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मुकुटधारी प्रसाद चौहान

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मुकुटधारी प्रसाद चौहान

मुकुटधारी प्रसाद चौहान
1901-1972

स्वतंत्रता सेनानी
जन्मस्थल : भीतिहरवा, पश्चिम चम्पारण
धर्म: हिंदू
आन्दोलन: नमक आंदोलन और चम्पारण सत्याग्रह
राष्ट्रीयता: हिंदुस्तानी
स्मारक: मुकुटधारी प्रसाद चौहान समृति भीतिहरवा


एक स्वतंत्रता सेनानी थे। मुकुटधारी प्रसाद चौहान का जन्म 1901 में बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले के भितिहरवा गांव में हुआ था।[१] उनका नाम बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल था,[२] उन्होंने 1930 के नमक आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। चंपारण शहर के भितिहरवा में महात्मा गांधी आश्रम में उनके नाम पर एक प्रतिमा बनाई गई है। उनके बाद बाद उनके सुपुत्र श्री अरविंद चौहान ने भी अपना जीवन समाज सेवा में ही गुजारा।अभी उनके सुपौत्र अनिल चौहान भी अपने दादाजी के तरह ही अपना सर्वस्व न्योछावर झोंक दिया समाज सेवा हेतु। कुल मिलाकर चौहान परिवार का बहुत ही बड़ा योगदान रहा है सामाजिक उत्थान में।[३][४]

प्रारंभिक जीवन[सम्पादन]

श्री मुकुटधारी प्रसाद चौहान का जन्म 1875 में पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज के पास भीतिहारवा गाँव में एक नोनिया परिवार में हुआ था।

इतिहास[सम्पादन]

स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाला ऐसा ही एक महत्वपूर्ण नाम है मुकुटधारी प्रसाद चौहान। 1917 में जब महात्मा गांधी अंग्रेजों के जुल्म से पीड़ित किसानों की आवाज बनने चंपारण आये तो मुकुटधारी उनके सहयोगी बने। गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह में मुकुटधारी प्रसाद चौहान और राजकुमार शुक्ल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1930 के नमक आंदोलन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। वे आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गए। धन्यवाद।

इतिहास के पन्नों से - भुले बिसरे लोग[सम्पादन]

भारतीय इतिहास में जिला "चम्पारण" का नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा हैं॰ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रह की जन्म स्थली के रूप में भी जाना जाता हैं।

यहाँ के किसानों को अंग्रेजों द्वारा प्रताड़ित किया जाता था,जो बहुत ही असहनीय एवम पीड़ादायक था ॰ लेकिन जब यहाँ के किसानों को महात्मा गांधी के बारे में पता चला

वे उनसे मिलने को बेताब हो गये क्योंकि इन्हें दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी द्वारा किये गये गतिविधि के बारे में जानकारी हो गयी थी यहाँ के किसानों को पुर्ण विश्वास था की अंग्रेज़ो को करारा जवाब गांधी जी ही दे सकते हैं ॰ लखनऊ कॉंग्रेस अधिवेशन की खबर जैसे इन्हें मिली तो उनसे मिलने की रणनीति बनाई गयी जिसमें राजकुमार शुक्ला ,मुकुटधारी चौहान सन्त राऊत आदि की सहमति रही

1917 में अंग्रेजों के जुल्म एवम प्रताड़ित किसानों के लिए आवाज बनकर गांधी जी ने चम्पारण की धरती पर कदम रखा तब भीतिहरवा के मुकुटधारी चौहान उनके मुख्य सहयोगी बनकर उनका साथ दिये ! मुकुटधारी प्रसाद चौहान का जन्म चम्पारण के एक छोटे गाँव भितिहरवा में 1901 में हुआ था।

चम्पारण के भितिहरवा में महात्मा गॉंधी के द्वारा स्थापित विधालय के प्रथम छात्र मुकुटधारी चौहान थे, इन्हें कस्तुरबा गांधी के गोद में भी खेलने का मौका मिला, बचपन में गांव के लोग उन्हें दुध्दू कह कर पुकारते थे. कस्तुरबा गांधी उन्हें बहुत दुलार देती थी हालांकि बाद में राजेन्द्र बाबू ने पढ़ने के लिए उन्हें पटना बुला लिया. मुकुटधारी चौहान के पास पैसे की कमी नहीं थी वे जमीन्दार घराने से थे.

जब देश में "करो या मरो" आन्दोलन परवान चढ़ रहा था तब मुकुटधारी प्रसाद चौहान ने होश संभाला, और जन जन तक गांधीवादी विचारों को फैलाया, देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत मुकुटधारी प्रसाद चौहान ने 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन में कुमारबाग से भितिहरवा तक रेल एवं तार व्यवस्था को ठप्प करके उल्लेखनीय योगदान दिया.

मुकुटधारी प्रसाद चौहान के पिता का साया बचपन में ही उनके सिर से उठ चुका था. लेकिन माता जागो देवी ने उन्हें कभी भी पिता की कमी एहसास नहीं दिया गुजराती शिक्षक पुण्डलिक ने अपनी पुस्तक में जिक्र किया हैं की मुकुटधारी चौहान की माँ बहुत ही शालीन व्यवहार वाली थी उनके साथ भी पुत्रवत व्यवहार रखती थी.

देश आजाद होने के बाद मुकुटधारी प्रसाद चौहान ने सरकार को अपनी जमीन देकर अस्पताल एवं बुनियादी विधालय की स्थापना कराई.इस प्रकार मुकुटधारी प्रसाद चौहान देश व समाज की सेवा में हमेशा आगे रहे।

सामाजिक लोग[सम्पादन]

*फागू चौहान

*रेणू देवी

*दारा सिंह चौहान

सन्दर्भ[सम्पादन]


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