ईश्वर शरण विश्वकर्मा
ईश्वर शरण विश्वकर्मा: (07 मई 1958)[सम्पादन]
भारतीय संस्कृति और परम्परा के संवाहक प्रो. (डॉ.) ईश्वर शरण विश्वकर्मा, भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, कला, संस्कृति, धर्म, दर्शन तथा ऐतिहासिक भूगोल के मूर्धन्य विद्वान् हैं । उच्चकोटि का विद्वान् होने के साथ-साथ वे स्वभावतः अत्यन्त सरल और सहज व्यक्तित्व, सनातन नैतिक मूल्यों के अनुपालक, सामाजिक दायित्वों के प्रति सचेत और राष्ट्र के प्रति सर्वथा समर्पित रहने वाले कर्मयोगी हैं । उनका सम्पूर्ण जीवन भारतीय जीवन दर्शन का ही प्रतिरूप है ।
प्रोफेसर (डॉ.) ईश्वर शरण विश्वकर्मा | |
जन्म | 07.05.1958 (सात मई सन् उन्नीस सौ अट्ठावन)केवालापुर, महाराजगंज (उत्तर प्रदेश) |
पिता | (स्व.) श्री भूपति प्रसाद विश्वकर्मा |
सहगामनी | डॉ. प्रीति विश्वकर्मा |
बच्चे | डॉ. श्रुति और श्रेयांश |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
सेवा | अध्यापन |
वर्तमान स्थिति | अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज-211001 (उ.प्र.) |
दायित्व | राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नयी दिल्ली |
अनुक्रम |
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1. जीवन परिचय |
2. स्कूली शिक्षा |
3. विश्वविद्यालयी शिक्षा |
4. शोध-कार्य |
5. सेवा/व्यवसाय |
6. पुरातात्त्विक उत्खनन एवं संग्रहालय सम्बन्धी अनुभव |
7. ग्रंथ सूची
7.1 प्रकाशित शोध-ग्रन्थ 7.2 अध्याय लेखन 7.3 सम्पादित ग्रन्थ 7.4 सम्पादित शोध-पत्रिकायें 7.5 प्रकाशित शोध-पत्र |
8. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभागिता |
9. विशेषज्ञता का क्षेत्र |
10. उच्चतर अकादमिक उपलब्धियाँ |
11. उच्च अकादमिक संस्थाओं से सम्बद्धता |
12. सम्मान |
13. व्यक्तिगत जीवन |
14. सामाजिक योगदान |
सन्दर्भ-सूची |
1. जीवन परिचय:
बहुमुखी प्रतिभा के धनी ईश्वर शरण जी का जन्म उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के केवलापुर कला नामक ग्राम में 7 मई 1958 को एक अत्यंत ही सामान्य परिवार में हुआ था ।[१] ईश्वर के प्रति अत्यन्त लगाव होने के कारण बचपन में लोग इन्हें ‘पुजारी’ नाम से बुलाते थे । तीन भाइयों और तीन बहनों में ये दूसरे भाई थे । इनके पिता स्व. भूपति प्रसाद विश्वकर्मा एवं माता स्व. मेधा देवी दोनों गृहस्थ साधु थे । पिता अपनी पुस्तैनी गृहस्थी का कार्य करके परिवार का पालन पोषण करते थे जिस कारण इनका बचपन अत्यंत गरीबी और अल्पता में व्यतीत हुआ । ईश्वर शरण जी पर सर्वाधिक प्रभाव इनके पिता की कर्मठता और ईमानदारी का पड़ा । पिता-माता की साधुता एवं सात्विकता के समान ये भी सात्विक प्रवृति और ईश्वर के अनन्य भक्त थे ।
2. स्कूली शिक्षा:
ईश्वर शरण जी बाल्यकाल से ही काफी प्रतिभाशाली थे । संसाधन की अल्पता अवश्य थी परन्तु शैक्षिक अभिरुचि और शिक्षा के प्रति समर्पण के कारण पिता स्व. (श्री) भूपति विश्वकर्मा ने इनको स्कूली शिक्षा दिलाने का निश्चय किया । गाँव के समीप दिग्विजयनाथ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (वर्तमान इण्टर कालेज) तथा महाराजगंज स्थित इंटरमीडिएट कॉलेज से इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की ।[२] हाईस्कूल में 64 प्रतिशत अंक प्राप्त कर शिक्षा के प्रति अपने समर्पण का परिचय दिया । इण्टरमीडिएट कक्षा में उ.प्र. सरकार की प्रावीण्य छात्रवृत्ति (जुलाई 1972 से जून 1974) प्राप्त की जिससे पूरे क्षेत्र में इनकी ख्याति हो गयी । स्कूली जीवन में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर इन्होंने अपनी शिक्षा को जारी रखा ।
3. विश्वविद्यालयी शिक्षा:
स्नातक और परास्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के लिए इन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में प्रवेश लिया । सन् 1976 में संस्कृत, भूगोल, प्राचीन इतिहास विषय में स्नातक और सन् 1978 में प्राचीन इतिहास विषय में प्रथम श्रेणी से परास्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की [३] ।
4. शोध-कार्य:
पी-एच. डी.: परास्नातक करने के बाद शोध के क्षेत्र में अभिरुचि होने के कारण इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में शोध-कार्य हेतु पी-एच. डी. में प्रवेश लिया और सन् 1982 में ‘काशी का ऐतिहासिक भूगोल' (आरम्भ से लेकर बारहवीं शताब्दी ई.) विषय पर अपना शोध-कार्य पूर्ण किया । पी-एच. डी. शोध हेतु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की अध्येतावृत्ति (मार्च 1979 से फरवरी 1981) प्राप्त होती रही जिससे शोध-कार्य सहज और सरल रूप से पूर्ण हो सका । डी. लिट्.: प्रो. विश्वकर्मा ने पी-एच. डी. शोध-कार्य पूर्ण करने के उपरान्त शोध के प्रति अपनी तीव्र इच्छाशक्ति के कारण डी. लिट्. करने का निर्णय लिया और सन् 1999 में प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से ‘भारतीय साहित्य तथा शिल्प में विश्वकर्मा’ विषय पर डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (डी. लिट्.) की उपाधि प्राप्त की ।
5. सेवा/व्यवसाय:
- अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज (07.02.2018 से)[४]
- आचार्य (प्रोफेसर): प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर।
- उपाचार्य (एसोसिएट प्रोफेसर): प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर ।
- सहायक प्राध्यापक (असिस्टेंट प्रोफेसर ): प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, प्राच्य निकेतन (सेण्टर ऑफ एडवांस्ड स्टडीज इन इण्डोलाजी एण्ड म्यूजियोलाजी), भोपाल, संबद्ध बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल।
6. पुरातात्त्विक उत्खनन एवं संग्रहालय सम्बन्धी अनुभव:
- प्राच्य निकेतन, भोपाल द्वारा प्रो. आर.जी. पाण्डेय के निर्देशन में मध्य प्रदेश के देवास जिले के कोटरा नामक पुरास्थल के उत्खनन में सहयोग (1991 एवं 1992) ।
- प्राच्य निकेतन, भोपाल द्वारा प्रो. आर.जी. पाण्डेय के निर्देशन में मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के नादनेर नामक पुरास्थल के उत्खनन में सहयोग (1993, 1994, 1995 एवं 1996) ।
- संग्रहालय प्रभारी, आचार्य विश्वम्भर शरण पाठक स्मारक पुरातत्त्व संग्रहालय, प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर (2009 से 2018) ।
7. ग्रंथ सूची:
7.1 प्रकाशित शोध-ग्रन्थ:
- काशी का ऐतिहासिक भूगोल (प्रारम्भ से लेकर 12वीं शताब्दी ई. तक), रामानन्द विद्याभवन, नई दिल्ली, 1987[५].
- भारतीय साहित्य तथा शिल्प में विश्वकर्मा, प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली, 2002.
- रामकथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, मनीष प्रकाशन, वाराणसी, 2017.
7.2 अध्याय लेखन:
- ग्वालियर एवं दतिया जिले के दुर्ग एवं गढ़ियाँ, लेखक: डॉ. आनन्द मिश्र, आदित्य प्रकाशन, भोपाल, 2002 में ‘‘दुर्ग का अभिधान एवं विधान’’ परिशिष्ट लेखन ।
- मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल के दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम में एम.ए. अन्तिम वर्ष, इतिहास पाठ्यक्रम में ईकाई-एक का लेखन (प्राचीन भारत में राजत्व सम्बन्धी विचार: राजतंत्र, कुलतंत्र एवं गणतंत्र), प्रश्न-पत्र शीर्षक: विचारों का इतिहास, सम्पादक: डॉ. बी.के. श्रीवास्तव, 2014.
7.3 सम्पादित ग्रन्थ:
- बुन्देलखण्ड की संस्कृति, स्वामी प्रणवानन्द भारतीय साहित्य न्यास, भोपाल द्वारा प्रकाशित, 1997 (अन्य सम्पादक: श्री महेन्द्र कुमार मानव एवं डा0 अम्बा प्रसाद श्रीवास्तव) ।
- युगयुगीन ग्वालियर, भारतीय इतिहास संकलन समिति मध्य भारत, भोपाल, 1997.
- युगयुगीन भोपाल, लेखक: डॉ. श्याम सुन्दर सक्सेना, भारतीय इतिहास संकलन समिति मध्य भारत, भोपाल, 2000.
- पूर्वांचल गौरव, विश्व संवाद केन्द्र, गोरखपुर, 2002.
- काशी का ऐतिहासिक भूगोल एवं राजनीतिक इतिहास, काशी गौरव ग्रन्थ माला, भारतीय इतिहास संकलन समिति, वाराणसी, 2006, संकलक ।
- युगयुगीन सिहोर, लेखक: डॉ. श्याम सुन्दर सक्सेना, भारतीय इतिहास संकलन समिति मध्य भारत, भोपाल, 2009.
- भारतीय इतिहास के स्रोत एवं इतिहास लेखन, प्रधान सम्पादक, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली, 2016[६].
- नारी: अतीत से वर्तमान तक, प्रतिभा प्रकाशन, दिल्ली, 2017 (अन्य संपादक: प्रो. विपुला दुबे एवं प्रो. दिग्विजय नाथ) ।
- भारतीय संस्कृति में नारी, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली, 2018.
7.4 सम्पादित शोध-पत्रिकायें:
- संयुक्त सम्पादक, इतिहास दर्पण (अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की अर्द्धवार्षिक शोध-पत्रिका) अंक-14, 15, 16 एवं 17, सम्पादक: प्रो0 ठाकुर प्रसाद वर्मा ।
- कार्यकारी सम्पादक, इतिहास (भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, भारत सरकार, नई दिल्ली की अर्द्धवार्षिक हिन्दी शोध-पत्रिका), जून 2016 से दिसम्बर 2018, प्रधान सम्पादक: प्रो0 सच्चिदानन्द सहाय (कम्बोडिया) ।
- प्रधान सम्पादक, इतिहास (भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, भारत सरकार, नई दिल्ली की अर्द्धवार्षिक हिन्दी शोध-पत्रिका), दिसम्बर 2018 से निरन्तर।
7.5 प्रकाशित शोध-पत्र: 100 से अधिक शोध-पत्र विभिन्न प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं एवं ग्रंथो में प्रकाशित ।
8. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभागिता:
जर्मन एसोसिएशन ऑफ हिस्टोरियन्स एवं जर्मन एसोसिएशन ऑफ हिस्ट्री टीचर्स द्वारा दिनांक 20-30 सितम्बर 2016 को हम्बर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी में आयोजित 51वें सम्मेलन में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, भारत सरकार, नई दिल्ली, की ओर से ‘पारदेशीय इतिहास लेखन’ नामक विशेष सत्र में विषय-विशेषज्ञ के रूप में प्रतिभागिता एवं भारत का प्रतिनिधित्व।
9. विशेषज्ञता का क्षेत्र:
प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व, भारतीय संस्कृति, प्राचीन भारतीय कला एवं स्थापत्य, ऐतिहासिक भूगोल आदि[७] ।
10. उच्चतर अकादमिक उपलब्धियाँ:[सम्पादन]
- यू0जी0सी0 अन्तर्विश्वविद्यालयी केन्द्र एसोसिएटशिप, मानविकी एवं समाज विज्ञान,भारतीय उच्च अध्ययन केन्द्र, राष्ट्रपति निवास, शिमला 1996-99, (प्रतिवर्ष एक माह) ।
- सदस्य, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् (।CHR), मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, प्रथम कार्यकाल, तीन वर्ष के लिए (2015-2018)[८] एवं द्वितीय कार्यकाल, तीन वर्ष के लिए (2019-2022)[९] ।
- सदस्य, राजा राममोहन राय राष्ट्रीय पुस्तकालय प्रतिष्ठान, कोलकाता (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार,), 2017 से[१०] ।
- सदस्य, राष्ट्रीय संग्रहालय परामर्श मंडल, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), 2020 से ।
- सदस्य, कार्यकारिणी एवं साधारण सभा, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (उत्तर प्रदेश सरकार), 2018 से[११] ।
11. उच्च अकादमिक संस्थाओं से सम्बद्धता:
- राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली (25 दिसम्बर 2015 से निरन्तर) ।
- राष्ट्रीय सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली (2006 से 2015)
- आजीवन सदस्य, सोसायटी ऑफ साउथ एशियन आर्क्योलाजी, पूणे ।
- आजीवन सदस्य, इण्डियन आर्ट हिस्ट्री कांग्रेस, गुवाहाटी ।
- आजीवन सदस्य, इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, नई दिल्ली ।
- आजीवन सदस्य, भारतीय पुरातत्त्व परिषद्, नई दिल्ली ।
- न्यासी सदस्य, स्वामी प्रणवानन्द साहित्य न्यास, भोपाल ।
- न्यासी सदस्य, संस्कृत भारती न्यास, गोरखपुर ।
- न्यासी सदस्य एवं अध्यक्ष, विश्व संवाद न्यास, गोरखपुर ।
- न्यासी सदस्य एवं अध्यक्ष, विचार भारती न्यास, गोरखपुर।
12. सम्मान:
- ‘कोशल रत्न’, 2017, कोशल शोध संस्थान, अयोध्या द्वारा प्रदत्त l
- ‘स्वामी विवेकानंद पुरस्कार’, ( भारत विद्या (इन्डोलॉजी) के क्षेत्र में), केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (मानव संशाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा हिंदी सेवी सम्मान योजना के अंतर्गत वर्ष 2017 के लिए प्रदत्[१२]।
13. व्यक्तिगत जीवन:
प्रो. विश्वकर्मा व्यक्तिगत रूप से अत्यन्त सरल स्वभाव और उच्च नैतिक मूल्यों के वाले आदर्श शिक्षक हैं । ईश्वर के प्रति अगाध आस्था रखते हैं । दैनिक जीवनचर्या का वे कठोरता से पालन करते हैं । प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करते हैं चाहे वो उनके कार्यालय का चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी हो या फिर कोई अधिकारी । वास्तव में, प्रो. विश्वकर्मा एक आदर्श मानव जीवन के प्रतिमान हैं ।
14. सामाजिक योगदान:
समाज के प्रत्येक वर्ग के प्रति सदैव सचेत रहने वाले प्रो. विश्वकर्मा का जीवन ‘सर्वेभवन्तुसुखिनः’ के दर्शन पर आधारित है । वे अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से समाज के पिछड़े और कमजोर लोगों के लिए यथासंभव यत्न करते रहते हैं । राष्ट्र को समर्पित एक ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता हैं । प्रो. विश्वकर्मा सन् 1974 से समाज सेवा की विभिन्न योजनाओं, सेवा प्रकल्पों और शैक्षिक संगोष्ठियों में सक्रिय भागीदारी करते हैं l साथ ही देश और समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं ।
सन्दर्भ सूची:
- ↑ प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा का जीवन परिचय
- ↑ पत्रिका, 4 फरवरी 2018, https://www.patr।ka.com/gorakhpur-news/prof-।shwar-sharan-w।ll-be-up-h।gher-edu-comm।ss।on-new-cha।rman-1-2318259/[मृत कड़ियाँ]
- ↑ पत्रिका, 4 फरवरी 2018, https://www.patr।ka.com/gorakhpur-news/prof-।shwar-sharan-w।ll-be-up-h।gher-edu-comm।ss।on-new-cha।rman-1-2318259/[मृत कड़ियाँ]
- ↑ अमर उजाला, 4 फरवरी 2018, https://www.amarujala.com/lucknow/।shwar-sharan-v।shwakarma-new-ch।ef-of-uchtar-seva-chayan-ayog[मृत कड़ियाँ]; लाइव हिंदुस्तान , 5 फरवरी 2018, https://www.l।veh।ndustan.com/uttar-pradesh/gorakhpur/story-story-of-dr-।shwar-sharan-v।shwkarma-new-cha।rman-of-h।gher-educat।on-ayog-1785646.html[मृत कड़ियाँ]
- ↑ नेशनल ज्योग्राफिकल जर्नल ऑफ इण्डिया, भाग 34, खण्ड 3, सितम्बर 1988, पृ.संख्या 267-290 में प्रो. राणा, पी0बी0 सिंह द्वारा समीक्षित (।SSN: 978-93-85789-90-8) l
- ↑ अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली तथा प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कति विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर द्वारा आयोजित वरिष्ठ इतिहासकार राष्ट्रीय संगोष्ठी, 15-16 अक्टूबर 2016, कुशीनगर में प्राप्त शोध पत्रों का पूर्ववृत्त (।SBN- 978.93.82424.27.7) l
- ↑ फैकल्टी प्रोफाइल, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर वि.वि., गोरखपुर, http://182.18.165.51/faculty_prof।le/faculty_prof।le_1.aspx?u।d=45
- ↑ मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, (अधिसूचना संख्या-एफ. 3-12/2014-U.3 दिनांक 24 फरवरी, 2015)
- ↑ मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, (अधिसूचना संख्या-एफ. 3-3/2017-U.3 दिनांक 17 दिसम्बर, 2018)
- ↑ http://rrrlf.n।c.।n/Stat।cPages_AboutUs/Governance.aspx[मृत कड़ियाँ]
- ↑ उत्तर प्रदेश शासन, भाषा अनुभाग 4, संख्या सी.एम. 86/21-04-2017-05/2017 दिनांक 08 नवम्बर 2017
- ↑ http://khs।nd।a.org/।nd।a/।mages/HSS2017PressReport.pdf[मृत कड़ियाँ]
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