You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

मगरांचल राज्य

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

मगरांचल राज्य
magranchal Province
Magranchal
ब्रिटिश भारत प्रांत

1818 – 1936

Flag of Magranchal

Flag

स्थिति Magranchal
स्थिति Magranchal
राजपूताना एजेंसी और मगरांचल प्रांत, 1909
इतिहास
 - अंग्रेजों को सौंपा गया 1818
 - सेंट्रल प्रांत और बेरार प्रांत का विलय 1936
क्षेत्रफल
 - 1881 ७,०२१ किमी² (२,७११ वर्ग मील)
जनसंख्या
 - 1881 ४,६०,७२२ 
     घनत्व ६५.६ /किमी²  (१७० /वर्ग मील)


भौगोलिक स्थिति[सम्पादन]

मगरांचल राजस्थान में उत्तरी अक्षांश २६.११' और २५.२३' तथा पूर्वी देशान्तर ७३.५७, ३०' और ७४.३०' के मध्य में स्थित है। उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग १६० कि.मी. तथा चौड़ाई लगभग १०० कि.मी., संकरी पट्टी में स्थित इसका क्षेत्रफल ३७११ वर्ग कि.मी. है जो नरवर से दिवेर तक माना जाता है। यह ८ परगनों और ५३४ बड़े ग्रामों में विभक्त है। कुम्भलगढ़ से अजमेर तक अरावली पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। पर्वतों को मेरू कहा जाता है, अतः दो मेरू के बीच का क्षेत्र मेरूवाड़ा या मिहिरवाड़ा कहलाता था, जिसका अपभ्रंश 'मगरांचल नाम से पुकारा जाने लगा।.[१]

       मगरांचल पश्चिम व उत्तर में मारवाड़ से घिरा हुआ तथा पूर्व व दक्षिण में मेवाड़ से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में यह क्षेत्र चार जिलों अजमेर, पाली, राजसमन्द, भीलवाड़ा में विभक्त है। 

मुख्य पहाड़[सम्पादन]

१. गोरम पहाड़़- यह पहाड़ मगरांचल में सबसे ऊँचा पहाड़ है, जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से ३०७५ फीट है। इसके ऊपर श्री नाथजी का एक सुन्दर एवं भव्य मन्दिर बना हुआ है। इस पर्वत श्रेणी में मारवाड़ को जोड़ने वाली रेल्वे लाईन है, जिसका निर्माण महाराणा उदयपुर ने सन् १९३४ ई. में कराया था। यह रेल्वे लाईन दो सुरंगो से होकर गुजरती है। यह क्षेत्र सघन वनों से आच्छादित, रमणीय व दर्शनीय स्थल है। २. मांगटजी का पहाड़- यह पहाड़ भायलां क्षेत्र में स्थित है। इस पर मांगट जी का मन्दिर बना हुआ है। यह क्षेत्र भी सघन वनों से आच्छादित है। ३. तारागढ़- अजमेर के पास तारागढ़ का है, जिसके ऊपर किला बना हुआ है। यह तारागढ़ हिन्दुओं के महान सम्राट वीरवर श्री पृथ्वीराज चौहान की राजधानी रहा है।

नदियां[सम्पादन]

यह कई नदियों का उद्गम स्थान है। जैसे खारी नदी दिवेर की पहाड़ियो से निकल कर मेवाड़ में बहती है। लूनी नदी कानूजा एवं कालब की पर्वत श्रेणियों से निकल कर मारवाड़ में बहती है। बांडी नदी गोरम पर्वत की श्रेणियों से निकल कर पाली क्षेत्र में बहती है।.[२]

तालाब व बांध[सम्पादन]

इस क्षेत्र में दीपावास बांध, सोपरी बांध, भोमादेह बांध, लक्ष्मीसागर, भोपालसागर, आनासागर, फॉयसागर एवं जवाजा, राजियावास, अजीतगढ़ एवं फूलसागर आदि कई छोटे-बड़े तालाब है जिनका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।

घाटे एवं घाटियां[सम्पादन]

इस क्षेत्र के घाटे एवं घाटियां का आवागमन एवं व्यापारिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। इस घाटो से बालद व भेड़ो के समूह गुजरते है। इन घाटों से डाण यहां के निवासी लिया करते थे। इनमें से दिवेर घाटा, काछबली घाटा, कोट किराना घाटा, सोपरा घाटा, पाखरिया घाटा, बार का घाटा आदि प्रमुख है।

खनिज[सम्पादन]

इस क्षेत्र में मुख्यतया अभ्रक, ग्रेफाईट, ऐस्बोस्टेज व पट्टियों की खानें है। कालागुमान के पास हीरा पन्नै की खान है।

वनस्पति[सम्पादन]

इस क्षेत्र में करीबन 1८००० एकड़ में वन है। इन वनों में धावड़ा खेर, खेजड़ा बेर, शीशम, नीम, ढाक, पीपल, वटवृक्ष, आम, ईमली, महुआ, बबूल, सेमल, गुलर, धामण आदि वृक्ष है। इन वनों से गोंद, घास, फल, ईधन की लकड़ी आदि प्राप्त होते है।

वन्य जीव[सम्पादन]

इन क्षेत्र के वनों में सिंह, बाघ, चीते, भेड़िये, जरख, हिरण, सुअर, खरगोश आदि पाये जाते है।

जलवायु[सम्पादन]

यहां की जलवायु सम शीतोष्ण है। न यहां अधिक गर्मी पड़ती है और न ही सर्दी पड़ती है। यहां कि आब-हवा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। इस क्षेत्र में वर्षा का औसत २२ इंच है।

मुख्य फसलें[सम्पादन]

यहां कि मुख्य फसलें गेहूं, जौ, मक्का, बाजरा, ज्वार, मूंग, मोठ, उड़द, कुलथ, चना, चंवला, कपास, मिर्ची, जीरा एवं कपास आदि है। यहां विभिन्न प्रकार की सब्जियों की पैदावार की जाती है। यहां के मुख्य फलों में आम, अमरुद, बेर दाड़म व खरबुजा मुख्य है।

प्रमुख त्यौहार एवं मेले[सम्पादन]

इस क्षेत्र में होली, दीपावली, रक्षाबन्धन एवं दशहरा प्रमुख रूप से मनाये जाते है। इसके अतिरिक्त गणगौर, मांगट जी की नवम्, शिवरात्रि, रामनवमी, शीतला सप्तमी, जन्माष्टमी, जलझूलनी, देवसप्तमी आदि त्यौहार भी मनाये जाते है।

इतिहास[सम्पादन]

प्राचीनकाल में उक्त मगरांचल क्षेत्र में मिहिर वंश के प्रतिहार राजपूतों का शासन था, जिसके कारण इस क्षेत्र को मिहिरवाड़ा भी कहा जाता था। नाडोल मे चौहान राजवंश के संस्थापक राव लक्ष्मण के दो पुत्र राव अनहल और राव अनूप ने मगरांचल में प्रतिहार राजपूतों को पराजित कर अपना शासन स्थापित किया। किशनगढ़ के पास नरवर से राजसमन्द जिले के महाराणा प्रताप की एक मात्र विजय स्थली दिवेर-छापली तक चीता एवं बरड़वंशीय चौहानों का राज्य था। बाद में इन दोनों ने इस राज्य का बंटवारा कर लिया, जिसमें नरवर से टोगी तक का क्षेत्र ,अन्हलवशींय (चीता मोरेचा साख) चौहानों के पास और टोगी से दिवेर तक का क्षेत्र अनूपवंशीय (बरड़ मोरेचा साख) चौहानों के पास रहा। यह क्षेत्र कभी भी मुगलों के अधीन नहीं रहा और न ही किसी राजा अथवा अंग्रेजो के अधीन रहा। जब अंग्रेजो द्वारा कई प्रयासों और समस्त नीतियों के अपनाने के बाद भी इस क्षेत्र को अपने अधीन में नहीं कर सके, तो उन्होंने एक सुलहपूर्ण रास्ता निकाला, जिसके तहत इस क्षेत्र के लोगों को भर्ती कर "मगरांचल राजपूत रेजीमेन्ट" नाम से एक अलग सेना की टुकड़ी को इस क्षेत्र का शासन सौंपकर अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया।

       फ्रांस के इतिहासकार 'मिस्टर जेक्मेन्ट' जो कि १८३२ ई. में भारत भ्रमण के लिए आये थे, इन्होंने "Letters from india" नामक पुस्तक में १८३४ ई. में अपने शब्दो में यहां के राजपूत समाज की बहादुरी और शौर्य का मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि  ― 
       "No Rajput Chief, No Mughal Emperor had ever been able to Sub-due them, Merwara always remained independant."
       "न तो कोई भी राजपूत राजा, न ही मुगल सम्राट इन्हें हराकर अपने नियन्त्रण में कर सके, इन राजपूतों का मगरांचल राज्य हमेशा स्वतंत्र रहा है।" 
       इस राज्य के राजपूत स्वभावतः वीर, स्वाभिमानी, स्वतन्त्रता प्रिय, आन-बान पर प्राण न्यौछावर करने वाले जीवट के धनी है। समय-समय पर इन्होंने उदयपुर, जयपुर, जोधपुर आदि के राजाओं को शरण व सहायता दी। मातृभूमि की स्वतन्त्रता हेतु मुगल सल्तनत व विदेशी शासको से लोहा लिया। महाराणा उदयपुर ने 'वीहल चौहान' को व महाराजा जोधपुर ने 'नरा चौहान' व कई अनेक योद्वाओं को उनके शौर्य व पराक्रम से अभिभूत होकर रावत के खिताब दिये।https://www.bhaskar.com/news/RAJ-PALI-MAT-latest-pali-news-062012-2524640-NOR.html 
       "संसार में मगरांचल ही एक ऐसा राज्य रहा है जहां के राजपूत शासक हमेशा स्वतन्त्र रहे तथा वीरता के अनूठे उदाहरण प्रस्तुत किये।".[३]   

[४]

अजमेर राज्य[सम्पादन]

1950 में, अजमेर राज्य एक "भाग सी" राज्य बन गया, जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक मुख्य आयुक्त द्वारा शासित था । कांग्रेस के एक प्रसिद्ध नेता हरिभाऊ उपाध्याय 24 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक अजमेर राज्य के मुख्यमंत्री थे।

अजमेर राज्य को 1 नवंबर 1956 को फजल अली आयोग द्वारा सुझावों की स्वीकृति के बाद राज्य पुनर्गठन अधिनियम (1956) द्वारा राजस्थान राज्य में मिला दिया गया था । अजमेर जिले के गठन के लिए तत्कालीन जयपुर जिले का किशनगढ़ उप-मंडल इसमें जोड़ा गया था ।

सन्दर्भ[सम्पादन]

https://www.bhaskar.com/news/RAJ-PALI-MAT-latest-pali-news-062012-2524640-NOR.html


This article "मगरांचल राज्य" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:मगरांचल राज्य.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]