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रामफल मंडल

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रामफल मंडल (6 अगस्त 1924 - 23 अगस्त 1943) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। दिनांक 23 अगस्त 1943 को इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा फाँसी दे दिया गया। इन पर 24 अगस्त 1942 को बाज़पट्टी चौक पर अंग्रेज सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काटकर हत्या करने का आरोप था।[१][२]

भारत छोड़ो आन्दोलन[सम्पादन]

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था|यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त सन 1942 को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। शहीद रामफल मंडल के नेत्रित्व में सीतामढ़ी में भारत छोड़ो आन्दोलन उग्र और तेज होता देख आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों द्वारा सीतामढ़ी में गोली कांड हुआ जिसमे बच्चे, बूढ़े और औरतों को निशाना बनाया गया |

आरोप[सम्पादन]

24 अगस्त 1942 को बाज़पट्टी चौक हजारों लोगों की भीड़ लाठी – डंडा, भाला, फरसा, गड़ासा इत्यादि के साथ दरोगा का इंतजार करने लगी, लेकिन इसकी भनक दरोगा को लग गई | वह सीतामढ़ी के तत्कालीन S.D.O. को सुचना देते हुए लौट गया | जिसके बाद SDO, इंस्पेक्टर, हवलदार, चपरासी एवं चालक समेत बाजपट्टी पहुँचे, लेकिन उग्र भीड़ के सामने उनकी एक न चली | रामफल मंडल ने गड़ासे के एक ही वार में SDO का सर कलम कर दिया और इंस्पेक्टर को भी मौत के घाट उतार दिया | शेष 2 सिपाही को भीड़ ने मौत की नींद सुला दी | चालक फरार हो गया और सीतामढ़ी मैजिस्ट्रेट के सामने कोर्ट में बयान दिया | सभी जगह ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वन्दे मातरम्’ का नारा गूंजने लगा | अंग्रेज पदाधिकारी भागने लगे | सार्वजानिक स्थलों पर तिरंगा झंडा फहराने लगा | रामफल मंडल अपनी गर्ववती पत्नी जगपतिया देवी को नेपाल के लक्ष्मिनिया गाँव में में सुरक्षित रख दिया | वहीँ पर 15 सितम्बर 1942 ई. को जगपतिया देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो विभिन्न झंझावातों से जूझते हुए आठ महीने बाद मौत को गले लगा लिया |

गिरफ़्तारी[सम्पादन]

चालक के बयान के बाद रामफल मंडल, बाबा नरसिंह दास, कपिल देव सिंह, हरिहर प्रसाद समेत 4 हजार लोगों के खिलाप हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया | रामफल मंडल के घर में आग लगा कर जमीन को जोत दिया गया | उनके ऊपर 5000 रु. का इनाम घोषित किया गया | नेपाल में बड़े भाई के ससुराल में अपनी धर्मपत्नी को रखने के बाद रामफल मंडल, ससुराल वालों के लाख मना कंरने के बावजूद अपने घर लौट आये| गाँव के लोगों ने उन्हें कहा – पुलिस तुम्हे खोज रही है, तुम पुन: नेपाल भाग जाओ | लेकिन आजादी के मतवाले रामफल मंडल लोगों से कहते थे कि SDO एवं पुलिस को मारा हूँ अभी और अंग्रेजी सिपाही को मारने के बाद जेल जाऊंगा | भारत की आजादी के लिए मुझे फांसी भी मंजूर है | आप लोग मेरे परिवार को देखते रहिएगा | इसी बिच दफादार शिवधारी कुंवर को रामफल मंडल के आने की सुचना मिल गई | वह रामफल मंडल का मित्र था | इनाम के लालच में उसने छल से चिकनी – चुपड़ी बातों में फंसा कर रात में नशा खिला दिया | नशे की हालत में जब वे बेहोस थे अंग्रेजी पुलिस उनका गठीला एवं लम्बा शरीर देखकर डर गये, उसने बेहोशी की अवस्था में हीं दोनों हाथ एवं पैरों को जंजीर से बांध कर गिरफ्तार किया |

जेल[सम्पादन]

रामफल मंडल एवं अन्य आरोपियों को भागलपुर सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया | उसी जेल में मुजफ्फरपुर के जुब्बा सहनी भी अंग्रेज पदाधिकारियों के हत्या के आरोप में बंद थे |

कांग्रेस कमिटी बिहार प्रदेश[सम्पादन]

दिनांक 15 जुलाई 1943 को कांग्रेस कमिटी बिहार प्रदेश में रामफल मंडल एवं अन्य के सम्बन्ध में SDO, इंस्पेक्टर एवं अन्य पुलिस कर्मियों की हत्या के आरोपो पर चर्चा हुआ | बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी – पटना के आग्रह पर गाँधी जी ने रामफल मंडल एवं अन्य आरोपियों के बचाव पक्ष में क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ने वाले देश के जाने - माने बंगाल के वकील सी.आर. दास और पी.आर. दास, दोनों भाई को भेजा |

मुकदमा[सम्पादन]

रामफल मंडल सहित अन्य आरोपियों के खिलाप 473/1942 के तहत मुकदम्मा दर्ज किया गया | वकील महोदय ने रामफल मंडल को सुझाव दिया कि कोर्ट में जज के सामने आप कहेंगे कि मैंने हत्या नहीं की | तीन – चार हजार लोगों में किसने मारा मै नहीं जानता |

दिनांक 12 अगस्त 1943 ई. को भागलपुर में जज सी.आर. सेनी के कोर्ट में प्रथम बहस हुई | जब जज महोदय ने रामफल मंडल से पूछा – रामफल क्या एस. डी. ओ. हरदीप नारायण सिंह का खून तुमने किया है ? तो उन्होंने कहा – हाँ हुजूर पहल फरसा हमने हीं मारा | अन्य लोगों ने हत्या से इंकार कर दिया | बहस के बाद वकील साहब रामफल मंडल पर बिगड़े तो उन्होंने कहा साहब हमसे झूठ नहीं बोला जाता है | गडबडा गया है, अब ठीक से बोलूँगा |

पुन: अगले दिन दिनांक 13 अगस्त 1943 ई. को बहस के दौरान जज महोदय ने पूछा - रामफल क्या एस. डी. ओ. का खून तुमने किया है ? तो उन्होंने कहा – हाँ हुजूर पहल फरसा हमने हीं मारा |

पुन: वकील महोदय झल्लाकर उन्हें डांटे और बोले अंतिम बहस में अगर तुमने झूठ नहीं बोला तो तुम समझो | रामफल मंडल बोले – साहब इस बार नहीं गड़बड़ायेगा |

तीसरी बहस के दौरान जज महोदय ने पूछा - रामफल क्या एस. डी. ओ. का खून तुमने किया है ? उन्होंने कहा – हाँ हुजूर पहल फरसा हमने हीं मारा | इस प्रकार लगातार तीन दिनों तक बहस चलती रही लेकिन रामफल मंडल ने वकीलों के लाख समझाने के बावजूद भी झूठ नहीं बोले | सायद वे सरदार भगत सिंह के फांसी के समय दिए गये वाक्यों को आत्मसात किये थे कि “विचारों की शान पर इन्कलाब धार तेज होती है ” | इन्कलाब तभी जिन्दा रह सकता है, जब विचार जिन्दा रहेगा | एक रामफल मंडल के मरने के बाद, हजारों – लाखों रामफल मंडल पैदा होकर भारत माता को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराएँगे |

फांसी[सम्पादन]

जज सी. आर. सेनी. ने रामफल मंडल को फांसी तथा अन्य आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई | फांसी देने से कुछ मिनट पहले जेलर ने पूछा – तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है ? उन्होंने कहा कि मेरी अंतिम इच्छा है कि अंग्रेज हमारे देश को छोर कर चले जाएँ, और भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कर समस्त भारत को स्वतंत्र कर दें | भादो का महिना पहला मलमास, दिन रविवार 23 अगस्त 1943 की सुबह भागलपुर सेन्ट्रल जेल में 19 वर्ष 17 दिन अवस्था में उन्हें फांसी दे दी गई | उन्होंने हँसते – हँसते फांसी के फंदे को गले लगाया और आजाद भारत के निर्माण में अपना नाम शहीदों की सूचि में दर्ज करा कर महत्वपूर्ण योगदान दिया |

शहीद के दर्जे की मांग[सम्पादन]

समता पार्टी के नेता उदय मंडल ने उनके लिए शहीद का दर्जा देने की मांग की।[३]

सन्दर्भ[सम्पादन]

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]


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