मजलिस जमींदार (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी)
मजलिस जमींदार का जन्म सन् 1782 में दादरी गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश) के निकट ग्राम लुहारली में गुर्जर परिवार मे हुआ था। इनका पूरा नाम मजलिस भाटी था I वे उमराव सिंह गुर्जर के क्रांतिकारी साथी थे Iमजलिस जमींदार 1857 की क्रान्ति मे एक वीर क्रान्तिकारी थे ।और राजा उमराव सिंह के साथ 1857 की क्रान्ति मे हिस्सा लिया था ।जिसके कारण उन्हें रिंग लीडर एक्ट में अंग्रेजो के द्वारा बुलन्दशहर काले आम पर फांसी पर लटका दिया गया था ।उनके साथ अन्य 84 क्रान्तिकारियों को भी फांसी पर लटका दिया गया था ।मजलिस जमींदार लुहारली के बेटे का नाम नथुआ सिंह भाटी था ।नथुआ सिंह भाटी के बेटे का नाम भिक्की सिंह भाटी था ।वे एक क्रान्तिकारी थे और कई बार उन्हे आजादी के लिए जेल भी जाना पड़ा था ।वे कई बार तिहाड जेल भी गए थे ।
भिक्की सिंह भाटी को 15 अगस्त 1972 मे उस समय की प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी के द्वारा ताम्र पत्र दिया गया था ।और तीन पैंशन जो नमक आन्दोलन ,आज़ाद हिन्द फ़ौज ,और सत्याग्रह के लिए मिलती थी ।
भिक्की सिंह के तीन बेटे थे ।महावीर सिंह,रणधीर सिंह,और सर्वजीत सिंह था ।
11 सितम्बर 1803 में अंग्रेजो ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था । लेकिन अंग्रेजों और उनके पिठठुओ की लूट खसोट की नीति के चलते 1857 तक भटनेर के तमाम इलाके की खुशहाली लखोरी ईटों की चन्द चार दिवारियो में सिमट कर रह गयी थी ।एक तरफ अनाज गोदामो में पड़ा सडता था तो दूसरी तरफ अनाज अन्नदाता कहलाने वाले किसान के फुस के घर में बगैर अनाज के चक्की पर धूल जम जाती ।किसान मजदूर गाजर मूली शकरगंदी आलू साग आदि के मिल जाने पर ही महसूस करता था कि उसे जिन्दगी का सहारा मिल गया ।हालांकि किसान पूरी मेहनत और लगन से अपने खेतों में काम को अंजाम देते थे । लेकिन जब फ़सल का अनाज उठाकर घर लाने का समय आता ।तभी लगान वसूलने आ जाते अंग्रेजों के पिठठुओ के कारिंदे ।उनसे जो कुछ अनाज बचता उसे सूद खोर महाजन ले जाता ।किसान या तो फसल पकने से पहले कच्चे अनाज के होले करके थोड़ा बहुत खा लेता या फिर जो अनाज भूसे के गाठे में छुपा रह जाता उसे ही घर ले आता ।उसकी भी रोटी कई-कई दिन छोड कर बनाईं जाती ।वह भी एक -एक दो - दो रोटी हिस्सों में बाँट मिलती बाकी सांग से पेट भरना होता या जब कोई मेहमान आ जाता और उसके लिए रोटी बनती तब उसके खाने के बाद बची रोटियो को टुकड़े करके घर के बच्चो को दी जाती ।
किसी वज़ह से बारिश न हुई और खेत सूख कर फसल बर्बाद हो गई या बाढ़ से फसल बह गई तो बेचारे किसान की शामत ही आ गई । लगान वसूलने वाले जमींदार के लठैत और महाजन के लठैत भैंस और बैल खोल कर ले जाते और लाठियां बेचारे पर लभाव में पडती ।
इसी वजह से आम हिन्दुस्तानी किसान मजदूर अंग्रेजी सरकार के अलावा उनके एजेंटों जमींदार और सूद खोर महाजनों से ज्यादा दुखी था ।यही वजह थी कि जब मेरठ से काली पलटन में बगावत भडकी तो आम देहाती जनता खासकर गुर्जर लोग भी शामिल हो गए ।उस वक़्त तक आजादी जिन्दाबाद का नारा ईज़ाद नहीं हुआ था ।इन लोगों के बस यही नारे थे ।अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंको सरकार के एजेंटों को मार भगाओ उनके कोठी बंगले गिरा डालो ।जिन बही खातों में हमारे पूर्वज तक गिरवी रखें पड़े हैं और उनके कर्ज का सूद पीढ़ियों बाद तक़ वसूला जाता है ।उन्हे जला डालो यही गुस्सा था इन देहाती मजदूर किसानों को तभी तो यह लोग जमींदारों साहूकारों की हवेलीयो के किवाड़ चौखट जंगले तक उखाड़ लाए थे । भला फूस के कच्चे घरों में रहने वालों के लिए किस काम की थी ये तमाम चीजें लूटा भी तो क्या लूटा ? इन चीजों को गाव तक लाना मुफ्त में बोझ ही मरना था ।
1857 की इस जंग में एक बात काबिले गौर है कि वह यह की उस वक़्त में गुर्जर भी सरकारी ओहदेदार और जमींदार थे । लेकिन एक भी गुर्जर ऐसा नजर नहीं आता जो इस आग में न कूदा हो । जबकि दूसरी कौमों के लोग कुछ इधर तो कुछ उधर थे ।यही खामी थी कि यह क्रान्ति नाकाम हो गई । वरना ऐसे जोश और जज्बे में अंग्रेजो से कई प्रदेश खाली कराएं जा सकते थे । जो साहुकार रजवाड़े या ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए ऐसी हंगामी हालात में अपनी तिजोरियों के मुंह खोल दिया करते थे उनमें देशभक्ति का जज्बा नहीं जगा था और एक ने भी क्रांतिकारियों की मदद नहीं की थी । 1857 की क्रांति की जंग में शामिल होने वाले अनेक गुर्जर जमीदारों के नाम मौजूद हैं लेकिन यहां हम लुहारली गांव के गुर्जर जमीदार मजलिस जी का जिक्र कर रहे हैं यह भी उन्ही रहमदिल जमीदारों में से थे जो किसानों से मुनासिब भी लगान वसूलते थे ।अलावा इसके किसान के हालात देखकर उस पर रियायत भी कर दिया करते थे ।यू तो मजलिस जमीदार पहले दिन से ही क्रांति की जंग में शामिल थे लेकिन तिल बेगमपुर की महापंचायत में जब राव उमराव सिंह को क्रांति की जंग के महानायक यानी दादरी भटनेर के राजा चुन लिए गए थे तब मजलिस जमींदार ने भी अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंकने की कसम उठाई थी और अपने आसपास के नौजवान क्रांतिकारियों को शामिल करके जेली सेना बनाई थी (जेली किसान के काम आने वाला एक औजार है जिसे किसान लोग लाक और भूसा उठाने के काम में लेता है यह एक लाठी में चार पाँच लंबे शरीये लगाकर हाथ के पंजे की तरह होती है और वल्लभ भाले की जगह हथियार की तरह इस्तेमाल हो जाती है) क्रांतिकारियों के लिए एक हथियार भी थी और परचम भी क्योंकि यही दूर से नज़र भी आ जाती थी जिधर् जेली सेना चली देते। सभी क्रांतिकारी उधर ही चल देते यह जो एलान करती थी उस पर अमल करते ।राव उमराव की कमेटी की तरफ से जो हुकुम दिया जाता यह वही करती। जेली सेना में 18 57 की क्रांति की जंग में निहायत ही अहम रोल अंजाम दिया था। बुलंदशहर की जेल पर हमला करके क्रांतिकारियों को छुड़ाया गया। अंग्रेजी सरकार को पंगु बना देना सरकारी एजेंट की कोठी और हवेलीयो को तबाह और बर्बाद करना। बुलंदशहर से गाजियाबाद तक जी .टी रोड से मजाल क्या कि अंग्रेजों का हरकारा भी गुजर जाए जेली सेना की दहशत से सिकंदराबाद कि साहूकार तक सिकंदराबाद से भागकर जहां तहां जा छिपे थे। जेली सेना ने जी.टी रोड के तमाम टेलीग्राम कि तार और खंबे उखाड़ डाले थे घर यह है कि अंग्रेजी सेना की तमाम संचार व्यवस्था ही तहस-नहस कर डाली थी लुहारली गांव के जमीदार मजलिस उन क्रांतिकारी अमर शहीदों में से हैं जिन पर बाद में अंग्रेजों ने बराए मुकदमे चलाकर बुलंदशहर के काले आम पर फांसीया लगाई थी।
10 मई को मेरठ से 1857 की जन-क्रान्ति की शुरूआत कोतवाल धन सिंह गुर्जर द्वारा हो चुकी थी Iजिसकी लपटे दादरी सिकंदराबाद और बुलंदशहर तक पहुच चुकी थी I
12 मई 1857 को जिसमे उमराव सिंह गुर्जर के साथ मजलिस ज़मीदार व उनके 84 साथीयो ने सिकन्दराबाद तहसील पर धावा बोल दिया था Iऔर ख़ज़ाने को अपने कब्ज़े मे ले लिया था जिससे अँग्रेज़ी शासन भड़क चुका था इसकी सूचना मिलते ही सिटी मॅजिस्ट्रेट व सेना सिकंदराबाद आ पहुची I सात दिन तक क्रांतिकारी सेना अँग्रेज़ी सेना से टक्कर लेती रही I
19 मई 1857 को वीर क्रांतिकारी सेना को शस्त्र अँग्रेज़ी सेना के सामने हथियार डालने पड़े Iऔर 46 वीर क्रांतिकरियो को गिरफ्तार कर बंदी बना लिया गया I
इस क्रांतिकारी सेना मे गुर्जर समाज के अहम योगदान के लिए उन्हे ब्रिटिश सत्ता के कोप का भाज़न बनना पड़ा Iऔर गुर्जर समाज के लोगो को चुन चुनकर बंदी बनाया जाने लगा I
21मई 1857 को उमराव गुर्जर अपने दल के साथ बुलंदशहर पहुचे जिला कारागार पर धावा बोलकर अपने सभी क्रांतिकारी साथियो को छुड़ा लिया I
बुलंदशहर से अँग्रेज़ी शासन समाप्त होने के आसार लगने लगे लेकिन अँग्रेज़ी सेना आ जाने के कारण ऐसा नही हो पाया I
31 1857 को गाज़ियाबाद जिले के हिंदों नदी के तट पर एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ I
जिसमे मिर्ज़ा मुगल राजनिहाल सिंग ऑर वालिदाद ख़ान के साथ आसपास के गाव वाले भी अपने हथियारो के साथ इस युद्ध मे सम्मिल्लित हुए I
भारी हानि के बाद क्रांतिकारी सेना ने अपनी हार स्वकर कर ली Iउमराव सिंह गुर्जर व मजलिस ज़मीदार समेत 84 क्रांतिकारियो को गिरफ्तार कर लिया गया I
और बुलंदशहर के काला आम चौक पर फासी पर लटका दिया गया Iइनमे हिम्मत सिंह (गांव रानौली) झंडू जमींदार, सहाब सिंह (नंगला नैनसुख) हरदेव सिंह, रूपराम (बील)
फत्ता नंबरदार (चिटहरा) हरदयाल सिंह गहलोत, दीदार सिंह, (नगला समाना) राम सहाय (खगुआ बास) नवल, हिम्मत जमीदार (पैमपुर) कदम गूजर (प्रेमपुर) कल्लू जमींदार (चीती)
करीम बख्शखांन (तिलबेगमपुर) जबता खान (मुंडसे) मैदा बस्ती (सांवली) इंद्र सिंह, भोलू गूजर (मसौता) मुल्की गूजर (हृदयपुर) मुगनी गूजर (सैंथली) बंसी जमींदार (नगला चमरू)
देवी सिंह जमीदार (मेहसे) दानसहाय (देवटा) बस्ती जमींदार (गिरधर पुर) फूल सिंह गहलोत (पारसेह) अहमान गूजर (बढपुरा) दरियाव सिंह (जुनेदपुर) इंद्र सिंह (अट्टïा)
आदि क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सरकार ने रिंग लीडर दर्ज कर मृत्यु दण्ड दिया। भारत की आजादी के लिए प्रथम क्रांति युद्घ में हरदयाल सिंह रौसा,
रामदयाल सिंह ,निर्मल सिंह (सरकपुर) तोता सिंह कसाना (महमूदपुर लोनी) बिशन सिंह (बिशनपुरा)
बताया जाता है की मजलिस ज़मीदार को हाथो व पैरो मे कील ठोककर लटका दिया गया I
References
https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/noida/-/articleshow/9604911.cms
http://www.noidatodaynews.com/1857-ki-kranti/
https://books.google.co.in/books?lr=&id=CE3RAAAAMAAJ&focus=searchwithinvolume&q=mujlis
https://books.google.co.in/books?lr=&id=CE3RAAAAMAAJ&focus=searchwithinvolume&q=loharlee
https://www.jagran.com/uttar-pradesh/noida-9237861.html
http://adhunikbharatkaitihas.blogspot.in/2017/03/majlis-jamidar-luharly.html
http://adhunikbharatkaitihas.blogspot.in/2016/07/majlis-jamidar.html
https://historyofgurjars.blogspot.in/2016/07/blog-post.html
http://ashokharsana.proboards.com/thread/105/gujjar-freedom-fighters?page=2
https://medium.com/@sandeepbhati/bhikki-singh-luharly-3ae200738393
http://adhunikbharatkaitihas.blogspot.com/2017/03/bhikki-singh-luharly.html
https://plus.google.com/u/1/communities/117769638032471277181/posts/112192667760545042525
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