उद्भ्रांत
रमाकांत शर्मा 'उद्भ्रांत' हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि और साहित्यकार है, जिन्होंने साहित्य की गद्य-पद्य की सभी विधाओं पर प्रचुर मात्रा में कार्य किया है । उद्भ्रांत ने नवगीतकार एवं हिंदी गजलगो के रूप में अपना लेखन शुरू किया था। आज वे मिथक काव्य के सफल कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनका महाकाव्य 'त्रेता' अत्यधिक चर्चित रहा है। उद्भ्रांत का जन्म 4 सितम्बर 1948 को नवलगढ़, राजस्थान में हुआ।[१]
कानपुर के पी.पी.एन. कॉलेज से वर्ष 1970 ई. में हिंदी, अंग्रेजी और अर्थशास्त्र विषयों के साथ स्नातक की उपाधि अर्जित की। वर्ष 1972 ई. में क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर से इन्होंने हिंदी में स्नाहतकोत्तर किया। भारतवर्षीय आर्य विद्या परिषद, अजमेर से विद्यावाचस्पति की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने पुणे के प्रसिद्ध फिल्म इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। उद्भ्रांत ने कानपुर के दैनिक ‘आज’ में वरिष्ठ उप संपादक के रूप में वर्ष 1975 से 1978 तक कार्य किया। श्रम विभाग में वर्ष 1978 में कुछ समय तक ज्येष्ठ पत्रकार/प्रभारी, प्रचार प्रभाग रहे।
राजभाषा (हिंदी) कार्यान्वयन के क्षेत्र में उद्भ्रांत ने अपनी पारी का शुभारंभ सन् 1978 ई. में कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी), पटना में हिंदी अधिकारी के रूप में किया। जहां पर 1981 तक सेवारत रहे। इसी दौरान उद्भ्रांत प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि नागार्जुन एवं खगेन्द्र ठाकुर के संपर्क में आए। सन् 1981 से 1988 के प्रारंभ तक भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को), कानपुर में हिंदी सह जनसंपर्क अधिकारी/ मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के पद पर कार्य किया। सन् 1988 से मार्च 1991 तक कानपुर में ‘सर्जना प्रकाशन’ नामक प्रकाशन संस्था का संचालन किया। अप्रैल 1991 से भारतीय प्रसारण सेवा के पहले बैच के अधिकारी के रूप में सहायक केन्द्र निदेशक के पद पर दूरदर्शन के पटना, इम्फाल, मुंबई और गोरखपुर केन्द्रों में कार्य किया। दिसम्बर 1995 से मार्च 1996 तक दूरदर्शन महानिदेशालय, नई दिल्ली में उप कार्यक्रम नियंत्रक तथा मार्च 1996 से अगस्त 2001 तक उप निदेशक (कार्यक्रम) रहे। दूरदर्शन अभिलेखागार का पर्यवेक्षण करने के बाद कुछ समय तक एक्जीविशन ऑफ़ प्रोग्राम्स, डीडी अवार्ड्स, रॉयल्टी एवं कोप्रोडक्शन जैसे विभिन्न अनुभागों में कार्य किया। अगस्त 2001 से मई 2003 तक दूरदर्शन महानिदेशालय में निदेशक (कार्यक्रम), मई 2003 से अक्टूबर 2005 तक आकाशवाणी महानिदेशालय, नई दिल्ली में निदेशक (कार्यक्रम) के रूप में सुगम संगीत, जनसंपर्क एवं शैक्षिक प्रसारण कार्य देखने के बाद दूरदर्शन महानिदेशालय के उपमहानिदेशक पद से 31 मई 2010 को सेवानिवृत्त हुए। उद्भ्रांत वर्ष 1968 से 1978 तक प्रगतिशील लेखक संघ, कानपुर के महासचिव पद पर भी रहे।
कवि उद्भ्रांत को अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक सम्मानों एवं पुरस्कारों से विभूषित किया गया है। इनके नवगीत संग्रह ‘देह चाँदनी’ को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने सन् 1984 ई. में ‘निराला पुरस्कागर’ से सम्मानित किया। वर्ष 1988 में इन्हें शिवमंगल सिंह सुमन पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1988 में ही बाल साहित्यकार परिषद लखनऊ ने इन्हें ‘बाल साहित्य श्री’ की उपाधि से विभूषित किया। प्रसिद्ध बाल साहित्य पत्रिका ‘बाल साहित्य समीक्षा’ का मार्च 2004 का अंक उद्भ्रांत विशेषांक है। इनकी रचना ‘लेकिन यह गीत नहीं’ को हिंदी अकादमी दिल्ली् द्वारा ‘साहित्यिक कृति सम्मान’ दिया गया। ‘स्वपयंप्रभा’ पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने ‘जयशंकर प्रसाद अनुशंसा पुरस्कार’ देने की घोषणा की किन्तु उद्भ्रांत ने इसे स्वीकार करने से इंकार किया। 2010 में मुंबई की सुप्रसिद्ध संस्था प्रियदर्शिनी अकादमी ने उद्भ्रांत को ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’ से सम्मानित किया है। यह पुरस्कार उनके बहुचर्चित महाकाव्य ‘त्रेता’ पर दिया गया है।
‘राधामाधव’ (महाकाव्य) को वर्ष 2018 प्रथम ‘गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’ 2 जून, 2018 को रूस की राजधानी मास्को में दिया । ग़ज़लों का विख्यात गायकों द्वारा गायन । लम्बी छन्द कविता ‘रुद्रावतार’ को देश में असाधारण चर्चा मिली और अंग्रेज़ी सहित दर्जन भर भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर हिन्दी की कालजयी कविताओं में परिगणित । 15 बालोपयोगी पुस्तकों सहित 100 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित । विभिन्न विश्वविद्यालयों के अनेक शोध छात्रों ने कवि के विविध रचनाकर्म पर आधा दर्जन एम॰फिल॰ एवं पी॰एच॰डी॰की उपाधियां प्राप्त कीं । सृजन के विविध स्वरूपों के संदर्भ में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के दिल्ली, मुम्बई, लखनऊ, भुवनेश्वर, जयपुर, भोपाल, इंदौर, मुजफ्फरपुर, पटना, वाराणसी, गोरखपुर और रामपुर केन्द्रों ने कवि को केन्द्र में रखकर साक्षात्कार, वृत्तचित्र, नृत्यरूपक आदि निर्मित किये जिनकी विशेष सराहना हुई । श्रीमद्भगवद्गीता के उनके द्वारा किये गए लोकप्रिय पुनर्सृजन ‘प्रज्ञावेणु’ पर दिल्ली दूरदर्शन ने ‘प्रज्ञावेणु विमर्श’ नामक एक घंटे की अवधि का कार्यक्रम भी किया । ‘रुद्रावतार’ के कथक एवं ओडिसी शैली में दो नृत्यरूपक क्रमश दिल्ली एवं भुवनेश्वर केन्द्रों से तथा आकाशवाणी के दिल्ली, अंबिकापुर और रीवाँ केन्द्रों से संगीत प्रस्तुतियाँ की गईं । वर्ष 2018 के अंत में दूरदर्शन के चर्चित सीरियल ‘पंखुड़ियां’ के प्रोड्यूसर योगेश कुमार ने ‘प्रज्ञावेणु’ और ‘रुद्रावतार’ के ऑडियो–विज़ुअल राइट्स प्राप्त करने के लिए कवि के साथ नौ लाख रुपए और सात प्रतिशत रॉयल्टी का, हिन्दी कविता के इतिहास का सबसे बड़ा करार कियादो लाख रुपए का साइनिंग अमाउंट देते हुए। डॉ॰ शिवपूजन लाल ने मुंबई विश्वविद्यायल से उद्भ्रांत के मिथकीय काव्य पर पीएच.डी. की है।
महान गीति-कवि हरिवंशराय बच्चन द्वारा उद्भ्रांत को लिखे गए सौ से ज्यादा पत्रों का संपादन कर उद्भ्रांत ने बच्चन जी के अनछुए पहलुओं को प्रकाशित किया है। कवि उद्भ्रांत के नाम लिखे उनके ये पत्र व्यक्तिगत तो अवश्य हैं, किंतु साहित्य, कला, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म और दर्शन के अनेक अनछुए बिम्बों को पहली बार प्रस्तुत करने के कारण ये साहित्य के ऐसे दस्तावेज बन गए हैं जो बुद्धिजीवियों की विशिष्ट श्रेणी के साथ-साथ जन-सामान्य के लिए भी उतने ही उपयोगी हैं और अपना सार्वकालिक महत्व रखते हैं।
कवि उद्भ्रांत द्वारा सम्पादित यह पुस्तक पत्र ही नहीं बच्चन मित्र है इस दृष्टि से विलक्षण है कि इसमें बच्चन जी के पत्रों के अतिरिक्त उनके अपने व लेखकीय परिवार के भी कुछेक सदस्यों के पत्र शामिल हैं। ‘‘कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है। इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट है रवीन्द्रनाथ में भी ऎसा ही विस्फॊट हुआ था, साथ ही इनमें रचनाकार की सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी।’’ ये बातें मूर्द्धन्य आलोचक डॉ॰ नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों ‘अस्ति’ (कविता-संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं ‘राधामाधव’ (प्रबंध-काव्य) के लोकार्पण के अवसर पर दिल्ली में आयोजित ‘समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्म’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं। हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक,अनुवादक,लेखक दिनेश कुमार माली के उद्भ्रांत जी के त्रेता महाकाव्य पर अपनी आलोचना पुस्तक 'त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन' तथा 'राधामाधव' महाकाव्य पर 'राधामाधव: एक समग्र चिंतन' हिन्दी जगत में चर्चा के विषय रहे हैं।
प्रमुख पुस्तकें : ‘त्रेता’, ‘अभिनव पांडव’ और ‘राधामाधव’ (महाकाव्य), ‘स्वयंप्रभा’ एवं ‘वक्रतुण्ड’ (खण्ड-काव्य), ‘अनाद्यसूक्त’ (आर्ष काव्य), ‘ब्लैकहोल’ (काव्य-नाटक), ‘प्रज्ञावेणु’ (गीता का मुक्तछन्द में यथारूप पुनर्सृजन), ‘जल’, ‘अस्ति’, ‘इस्तरी’, ‘हँसो बतर्ज़ रघुवीर सहाय’, देवदारु–सी लम्बी गहरी सागर–सी, ‘शब्दकमल खिला है’, (‘नाटकतन्त्र तथा अन्य कविताएँ’ (जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद प्रो॰ आर॰एन॰आर्य ने किया ‘काली मीनार को ढहाते हुए’ (सभी समकालीन कविताएं), ‘लेकिन यह गीत नहीं’, (नवगीत), ‘मैंने यह सोचा न था’ और ‘ज़मज़म भी समंदर में है’ (ग़ज़ल), पुस्तक का श्री रामप्रसाद शर्मा ‘महर्षि’ द्वारा रूपातंरित उर्दू संस्करण भी प्रकाशित, ‘मैंने जो जिया’ (आत्मकथा) का पहला खंड ‘बीज की यात्रा’, ‘नक्सल’ (लघु उपन्यास), ‘डुगडुगी’ (कहानियाँ), ‘उद्भ्रांत : श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘कहानी का सातवां दशक’ ‘मेरी प्रगतिशील काव्य–यात्रा के पगचिह्न’ (संस्मरणात्मक समीक्षा) तथा ‘आलोचना का वाचिक’ (वाचिक आलोचना), तथा ‘आलोचक के भेष में’ एवं ‘मुठभेड’ (आलोचना), ‘समय के अश्व पर’ (गीत–नवगीत), ‘शहर–दर–शहर उमड़ती है नदी’, ‘स्मृतियों के मील–पत्थर’ और ‘कानपुर ओह कानपुर!’ (संस्मरण), ‘चंद तारीख़ें (डायरी), ‘मेरे साक्षात्कार’ (इंटरव्यूसज) । ‘ब्लैकहोल’, ‘अनाद्यसूक्त’, ‘अभिनव पाण्डव’ और ‘राधमाधव’ के अंग्रेजी अनुवाद (अनुवादक श्री गणेशदत्त पाण्डेय) और स्वयंप्रभा का अँग्रेजी अनुवाद श्रीमती रजनी चावडा द्वारा हुए है । ‘राधामाधव’ के ओड़िया (डॉ॰ श्रीनिवास उदगाता), डोगरी (यशपाल निर्मल), उर्दू (रिफ़अत शाहीन) और छत्तीसगढ़ी (ममता अहार), ‘वक्रतुंड’ (जितेंद्र मिश्रा ) और ‘त्रेता’ (जितेंद्र मिश्रा) महाकाव्यों का मैथिली में अनुवाद।
संचयन : ‘सदी का महाराग’ (चयन एवं संपादन : डॉ॰ रेवती रमण) ( उद्भ्रांत की बीसवीं शती मेंरे रचित कविताओं तक परिसीमित)
सम्पादन : ‘युग प्रतिमान’ (पाक्षिक), ‘युवा’, ‘पोइट्री टुडे’ (अंग्रेज़ी), पत्र ही नहीं बच्चन मित्र हैं (बच्चन जी के 121 पत्र), त्रिताल (विश्वविद्यालयों के लिए पाठ्य संकलन), लघु पत्रिका आन्दोलन और युवा की भूमिका (आलोचना), लोकार्पण की भूमिका और दलित विमर्श ।
सह–रचनाकार : ‘नवगीत सप्तक’ एवं ‘नवगीत अर्द्ध’शती’ (सं:- डॉ॰ शम्भुनाथ सिंह), ‘श्रेष्ठ कहानियाँ : 1982’ (सं:- डॉ॰राकेश गुप्त, डॉ॰ ऋषि कुमार चतुर्वेदी) और ‘20 कहानीकार’ (सं:- सतीश जमाली) ।
मूल्यांकन : त्रेता: एक अंतर्यात्रा (लेखक: डॉ॰आनंद प्रकाश दीक्षित), रुद्रावतार विमर्श (सं:- डॉ॰ नित्यानंद तिवारी), उद्भ्रांत का गद्य (सं:- खगेन्द्र ठाकुर), राधामाधव :राधामाधव और कृष्णत्व का नया विमर्श (सं:- कर्णसिंह चैहान), अभिनव पांडव विमर्श (सं:- कर्ण सिंह चैहान), उद्भ्रांत का संस्कृति–चिंतन (ले:- नंदकिशोर नौ टियाल), त्रेता विमर्श और दलित चिंतन (ले:- कँवल भारती), उद्भ्रांत का काव्य:बहुआयामी विमर्श (सं:- डॉ॰करुणाशंकर उपा/याय), त्रेता : एक सम्यक् मूल्यांकन (लेखक:- दिनेश कुमार माली), राधामाधव:एक समग्र चिंतन (लेखक:-दिनेश कुमार माली) साहित्य–संवाद: केन्द्र में उद्भ्रांत (ले:- अवधबिहारी श्रीवास्तव),उद्भ्रांत का काव्य: मिथक के अनछुए पहलू (ले :- डॉ॰ शिवपूजन लाल), रुद्रावतार और राम की शक्तिपूजा (सं:- डॉ॰लक्ष्मीकांत पांडेय),उद्भ्रांत की ग़ज़लों का यथार्थवादी दर्शन एवं हिन्दी ग़ज़ल का सौंदर्यात्मक विश्लेषण (दोनों पुस्तकों के लेखक:- अनिरुद्ध सिन्हा), राम की शक्तिपूजा एवं रुद्रावतार (ले:- शीतल सेटे), उद्भ्रांत का बाल–साहित्य: सृजन और मूल्यांकन (सं:- डॉ॰ राष्ट्रबंधु एवं जयप्रकाश भारती), कवि उद्भ्रांत: कुछ मूल्यांकन–बिंदु (सं:-ऊषा शर्मा), ‘प्रज्ञावेणु विमर्श’ (डॉ॰ यतीन्द्र तिवारी) ।
विशेष : रूस, चीन, भूटान और नेपाल की साहित्यिक यात्राएं। स्थायी-पता : ‘अनहद’, बी–463, केन्द्रीय विहार, सेक्टर–51, नोएडा–201303 दूरभाष : 0120–2481530, 09818854678, 8178910658 (मो.) ईमेल : udbhrant@gmail.com
सन्दर्भ[सम्पादन]
https://dineshkumarmali.in/BlogView.aspx?Blog=Na4dke6FXn1upUi
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