराइच
राष्ट्रीयता भारतीय
अन्य नाम शायर शौक बहराइची
व्यवसाय शायर (कवि )
पदवी शायर - ए - बहराइच
प्रसिद्धि कारण

बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है,

हर शाख पर उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा
अंतिम स्थान बहराइच

शौक़ बहराइची (अंग्रेज़ी Shauq Bahraichi) (6 जून 1884-13 जनवरी 1964) को जन्में एक भारतीय उर्दू शायर थे। उनका वास्तविक नाम 'रियासत हुसैन रिज़वी' था।[१]ये बहुत प्रसिद्ध शायर थे। नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त लोगों पर कटाक्ष करने के लिए जाने जाते थे। इनका ही लिखा हुआ एक शेर है जो भारत देश में बहुत ही प्रचलित है, लोग सर्वाधिक इस्तेमाल करते हैं। वह ये शेर है। बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफी है, हर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजाम ए गुलिस्ताँ क्या होगा? पर बहुत कम ऐसे लोग होंगे, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाले शायर का नाम शौक़ बहराइची है। [२]

व्यक्तिगत जीवन[सम्पादन]

शौक़ बहराइची की पैदाइश 6 जून, 1884 को अयोध्या के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक साधारण मुस्लिम शिया परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम रियासत हुसैन रिज़वी था, जो बाद में अयोध्या से बहराइच आ गए थे। इन्हें बहराइच में रहने के कारण से बहराइची लकब दिया गया। यहीं पर उन्होंने ग़रीबी में भी शायरी से रिश्ता जोड़े रखा। रियासत हुसैन रिज़वी ने शौक़ बहराइची के नाम से शायरी के नए आयाम गढ़ने शुरू कर दिया, जो काम 13 जनवरी, 1964 में हुई उनकी मौत तक बदस्तूर चलता रहा। उनके बारे में जो भी जानकारी प्रामाणिक रूप से मिली, वह उनकी मौत के तकरीबन 50 साल बाद बहराइच जिला के निवासी व लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर ताहिर हुसैन नक़वी के नौ वर्षों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने उनके शेरों को संकलित कर तूफ़ान नाम की किताब में संजोया है।

गरीबी में बीता जीवन[सम्पादन]

ताहिर नक़वी बताते हैं “जितने मशहूर अन्तराष्ट्रीय शायर शौक़ साहब हुआ करते थे उतनी ही मुश्किलें उनके शेरों को ढूँढने में सामने आईं, निहायत ही ग़रीबी में जीने वाले शौक़ की मौत के बाद उनकी पीढ़ियों ने उनके कलाम या शेरों को सहेजा नहीं, अपनी खोज के दौरान तमाम कबाडी की दुकानों से खुशामत करके और ढूंढ ढूंढकर उनके लिखे हुए शेरों को खोजना पड़ा”। शौक़ बहराइची की एक मात्र आयल पेंटिग वाली फोटो के बारे में ताहिर नक़वी बताते हैं “यह फोटो भी हमें अचानक एक कबाड़ी की ही दुकान पर मिल गई अन्यथा इनकी कोई भी फोटो मौजूद नहीं थी।” व्यंग जिसे उर्दू में तंज ओ मजाहिया कहा जाता है इसी विधा के शायर शौक़ ने अपना वह मशहूर शेर बहराइच की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और 1957 के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता ही चला गया। ताहिर नक़वी बताते हैं कि यह शेर जो प्रचलित है उसमें और उनके लिखे में थोडा सा अंतर कहीं कहीं होता रहता है। वह बताते हैं कि सही शेर यह है “बर्बाद ऐ गुलशन कि खातिर बस एक ही उल्लू काफ़ी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ऐ गुलशन क्या होगा”

गुमनाम शायर[सम्पादन]

शौक़ बहराइची की मौत के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी इनके बारे में कहीं कोई सुध ना लेना एक मशहूर शायर को काफ़ी गुमनाम मौत देने का जिम्मेदार साहित्य की दुनिया को माना जा सकता है। शौक़ बहराइची की इस गुमनामियत पर उनका ही एक और मशहूर शेर सही बैठता है। अल्लाहो गनी इस दुनिया में, सरमाया परस्ती का आलम, बेज़र का कोई बहनोई नहीं, ज़रदार के लाखों साले हैं शौक़ बहराइची के बहराइच में बीते दिन काफ़ी ग़रीबी में रहे और यहाँ तक की उन्हें कोई मदद भी नहीं मिलती थी। आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे शायर शौक़ के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया। सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी, दादे फ़ानी से जब शौक़ उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी

उनकी कुछ मशहूर शायरियां[सम्पादन]

  • बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफी है

हर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजाम ए गुलिस्ताँ क्या होगा?

  • हर मुल्क इस के आगे झुकता है एहतिरामन

हर मुल्क का है फ़ादर हिन्दोस्ताँ हमारा

सन्दर्भ[सम्पादन]


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