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राजा मानसिंह आमेर व मंदिरों का पंचरंगा ध्वज ।

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राजा मानसिंह आमेर व मंदिरों का पंचरंगा ध्वज।

किसी भी राजा या धर्म की ध्वजा उनके वर्चस्व, प्रतिष्ठा, बल और इष्टदेव का प्रतीक होता है। हर राजा, देश या धर्म की अपनी अपनी अलग अलग रंग की ध्वजा (झण्डा) होती है। सनातन धर्म के मंदिरों में भगवा व पंचरंगा ध्वज लहराते नजर आते है। भगवा रंग सनातन धर्म के साथ वैदिक काल से जुड़ा है, हिन्दू साधू वैदिक काल से ही भगवा वस्त्र भी धारण करते आये है। लेकिन मुगलकाल में सनातन धर्म के मंदिरों में पंचरंगा ध्वज फहराने का चलन शुरू हुआ। जैसा कि ऊपर बताया जा चूका है ध्वजा वर्चस्व, प्रतिष्ठा, बल और इष्टदेव का प्रतीक होती है। अपने यही भाव प्रकट करने के लिए आमेर के राजा मानसिंह ने कुंवर पदे ही अपने राज्य के ध्वज जो सफ़ेद रंग का था को पंचरंग ध्वज में डिजाइन कर स्वीकार किया।

राजा मानसिंहजी ने मुगलों से सन्धि के बाद अफगानिस्तान (काबुल) के उन पाँच मुस्लिम राज्यों पर आक्रमण किया, जो भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे, व बदले में भारत से लूटकर ले जाए जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे।

राजा मानसिंह ने उन्हें तहस-नहस कर वहाँ के तमाम हथियार बनाने के कारखानों को नष्ट कर दिया व श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों व कारीगरों को वहाँ से लाकर जयगढ़ (आमेर) में शस्त्र बनाने का कारखाना स्थापित करवाया। इस कार्यवाही के परिणाम स्वरूप ही यवनों के भारत पर आक्रमण बन्द हुए व बचे-खुचे हिन्दू राज्यों को भारत में अपनी शक्ति एकत्र करने का अवसर प्राप्त हुआ। राजा मानसिंह ने भारत के हिन्दू राज्यों में साधु संतों का रहने की सुव्यवस्थित किया। हिन्दू राजाओं के लिए घोड़े की दौड़ प्रतियोगिता आयोजित किया जाता था साथ में प्रतियोगिता का परिणाम का फल साधु संतों के द्वारा दी जाती थी। इस प्रकार के आयोजन से राज मानसिंह बहुत प्रसन्न होते थे।

यही नहीं राजा मानसिंह आमेर ने भारतवर्ष में जहाँ वे तैनात रहे वहां वहां उन्होंने मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया व नए नए मंदिर बनवाये। मंदिरों की व्यवस्था के लिए भूमि प्रदान की. उड़ीसा में पठानो का दमन कर जगन्नाथपुरी को मुसलमानों से मुक्त कर वहाँ के राजा को प्रबन्धक बनाया। हरिद्वार के घाट, हर की पैडियों का भी निर्माण भी मानसिंह ने करवाया।

मानसिंहजी की इस कार्यवाही को तत्कालीन संतों ने पूरी तरह संरक्षण व समर्थन दिया तथा उनकी मृत्यु के बाद हरिद्वार में उनकी स्मृति में हर की पेड़ियों पर उनकी विशाल छतरी बनवाई। यहाँ तक कि अफगानिस्तान के उन पाँच यवन राज्यों की विजय के चिन्ह स्वरूप जयपुर राज्य के पचरंग ध्वज को धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की गई व मन्दिरों पर भी पचरंग ध्वज फहराया जाने लगा। नाथ सम्प्रदाय के लोग "गंगामाई" के भजनों में धर्म रक्षक वीरों के रूप में अन्य राजाओं के साथ राजा मानसिंह का यशोगान आज भी गाते।

आमेर राज्य के सफ़ेद ध्वज की जगह पंचरंग ध्वज के पीछे की कहानी-

इतिहासकार राजीव नयन प्रसाद ने अपनी पुस्तक "राजा मानसिंह" के पृष्ठ संख्या 111 पर जयपुर के पंचरंग ध्वज के बारे में कई इतिहासकारों के सन्दर्भ से लिखा है- "श्री हनुमान शर्मा ने अपनी पुस्तक "जयपुर के इतिहास" में लिखा है कि जयपुर पंचरंगा ध्वज की डिजाइन मानसिंह ने बनायी थी। जब वह काबुल के गवर्नर थे। इसके पहले राज्य का ध्वज श्वेत रंग था।

श्री शर्मा आगे चलकर कहते है कि जब मनोहरदास जो मानसिंह का एक अधिकारी था, उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेश के अफगानों से लड़ रहा था। उसने लूट के माल के रूप में उनसे भिन्न-भिन्न पांच रंगों के ध्वज प्राप्त किये थे। ये ध्वज नीले, पीले, लाल, हरे और काले रंग के थे।

मनोहरदास ने कुंवर को सुझाव दिया कि राज्य का ध्वज कई रंगों का होना चाहिये केवल श्वेत रंग का नहीं। इस सुझाव को शीघ्र स्वीकार कर लिया गया। उस समय से जयपुर राज्य का ध्वज पांच रंगों वाला हो गया। ये रंग है नीला, पीला, लाल और काला।

श्री शर्मा के कथन के पीछे स्थानीय परम्परा है। जयपुर के लोग इस कथन की पुष्टि करते है कि राज्य का पंचरंगा झण्डा सबसे पहले कुंवर मानसिंह ने तैयार किया था। उस समय वे काबुल के गवर्नर थे। इसके अतिरिक्त श्री पट्टाभिराम शास्त्री जो महाराजा संस्कृत कालेज जयपुर के प्रिंसिपल थे ने अपने जयवंश महाकाव्य की भूमिका में इस तथ्य का उल्लेख किया कि जयपुर के पंचरंग ध्वज की कल्पना मानसिंह द्वारा की गई थी।"

रियासती काल में झंडे की वंदना में यह उल्लेखित है:- मान ने पांच महीप हराकर, पचरंगा झंडा लहराकर, यश से चकित किया जग सारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। (मदनसिंह जी झाझड़)

साभार - ज्ञान दर्पण। [१]


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