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शफ़ी बहराइची

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शफ़ी बहराइची
जन्मशफ़ीउल्लाह
1902
बहराइच, उत्तर प्रदेश,भारत
मृत्यु6 जुलाई 1973(1973-07-06) (उम्र 0)
बहराइच, उत्तर प्रदेश,भारत
मृत्यु स्थान/समाधिअहाता हैरत शाह दरगाह रेलवे क्रॉसिंग बहराइच
व्यवसायउर्दू कवि
भाषाउर्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
नागरिकताभारतीय
विषयग़ज़ल ,नात
उल्लेखनीय कार्यsआईना सुख़न (प्रकाशित) आईना जज़्बात (अप्रकाशित)
सन्तान5

हाजी शफ़ीउल्लाह शफ़ी बहराइची का जन्म सन 1902 ई में शहर बहराइच के ब्राह्मणीपुरा चौक बाज़ार मोहल्ले में हाजी बराती मियाँ नक़्शबंदी चूना वाले के घर हुआ। आप की शिक्षा घर पर हुई। अपने शहर बहराइच के प्रख्यात व्यापारियों में गिने जाते थे। आपकी दुकान साहित्यिक बैठकों का स्थान थी। हाजी शफ़ी ने 1963 में हज यात्रा का मुस्लिम धार्मिक दायित्व पूरा किया। 6 जुलाई 1973 को उनका निधन हुआ।.दरगाह रेलवे क्रॉसिंग से जुड़े हैरत शाह अहाते में उनकी क़ब्र मौजूद है। वे अपने अपने पिता की बगल में दफ़न किए गए थे।

साहित्यिक यात्रा[सम्पादन]

शफी बहराइची जिगर बिसवानी के शिष्य थे। शौक़ बहराइची और रफ़त बहराइची से वे परामर्श करते थे। जिगर बिसवानी से पत्राचार द्वारा अपनी काव्य रचनाओं को ठीक करवाते थे। अापकी दुकान पर बहराइच के सभी प्रख्यात हस्तियों का आना जाना लगा रहता था। शफ़ी बहराइच से प्रकाशित होने वाले साहित्यिक पत्रिका चौदहवीं सदी के संरक्षक भी थे।

साहित्यिक व्यक्तियों से संपर्क[सम्पादन]

शौक बहराइची और रफ़त बहराइची उनके दोस्तों में गिने जाते थे। कैफ़ी आज़मी जब भी बहराइच आया करेते थे तो वे शफी से ज़रूर मिलने जाते थे। अब्दुर्रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराइची बहराइच, डॉक्टर नईम उल्लाह ख़ाँ ख़्याली, बाबा जमाल बहराइची, मोहसिन ज़ैदी, वासिल बहराइची, सागर मेहदी बहराइची , ऐमन चुग़ताई नानपारवी, वासिफ़ उल क़ादरी, इज़हार वारसी, बाबू लाडली प्रसाद हैरत जैसे प्रसिद्ध रचनाकारों से गहरी दोस्ती थी। आप की दुकान शहर बहराइच के उर्दू सहित्यकारों के लिए साहित्यिक बैठक का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था जहाँ हर दिन शाम को शेरोशायरी की महफ़िल जमती थी।

साहित्यिक सेवा[सम्पादन]

शफी बहराइची पैगम्बर मुहम्मद की याद में लिखी जाने वाली शायरी नात और ग़ज़ल लिखने में निपुण थे। आप के 2 काव्य संग्रह का उल्लेख मोहम्मद नईमउल्लाह ख़ाँ ख़्याली की एक अप्रकाशित पुस्तक में मिलता है जिसके नाम (1) आईना सुख़न मत्बूआ ग़ज़ल और (2) नात व मनक़बत जलवा-ए-गाज़ी हैं। आपकी काव्य रचनाएँ मासिक शायर, आगरा, दैनिक इन्क़िलाब और मासिक चौदहवीं सदी, बहराइच के अलावा विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। शफी की काव्य पाण्डुलिपि के रूप में सुरक्षित है। नेमत बहराइची अपनी पुस्तक तज़्किरा-ए-शोअरा-ए-जि्ला बहराइच में शफी बहराइच के बारे में लिखते हैं कि:

जनाव शफी साहब कुहना मश्क़ और ज़ूददगो शायर थे, बड़ी मख़ीर और दीनदार हस्ती थी। एक फ़नकार होने के नाते आप में एक बड़ी विशेषता यह थी कि अपने कलाम में एक साथ नफ़ी और इस्बात को इस फ़नकाराना तरीके से सुमो देते थे कि सामईन का मन हैरानी और इम्तियाज़ी ही में खो जाता था। बसा औक़ात सामई अपनी गलतफहमी पर खुद मातम करता था। मखतसर ये कि आपकी ज़ाते गिरामी बहुत ही ख़ुसूसियात की हामिल थी।

शायरी का नमूना[सम्पादन]

कसम खुदा न पाया कहीं शफी अब तक।
जो कीव दे गई मुझसे कोसहर मदीने की।।

ग़ज़ल अल्हाज शफी अल्लाह शफी बहराइच

अरे तौबा उज़्र जफ़ा करूँ कभी ज़र्फ़ ऐसा मेरा नहीं।
वह हटाएँ चाहे अब मुझे कोई शिकवा कोई दया नहीं। ।
मैं समझ गया हूँ कलीम को जरा काम अक़्ल से लीजिए।
वह तमीज़ जलवा करेगा किया जिसे होश अपना रहा नहीं। ।
मेरा दस्ते अज़ उठा सही में सजा का वाक़ई हकदार मुस्तहिक़।
तो करम नवाज़ अज़ल से था मुझे सब्र फिर भी दिया नहीं। ।
तो उठा दे पर्दा तो देख लूं किसे होश है तुझे देख कर।
अभी हर निगाह है मुद्दई कोई पर्दा जबकि उठा नहीं। ।
मैं समझ गया कि है काबा मे मुझे इते्फ़ाक़ है देर से।
मैं फ़रेब जलवा न खाऊँगान कोई औरर तेरे सिवा नहीं। ।
मुझे ज़ौक उज़्र सितम सही मगर उसका इतना मलाल क्यों।
जो गिला भी है वह आप से किसी गैर से तो गिला नहीं। ।
वह बुरी कटे मेरी ज़िंदगी मुझे फ़िक्र उसकी नहीं शफी।
वह बिगड़ के मेरा करेऺगे क्या कोई बुत मेरा ख़ुदा नहीं । ।

[१] यह ग़ज़ल मासिक चौदहवें सदी बहराइच अंक फरवरी 1953 में प्रकाशित हो चुकी है।

हाल तेरे जिगर फगारों का।
जैसे नक़्शा मिट्टी बहारों का। ।
हम को तो बर्क़ से उम्मीद नही।
साथ कुछ दे जो बेक़रारों। ।
आप क्या बेनक़ाब आये हैऺ।
नूर क्यों उड़ गया सितारों। ।
जब क़फ़स तक है ज़िन्दगी महदूद।
तज़्किरा क्यों सुने बहारों का। ।
हम न कहते थे आप रोएंगे।
छोड़िए ज़िक्र बे क़रारों का। ।
मेरे छालों की कमपसरी पर।
दिल भर आया ख़ुद आज ख़ारों का। ।
मैऺ उसी दर का हूँ ग़ुलाम शफी।
सिर जहां ख़म है ताजदारों का। ।

[२]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. मासिक चौदहवें सदी बहराइच अंक फरवरी 1953 ई
  2. https://rekhta.org/ebooks/tazkira-e-shora-e-zila-bahraich-ebooks#

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]


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