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दिनेश यादव (Dinesh Yadav)

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दिनेश यादव (Dinesh Yadav (ˈdɪnɛʃ /Yadav/), 迪内什·亚达夫,দীনেশ যাদব, जन्म 6 अक्टोबर 1969 । दिनेश यादव नेपाल के एक चर्चित पत्रकार, लेखक, विश्लेषक, समिक्षक,अनुवादक , शिक्षक और साहित्यकार हैं । वह नेपाली, हिन्दी, मैथिली सहित के भाषा मे समानान्तर रुप मे अपना कलम चलाते हैं । वह नेपाल के नम्बर 1 पत्रिका कांतिपुर से आबद्ध हैं । सप्तरी नेपाल के सदरमुकाम राजबिजार से 13 किमी दक्षिण पश्चिम मे अवस्थित फकिरा गांव मे पिता श्री रामेश्वरप्रसाद यादव और माता श्रीमति हजारीदेवी यादव के जेष्ठ सूपुत्र☃☃ के रुपमे 51 वर्ष पहले जन्म हुआ । इनके दो भाई और एक बहन हैं । दिनेश यादव के पिता नेपाल के सूदूरपूर्व के जिला झापा शिवगंज के शिक्षक और बाद मे प्रधानाध्यापक के रुप मे कार्य कर कुछ वर्ष पहले अवकाश हुए ।  पाठ=Dinesh Yadav|अंगूठाकार|357x357पिक्सेल|दिनेश यादव

प्रारम्भिक शिक्षा और जीवन संघर्ष[सम्पादन]

इनका प्रारम्भिक शिक्षा नेपाल के ही तराई–मधेस के सप्तरी जिला के एक दूर्गम गाँव फकिरा मे हुआ । वह जब ६ वर्ष के थे, तब फकिरा गाँव के ही एक मात्र विद्यालय श्री शारदा राष्ट्रिय प्राथमिक विद्यालय मे प्राथमिक तह के शिक्षा हासिल किए । सरकारी यह स्कूल मे दाखिला से पहले वह विभिन्न मुस्लिम धर्मगुरु मौलबीयो से पढाई आरम्भ करी थी । गाँव मे कक्षा ३ तक पढ्ने के बाद वह पूर्वी नेपाल के तराई के ही झापा जिला के शिवगंज स्थित श्री जनआदर्श माध्यमिक विद्यालय मे कक्षा ४ मे भर्ना हुए । वही से १९९६ मे उन्होने नेपाल बोर्ड की परीक्षा ‘एसएलसी’ प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण करी । उच्च शिक्षा के लिए नेपाल के राजधानी काठमाडौं पहुँचे ।  वहाँ सिभिल अभरसियरी पढ्ने की चाहत मे उन्होने नेपाल के टप इन्जिनियरिङ कलेज पुलचोक मे नामांकन फर्म भरा था । परन्तु सिभिल मे नही इलेक्ट्रीकल ओभरसियरी मे नाम निकाला । परन्तु पढाई अपने इच्छा विपरित के यह विषय उन्होने पढ्ने से इन्कार करने के बाद उनका पिता जी ब्याग एन्ड ब्यागेज सप्तरी के फकिरा लौट गए । वहाँ भारत के दरभंगा लागे की सोच बनाए । पिता जी के सहयोग मे वह मधुवनी फुलपरास थाना के सांगी मे रहे अपने ननिहाल गए । वहाँ अपने मामाजी जवाहर राजा को लेकर दरभंगा चले गए । उनके मामा ने दरभंगा के मारवारी कलेज मे नाम दाखिला करबा दिए । इसी कलेज से विज्ञान संकाय मे द्वितीय श्रेणी मे इन्टर उत्तिर्ण किए । उसके बाद नेपाल वह नेपाल चले आए । दिनेश के माता जी बिमार पड्ने के कारण घर मे विवाह का दबाब पडा । सन् १९८९ मे उनका शादी हुआ । शादी के बाद नेपाल मे ही पढ्ने का मन बनाया । नेपाल के ही मोरंग विराटनगर मे बिएस्सी के लिए नामांकन भरा । परन्तु समय मे मैग्रेसन सर्टिफिकेट निर्गत नहोने के कारण उनका नामांक वहाँ नही हुआ । वाध्यतावस वह फिर भारत बिहार के दरभंगा पहुँचे , ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय कामेश्वरनगर दरभंगास्थित चन्द्रधारी मिथिला साइन्स (CM Science college) काँलेज मे बिएस्सी भौतिकी शास्त्र आर्नस मे दाखिला लिया । त्रिवर्षिय पाठ््यक्रम उन्होने सन् १९९१ मे प्रथम श्रेणी मे बिएस्सी फिजिक्स आँनर्स उत्तिर्ण किए । फिर अपने देश नेपाल लौट गए । वहाँ से उच्च शिक्षा पढ्ने के लिए वह काठमाण्डू चल गए । परन्तु विलम्ब पहुँचने के कारण काठमाडौंस्थित त्रिभुवन विश्वविद्याल कीर्तिपुर मे नामांकन के तिथि समाप्त हो चुकी थि । एक वर्ष समय वर्वाद होने की स्थिति बन जाने के बाद वह फिर दरभंगा लौट गए और ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्र विभाग मे दाखिला करबा लिए । वहाँ से सन १९९४ मे फिर अपने गाँव फकिरा लौटकर फिर काठमाण्डू पहुँचे । रोजगारी के लिए काँलेज सब मे निवेदन देना उन्होने शुरु किया । एक तो मधेसी और उसमे भी बिहार से एमएससी उत्तीर्ण होने के कारण उन्हे नोकरी मिलने मे दिक्कर हुई । उन्होने जहाँ–जहाँ पढाने के लिए आवेदन करी, हर जगर एक/दो नम्बर पर अपना नाम निकालते थे । परन्तु बिहार के मास्टर्स सर्टिफिकेट के कारण उन्हे अस्वीकार कर दिया गया । काठमाण्डू के मोर्डन इन्डिन स्कूल से लेकर जेम्स स्कूल तक तकरीबन २० विद्यालय/काँलेज मे शिक्षण पेशा के लिए आवेदन भरे थे । कही नहोने के बाद उन्होने त्रिभुवन विश्वविद्यालय मे जनसंख्या शिक्षा विभाग मे जनसंख्या विषय पढ्ने की सोच बनाई । नामांकन भी करबाया । एक वर्ष पढा भी । आर्थिक अवस्था कमजोर होने के कारण वह परेशान रहते थे । उसी समय तीन महिना के लिए नेपाल सरकार के स्थानीय मन्त्रालय और त्रिभूवन विश्वविद्यालय के संयुक्त एक संयुक्त प्रोजेक्ट का ऐलान हुआ । यादव उसी मे ज्वाई कर लिए । २५ हजार रुपैयाँ मिला था । न्यूनतम खर्च करते थे । उसी वर्ष त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने पुस्तकालय विज्ञान की पढाई शुरु करने का ऐलान किया । उसमे उन्होने आवेदन दिया । सिर्फ १२ सिट के लिए प्रतियोगी की संख्या हजार से ज्यादा था । उनका नाम योग्यता सूची मे दो नम्बर पर निकला । परन्तु मधेसी और बिहार के प्रमाणपत्र के कारण उनका १० अंक माइनस कर दिया गया । उस समय भारत से उच्च शिक्षा हासिल कर आने वाले उम्मेदवार के लिए यह प्रावधान रखी गयी थि । हो सकता है दिनेश यादव को रोक्ने के लिए भी यह सब हुआ हो । क्योकीं उस समय मधेसियों पर पूर्ण भेदभाव था, नेपाल में । अंक घटाने के बाद भी नामांक हुआ, परन्तु उनके साथ शिक्षकों का व्यवहार कभी अच्छा नही रहा । भेदभाव के नजरिए से देखता था । उसी समय उनके अनुज सुरेश यादव के द्वारा काठमाण्डू के ही एक सरकारी विद्यालय मे विज्ञान शिक्षक की माग हुई , वहाँ उन्होने आवेदन करी । उस विद्यालय मे वह पहुँचने से पहले आधा दर्जन उम्मेदवार रिजेक्ट हो चुका था । वह अपने दक्षता और योग्यता के बल पर छनौट हो गए । दो हप्तों तक भी नियुक्ति पर नदेने के कारण वह स्कूल मे अध्यापन करने के लिए जाना छोड दिए । फिर पुस्तकालय विज्ञान की कक्षा मे जाने लगे । कुछ दिन के बाद विद्यालय से प्रिंसिपलका फोन आया की आप आईये नियुक्ति पर ले जाइए । वह असमंजस मे पड गए । बहुत सोचने के बाद वह शिक्षण पेशा को छनौट किए । पुस्तकालय विज्ञान की पढाई छोड दिए । अब उन्हे  असल विज्ञान शिक्षक बन्ने की बुखार चढ गया । इसी क्रम मे त्रिभुवन विश्वविद्यालय कीर्तिपुर स्थित शिक्षा संकाय मे विज्ञान शिक्षण विषय मे दाखिला करा लिए । स्कूल और बिएड दोनो साथ साथ आगे बढाया । स्कूल के कारण प्रायोगिक कक्षा नही कर पाए ।  शिक्षा संकाय के प्रमुख प्रैक्टीकल कक्षा मे आने के लिए उन्हे बारम्बार कह रहे थे । परन्तु स्कुल से छुट्टी नमिलने के कारण वह सहभागी नही हो पाए । सैद्धान्तिक परीक्षा मे सामिल होकर सभी विषय उत्तीर्ण हो गए । परन्तु उत्तीर्ण प्रमाणपत्र देखाने के बाद भी उन्हे प्रैक्टीकल परीक्षा मे समावेश नही होने दिया । तत्कालिन विज्ञान शिक्षा विभाग प्रमुख प्राध्यापक केदार श्रेष्ठ ने उन्हे परीक्षा से बञ्चित कर दिए । वह वहाँ फूट फूट कर रोए, विद्यार्थी युनियन मे भी गए । फिर भी वह परीक्षा से बञ्चित रहे । परीक्षा हल के बाहर गिडगिडाते रहे श्रेष्ठ ने उनकी एक नही सुनी । वाध्य होकर वहाँ से वह लौट गए । परन्तु उन्होने केदार श्रेष्ठ सर को कहाँ ‘मै विज्ञान मे ही बिएड करके आपको दिखाउँगा ’। वहाँ सिधे काठमाण्डू के प्रदर्शनीमार्ग के पद्मोदय मोड स्थित (Kathmandu Shikchha Campus) काठमाडौं शिक्षा क्याम्पस मे काँलेज प्रमुख से मिले और कहे कि वह विज्ञान शिक्षण विषय मे बिएड करना चाहते हैं । काँलेज के प्रिंसिपल हरिबिनोद अधिकारी ने कहाँ, ‘यहाँ विज्ञान विषय के बिएड करने वाला विद्यार्थी नही हैं, पढाई नही होता हैं । हाँ तुम १०/१२ विद्यार्थी का समूह बनाकर ला सको तो पढाई हो सकती है । काठमाण्डू के एक लोकप्रिय विज्ञान शिक्षक बन जाने के कारण उन्हे विद्यार्थी जम्मा करने मे समस्या नही हुई ।  कलेज ने पढाई शुरु करी । वही बैच ‘फस्ट एन्ड लास्ट ’ रहा । सन् २००० मे उन्होने द्वितीय श्रेणी मे बिएड(B.Ed In Science) एक वर्षे उत्तीर्ण किए । उसी दौरान लोकसेवा आयोग की तयारी करने हेतु जनप्रशासन विषय मे स्नातकोत्तर (एमपीए) भी कर लिए । द्वितीय श्रेणी मे विकास प्रशासन विशेषज्ञता सहित एमपीए (MPA) उत्तीर्ण किए ।

नेपालमे मधेसी के प्रति हो रहा शोषण और विभेद को खुद करीब से अनुभव करने के कारण उन्होने बिस २०५५ मे मिडिया पोइन्ट से १० महिने पत्रकारिता की प्रशिक्षण भी लिए । ३३ परीक्षार्थीयों मे वह सर्वप्रथम हुए । उन्ही के बैच के डा. मञ्जू मिश्र नेपालमे पत्रकारिता विश्वविद्यालय स्थापना करने के अन्तिम चरण मे हैं । वर्षौ से वह पत्रकारिता के काँलेज चला रही है । दिनेश यादव ने पत्रकारिता तो  प्रशिक्षण लेने से पहले ही शुरु कर चुके थे । नयाँ दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘कादम्बिनी’ मे सन् १९९६ अप्रिल मे हिन्दी मे कविता प्रकाशित हुई थी । सन् १९९७ मे राष्ट्रिय हिन्दी प्रतिष्ठान से प्रकाशित होने वाली ‘नव प्रतिबिम्ब’ के पहले सहयोगी संपादक और बाद मे कार्यकारी संपादक के भूमिका निर्वाह किए । उस वक्त पत्रिका के प्रधान संपादक लोकेशर दत्त ‘व्यथित’ थे । वह पत्रिका प्रतिष्ठान के अध्यक्ष अनिलकुमार झा( हाल जनता समाजवादी पार्टी के नेता) और महासचिव राकेश मिश्रा (जनता समाजवादी पार्टी के नेता) बीच विवाद होने के कारण बन्द हो गई । बाद मे सुकेश्वर पाठक प्रकाशक/संपादक रहे पत्रिका ‘विश्लेषण’ मे भी सहयोगी के भूमिका मे उन्होने काम किया ।


पत्रकारिता के टर्निङ पोइन्ट दिनेश यादव के लिए तब हुआ जब उन्हे नेपाल के नम्बर एक दैनिक अखबार कान्तिपुर मे उनका चयन हुआ । सन २००० मे सैकडौं प्रतियोगी को पिछा करते हुए उन्होने कान्तिपुर मे योग्यता क्रम मे दो नम्बर पर नाम निकाल कर ब्रोडसिट पत्रकारिता मे कदम रखा । परन्तु वहाँ पर भी मधेसी के कारण साइडलाइन लगाने की प्रयास हुआ । परन्तु वह कभी भी हार नही माने । २० वर्ष के कान्तिपुर के यात्रा मे उनका एक दफा प्रोमोसन मिला है । परन्तु कान्तिपुर मे उन्होने खेलकूद और विचार पृष्ठ के आलावा सभी पृष्ठ मे सर्वोत्कृष्ठ प्रदर्शन कर चुके हैं । मैथिली भाषी होने के बाबजूद उन्होने नेपाली भाषा संपादन मे अपना दखल रखे है । डेक्स मे उनका सक्रियता सराहनिय रहा है । उनके साथ कान्तिपुर ने उस समय भी भेद्भाव करने की प्रयास किया, जब कर्मचारी को स्थायी किया गया था । विस २०६४ मे स्थायी कर्मचारी के सूची मे उनको सामेल नही करने के कारण यादव ने विद्रोह किया, और कान्तिपुर उन्हे स्थायी करने के लिए बाध्य हुआ । डेक्स मे सक्रिय रहने के बाद भी उनका योगदान अर्थवाणिज्य के अन्तर्राष्ट्रिय समाचार, विश्व के धनाढ्य सौं से ज्यादा व्यक्तियो का प्रोफाईल लिखा, जो हमेशा लोकप्रिय और सबसे अधिक पढे जाने वाली सामग्री बना । कान्तिपुर के बाल विशेषांक ‘कोपिला’  मे भी दर्जनौं बालबालिका के लिए विज्ञान संबन्धि पठनीय सामग्री परोसा है । इसि तरह कान्तिपुर के ही ‘ईपत्रिका’ के विज्ञात और प्रविधि के साप्ताहिक स्तंभमे टेक सम्बन्धित दर्जनों पठनीय सामग्री परोसे हैं । कान्तिपुरके विशेष अवसर पर प्रकाशित होने वाला विशेषांक मे सह–समन्वयनकर्ता संपादक के जिम्मेवारी  उन्होने निर्वाह करी हैं ।

कान्तिपुर मे प्रकाशित यादव के चर्चित आलेख :[सम्पादन]

  1. तयार भयो हातैले बोक्न मिल्ने साइकल (७ फाल्गुन २०७५) ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि)
  2. सन् २०१८ का चर्चित प्रविधि र ग्याजेट्स (२० पुस २०७५) ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि).
  3. नासाले खिच्यो सूर्यको सबैभन्दा नजिकबाट तस्बिर (५ पुस २०७५) ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि)
  4. महँगो विवाह (२९ मंसिर २०७५) ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थ/वाणिज्य) (धनीको कुरा स्तम्भ अन्तिम शृंखला )
  5. महँगो विवाह (२९ मंसिर २०७५) ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थ/वाणिज्य)
  6. मंगल ग्रहमा हावा बहेको आवाज सुनियो (२६ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि )
  7. पत्रिका बिक्रेताको अर्बपति यात्रा (२२ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थ/वाणिज्य)–धनीका कुरा
  8. ८.मानिसको नक्कल गर्ने रोबोट (१८ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि  
  9. टिकट बेच्ने नायक बने (१५ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थ/वाणिज्य)
  10. रोग पत्ता लगाउने हाई–टेक शौचालय (११ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि )
  11. धनीका कुरा : जो घरदैलोमा सामान बेच्छन् (८ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थ/वाणिज्य)
  12. चिनियाँले बनाए ‘नेट गार्ड ड्रोन’ (३ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर, (विज्ञान र प्रविधि)
  13. बोलेरै अर्बपति (१ मंसिर २०७५), ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थवाणिज्य)
  14. उड्ने बाइक बन्यो, बुकिङ खुला (२५ कार्तिक २०७५), ईकान्तिपुर (विज्ञान र प्रविधि)
  15. सीडी बेच्ने बने अर्बपति (१७ कार्तिक २०७५), ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थवाणिज्य)
  16. सुपरम्यान लिका सिङ(१० कार्तिक २०७५), ईकान्तिपुर/कान्तिपुर (अर्थवाणिज्य)

जीवन मे योगदान[सम्पादन]

दिनेश यादव की एक गरीब परिवार मे जन्म लेने के बाद भी अपने संघर्ष के बल पर सफलता की चोटी पर पहुँचे हैं । उन्होने कम बेतन पर बालबालिकाको शिक्षा प्रदान किए । नेपालस्थित युनेस्को (#UNESCO) के Mass communication committee के सदस्य मे नेपाल सरकार द्वारा मनोनयन होने के बाद उन्होने मधेस क्षेत्र के सप्तरी, सिरहा, धनुषा, सर्लाही, वारा, पर्सा, महोत्तरी और रौटहट जिले मे सचेतना कार्यक्रम के लिए पत्रकारों के मार्फत अभियान चलाया । उन्होने पत्रकारो को सिखाया की आबाजबिहिन की कौन सी मुद्दा को उठाई जानी चाहिए ? यादव जापानी अन्तर्राष्ट्रिय संस्था जाइका के आजिवन सदस्य रहकर भी काम कर रहे हैं । संस्था मे सदस्य के रुप मे विभिन्न कृषि क्षेत्र के स्थलगत अध्ययन कर मिडिया मे लागे का काम भी उन्होने किया । नेपाल में मधेसी के साथ हो रहे भेद्भाव और अन्याय के कारण और निवारण के लिए मधेसी राजनीतिक दल के उदय सम्बन्ध मे अनुशन्धान किए । उनके अनुशंधान ‘नेपाल मधेस पाउण्डेसन के जर्नल ‘मधेस अध्ययन मे सन् २०१३ मे ‘मधेस राजनीतिक दल : उदय र विभाजन’ शीर्षक शोध आलेख प्रकाशित हैं ।

नेपाली भाषा मे विभिन्न समसामयिक विषय पर अपना विचार रखकर अलख जगाया है । नविकरणीय ऊर्जा पर भी उन्होने लिखा है । नेपाली भाषा मे ‘नवीकरणीय ऊर्जाको चाखलाग्दो विस्तार’ शीर्षक के आलेख पहले कान्तिपुर मे और बाद मे अन्य अनलाइन पोर्टल मे प्रकाशित किया गया हैं ।

नेपाल मे आवादी के आधार मे आठवाँ नम्बर पर रहा यादव समुदाय को नेपाली आदिवासी होने के लिए सरकार पर दबाब कायम करने के लिए डा. नागेन्द्रप्रसाद यादव और रामसुरत यादव के सह–लेख मे यादव नेपालको आदिवासी’ पुस्तक भी लिखे । पुस्तक का प्रकाशन नेपाल यादव सेवा समिति काठमाण्डू ने किया था ।  पत्रकार क उपर हुए विभेद पर आन्दोलन मे भी ऐक्यवद्धता जाहेर करने मे हमेसा आगे रहा ।

इसि प्रकार यादव के मातृभाषा मैथिली है  । परन्तु उन्होने मैथिली सहित नेपाली, हिन्दी आदि मे कलम चलाकर अपनी योगदान चोटी पर रखे । शिक्षण पेशामे रहते समय अच्छा परफोर्मेन्स देखाने के बाद उन्होने नेपाल सरकार के निर्णय पर जापान मे शिक्षण प्रशिक्षण के तीन माह के लिए पठाया । नेपाली पत्रकारिता मे अतूलनीय योगदान हेतू उन्हे प्रेस काउन्सिल नेपाल से दश हजार रुपैयासहित समावेशी पत्रकारिता पुरस्कार से नाबाजा गया । मैथिली भाषा मे महत्वपूर्ण योगदान पहुचाने के लिए यादव को एक लाख राशी के विद्यापति पुरस्कार प्राप्त हुई ।  

हिन्दी भाषा मे योगदान[सम्पादन]

सन् १९९६ मे दिनेश यादव का हिन्दी कविता भारत के नई दिल्ली से प्रकाशित ‘कादम्बिनी’ मे ‘मै कवि न था कभी’ प्रकाशित  हुई थी । इसके बाद उनका नाम हिन्दी कवि के रुप मे होने लगा । दर्जन से ज्यादा कविता विभिन्न पत्रिका मे प्रकाशित है । उसमे से कुछ है - डा. हीरालाल नंदा ‘प्रभाकर’ संपादक और जागृति प्रकाशन महाराष्ट्र भारत द्वारा सन २००० मे प्रकाशित ‘गीत दर्पण’ मे ‘आखिर कब तक ?’ शीर्षक मे गीति कविता छपि थी । इनके कविता लोकेश्वर दत्त प्रधान संपादक रहे और राष्ट्रिय हिन्दी प्रतिष्ठान त्रिपुरेश्वर काठमाण्डू द्वारा प्रकाशित हिन्दी द्विमासिक पत्रिका नब प्रतिबिम्ब मे भी छपी है । वह कविता ही नही लिखते है, समसामयिक विषय मे सटिक विश्लेषण करने मे भी अबल है और दखल रखते हैं । काठमाण्डू से प्रकाशित ‘हिमालिनी ’[१] हिन्दी मासिक मे दर्जन से अधिक सामग्री छपी है । उनमे से कुछ हैं–सन् २००९ डिसेम्बर के अंक १२ मे ‘लेवी में डेमोक्रेट्स से आगे वामपंथी’, सन २००८ डिसेम्बर मे ‘समाधान नही है बंदूक,  सन् २००८ के अक्टूबर अंक मे ‘कहानी पंचतंत्र की’, २०१० के मई अंक मे ‘आमहड्ताल और वर्तमान सरकार’ शीर्षक मे समसामयिक विश्लेषण प्रकाशित हैं । इसी प्रकार नेपाल के काठमाण्डू से ही प्रकाशित हिन्दी पत्रिका ‘पालिटिक्स’ मासिक मे भी इन्होने बैनर स्टोरी लिखे हैं । ‘पालिटिक्स’ पत्रिका मे प्रकाशित सामग्रीयों मे से कुछ है– जनवरी २०१० के अंक मे ‘ मर मिटेंगे लड के हम’ , फरबरी २०१० अंक मे ‘खुल जा सिम सिम’, मार्च २०१० मे ‘मोर्चा ही मोर्चा’ शीर्षक मे चर्चित समसामयिक विश्लेषण है । यह पत्रिका फिलहाल बन्द है । नेपाल से ही प्रकाशित द पब्लिक’ पत्रिका मे भी उन्होने विभिन्न विषय पर अपना विश्लेषण और अभिमत जाहेर किए हैं । ‘द पब्लिक’ के सावन २०६८ अंक मे ‘कमजोर होते मधेश मुद्दे’, आश्विन २०६८ अंक मे ‘संविधान और मधेशवादी नेता’, चैत २०७१ मे ‘आंदोलन का औचित्य और प्रभाव’, और भाद्र २०७६ अंक मे ‘मैथिली मानक की सच्चाई’ शीर्षक मे उनके द्वारा लिखे कुछ चर्चिक आलेखों मे से है ।

मैथिली भाषा मे योगदान[सम्पादन]

विस २०६८–२०७२ तक प्रकाशित मैथिली मासिक पत्रिका ‘अप्पन मिथिला’ मे भी उन्होने चर्चित आलेख और विश्लेषण लिखे है । इस पत्रिका के वैशाख २०६८ अंक मे ‘नेतासभ भेल मालामाल, जनताके भेटल ठन–ठन गोपाल’, असार–साउन २०६८ अंक मे की आबो संविधान बनत...?’,  भादव २०६८ के अंक मे ‘तीन दलीय लोकतन्त्र हावी फागुन–चैत्र २०६९ अंक मे ‘कहियाधरि मौन रहत मधेशक भविष्य ?’, श्रावण २०६९ अंक मे ‘नेता आगा मधेस पाछा’, जेठ २०६९ मे.‘संविधान सभा भंग किएक ?’, अगहन–पुस २०६९ अंक मे ‘ सहमतिक सुगा रटान’ पुस–माघ २०७१ अंक मे ‘विवश जनता बेइमान नेता’ शीर्षक मे चर्चित आलेख प्रकाशित हैं ।

नेपाल के सरकारी अनुदान से संचालन मे रहा ‘नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान’ कमलादी काठमाण्डू’ से प्रकाशित अर्धवार्षिक वहुभाषिक पत्रिका ‘सयपत्री’ मे ‘ मैथिली भाषा आ साहित्य : समस्या आ समाधान’ शीर्षक मे अनुशन्धानमूलक आलेख छपी है । यह आलेख से मिथिला क्षेत्र मे सनसनी सा फैल गया । इसी प्रकार प्रज्ञा प्रतिष्ठान से ही प्रकाशित वार्षिक मैथिली पत्रिका ‘आङन’ मे ‘भाषिक पत्रकारिता : चुनौति आ समाधान [१]’ प्रकाशित है । दिनेश यादव के अन्य आधा दर्जन आलेख विभिन्न मैथिली पत्रिका मे भी छप चुकी है । उसमे से कुछ है, सन २०१९ मे प्रकाशित आंजूर पत्रिकामे ‘मैथिली भाषा के सरलीकरण’ और ‘मैथिली साहित्य मे ऋतु’ तथा ‘मिथिला टाइम्स’ मे ‘ ब्राह्मणेत्तर मैथिलीः विश्लेषण आ संश्लेषण[२]’ चर्चित अनुशन्धानमुलक आलेख हैं । वह वहुत अच्छे समिक्षक भी है । उनके द्वारा नेपाली और मैथिली भाषा के लोकप्रिय और चर्चित विद्वान रामभरोष कापडि, डा.रामदयाल राकेस और रामरिझन यादवसहित के कथा, हैकू और सचित्र पुस्तक ‘ब्लैकआउट’ का अनुवाद और समिक्षा बहुखुवी के साथ उन्होने किया हैं ।

संलग्नता[सम्पादन]

विस २०७१–७५ तक दिनेश यादव नेपाल मे युनेस्को के संचार समिति के सदस्य के रुप मे चार वर्ष के कार्यकार सफलता के साथ निर्वाह किए । इससे पहले उन्होने विस २०६० मे सरकारी निकाय पाठ्यक्रम विकास केन्द्र सानोठीमि भक्तपुर मे शिक्षा ऐन २०५९ के मातहत एडिसनल कोर्स मैटेरियल्स’ के लिए ‘इभैलुएटर’ के जिम्मेवारी पुरा कर चुके है । इसी प्रकार प्रेस काउन्सिल नेपाल[३] के ‘विशेषज्ञ’ के रुप रहक कर २०७३ से लगातार पत्रपत्रिका के मूल्यांकन कर वर्गिकरण के लिए सिफारिस करने मे योगदान दे रहे हैं । वह फिलहाल कान्तिपुर के वरिष्ठ उपसपादक के पद मे कार्यरत हैं ।

पुरस्कार एवं सम्मान[सम्पादन]

विस २०५५ मे काठमाण्डूस्थित व्यवसायिक पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्था से ‘टपर ट्रेनी पत्रकार–२०५५’ के सम्मान उन्हे मिला था । शिक्षक के कार्यकाल मे यादवको विस २०५६ और २०६० मे गणित और विज्ञान विषय के लिए ‘वेस्टर्न रिजनल स्कूल कमिति, काठमाण्डू द्वारा ‘एक्सेलेन्ट टिचर ’ अवार्ड प्राप्त हुआ था । इसि प्रकार काठमाण्डू जिला शिक्षा समिति से विस २०६६ मे सम्मानित हुए । विस २०६९ मे नेपाल यादव सेवा समिति काठमाण्डू द्वारा ‘रेखा यादव पत्रकारिता पुरस्कार, विस २०७३ मे नेपाल टिचर एसोसिएशन अफ नागार्जुन म्युनिसिपल्टि युनिट काठमाडौं से ताम्रपत्रसहित सम्मान प्राप्त हुआ । विस २०७४ मे रत्न राज्य मावि नागार्जुन काठमाण्डू से भी सम्मानित हुए ।

मैथिली भाषा क्षेत्र मे योगदान पहुचाने हेतू २०७५ के विद्यापति अनुशन्धान पुरस्कार[४] भी उन्हे प्राप्त हुआ । इस पुरस्कार[५] के राशी एक लाख नेपाली रुपैयाँ है ।

परिवार[सम्पादन]

दिनेश यादव के पत्नि के नाम उर्मिला यादव है । वह असल गृहणी है । उनके ही सहयोग मे यादव ने प्रगति करी है । उर्मिला के योगदान परिवार मे अत्याधिक है ।  दो पुत्र के माता–पिता ये काठमाण्डू के कलंकी मे घर बना कर रह रहे हैं ।  इनके एक सुपुत्र प्रशान्त  चिकित्सक है और दुसरे सुशान्त इन्जिनियर हैं ।


सन्दर्भ सामग्री :

https://web.archive.org/web/20180315034230/http://www.presscouncilnepal.org/np/2015/11/174

https://www.onlinekhabar.com/2019/11/810065

दिनेश यादव :आङन, ‘भाषिक पत्रकारिताः चुनौति आ समाधान’, प्रकाशक :नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमाण्डू, २०७५, पृ.४० ।

http://madheshinepali.blogspot.com/2020/01/blog-post.html

https://web.archive.org/web/20200418162054/http://www.presscouncilnepal.org/np/

https://shilapatra.com/detail/14324

दिनेश यादव :सयपत्री (बहुभाषिक अर्धवार्षिक पत्रिका), प्रकाशन : नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमाण्डू, शीर्षक : ‘मैथिली भाषा आ साहित्य :समस्य आ समाधान’ पूर्णाङ्क–३५–३६(संयुक्ताङ्क), २०७५,पृष्ठ –७६)

http://madheshinepali.blogspot.com/2020/01/blog-post.html

https://en.wikipedia.org/wiki/Phakira

https://www.mindat.org/feature-7990922.html

https://web.archive.org/web/20200305180508/http://pcampus.edu.np/

https://web.archive.org/web/20160920063721/https://en.wikipedia.org/wiki/Marwari_College

https://web.archive.org/web/20171221000954/https://en.wikipedia.org/wiki/C._M._Science_College%2C_Darbhanga

https://web.archive.org/web/20191122044038/http://local.mithilaconnect.com/news/1052-cm-science-college-darbhanga-history

http://www.loksewaguide.com/articledetail.php?type=self&id=3796#.XumFAWgzbIU

https://hi.unionpedia.org/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%80

http://www.findglocal.com/NP/Kathmandu/1772987939590032/Shree-Ratna-Rajya-secondary-School-Ramkot%2C-Kathmandu

http://www.nagarjunmun.gov.np/en/content/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%

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