सविता आम्बेडकर
सविता आम्बेडकर | |
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सविता आम्बेडकर, १५ अप्रेल, १९४८ | |
जन्म |
शारदा कबीर 27 जनवरी 1909 मुंबई, महाराष्ट्र |
मृत्यु |
मई 29, 2003 जे.जे. अस्पताल, मुंबई | (उम्र 94)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
अन्य नाम | माई, माईसाहब, शारदा, शारु |
जातीयता | मराठी |
शिक्षा | एमबीबीएस |
शिक्षा प्राप्त की | ग्रान्ट मेडिकल कॉलेज, मुंबई |
व्यवसाय | डॉक्टर, समाजसेविका |
प्रसिद्धि कारण | भीमराव आम्बेडकर की पत्नी |
धार्मिक मान्यता | बौद्ध धर्म |
जीवनसाथी | भीमराव आम्बेडकर |
माता-पिता | कृष्णराव विनायक कबीर (पिता), जानकीबाई (माता) |
सविता भीमराव आम्बेडकर (जन्म: शारदा कबीर; 27 जनवरी 1909 — मृत्यु: 29 मई, 2003) भारतीय समाजसेविका, डॉक्टर तथा भीमराव आम्बेडकर की दूसरी पत्नी थीं। आम्बेडकरवादी लोग उन्हें आदर से माई या माईसाहब कहते हैं, जिसका मराठी में अर्थ 'माता' हैं।
प्रारंभिक जीवन एवं पढाई[सम्पादन]
शारदा का जन्म 27 जनवरी, 1909 को बम्बई के ब्राह्मण परिवार[१] में हुआ था। उनकी माता का नाम जानकी तथा उनके पिता नाम कृष्णराव विनायक कबीर था। वे रत्नागिरी ज़िले की राजापुर तहसील स्थित डोर्स गाँव के निवासी थे। बाद में उनके पिता रत्नागिरी से बम्बई आ गए। दादर के पश्चिम में कबूतरखाने के निकट सर राय बहादुर सी. के. बोले मार्ग पर किसी साहू के घर मातृछाया में किराए पर कबीर परिवार रहता था। बाबासाहब आम्बेडकर के पूर्वज भी रत्नागिरी ज़िले की ही तहसील मंडनगढ़ स्थित आंबडवे गांव में रहते थे। बाद में वह बम्बई आ गए और आम्बेडकर दादर पूर्व में हिन्दू कॉलोनी के राजगृह में रहते थे।[२]
वह पढ़ने में बहुत कुशाग्र थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में ही हुई। इसके बाद 1937 में उन्होंने बम्बई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया था। जब शारदा की पढ़ाई पूरी हुई तो गुजरात के एक बड़े अस्पताल में प्रथम श्रेणी मेडिकल आफिसर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई। लेकिन उनका स्वास्थ्य ठीक न रहने से कुछ ही माह बाद वे नौकरी छोड़कर वापस आ गईं। उनके परिवार के आठ भाई-बहनों में से छह ने अंतरजातीय विवाह किए थे। उन दिनों यह असाधारण बात थी। यह प्रगतिशीलता का सूचक था। सविता जी ने कहां हैं कि "हम भाई-बहनों के अंतरजातीय विवाह करने पर हमारे परिवार ने कोई विरोध नहीं किया। इसका कारण था कि पूरा परिवार सुशिक्षित और प्रगतिशील था।"
करियर एवं आम्बेडकर से भेंट[सम्पादन]
बम्बई के विले पार्ले में डॉ॰ एस॰एम॰ राव नामक एक मेसुरियन सदगृहस्थ रहते थे, जिनकी आम्बेडकर से घनिष्ठता थी। जब आंबेडकर दिल्ली से बम्बई आते तब वह अक्सर उनके यहाँ आ जाते थे। 1947 के आसपास शारदा कबीर भी डॉ॰ राव के घर आती-जाती थीं। राव से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे। एक दिन बाबासाहब दिल्ली से आये थे उस समय डॉ॰ शारदा भी मौजूद थीं। डॉ॰ राव ने औपचारिक रूप से उनकी पहचान यह कहते हुए कराई- "मेरी बेटियों की यह सहेली बहुत ही होशियार है। एमबीबीएस होते हुए भी डॉ॰ मालवंकर जैसे विख्यात डॉक्टर के यहाँ जूनियर के तौर पर काम कर रही है….आदि।" बाबासाहब उस समय वायसराय की कार्यकारिणी में श्रम मंत्री थे। उस समय तक डॉ॰ शारदा को डॉ॰ आंबेडकर के बारे में अधिक मालूम न था, सिवाय इसके कि वे वायसराय कौंसिल के सदस्य हैं। डॉ॰ शारदा डॉ॰ आंबेडकर के तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित हुईं। पहली मुलाकात में ही उन्हें महसूस हुआ कि डॉ॰ आंबेडकर कोई मामूली व्यक्ति न होकर एक असाधारण और महान हस्ती थे। इस पहली मुलाकात में आंबेडकर ने अपनत्व से कबीर बारे में पूछताछ की। इसका कारण था कि वे महिलाओं की उन्नति के बारे में काम कर रहे थे। आंबेडकर ने उनका अभिनंदन किया। इसी मुलाक़ात में बौद्ध धर्म के बारे में भी चर्चा हुई। इस तरह डॉ॰ आंबेडकर और शारदा जी की पहली मुलाकात यहीं डॉ॰ राव के घर पर हुई थी।
दूसरी मुलाकात उनकी डॉक्टर मावलंकर के सलाह कक्ष में हुई। आम्बेडकर को उस समय रक्तदाब, रक्तशर्करा और जोड़ो में दर्द था। 1947 में संविधान लेखन के दौरान भीमराव अंबेडकर को मधुमेह और उच्च रक्तचाप के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगी। उन्हें नींद नहीं आती थी। पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द रहने लगा। इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं किसी हद तक ही राहत दे पाती थीं। इलाज के लिए वह बंबई गए। वहीं डॉक्टर सविता इलाज के दौरान अंबेडकर के करीब आईं। अंबेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 1935 में निधन हो चुका था। इस तरह मुलाकातों का दौर आगे बढ़ा। बाद में पत्र व्यवहार भी हुआ। और आम्बेडकर से अच्छी खासी जान पहचान हो गई थी। साहित्य, समाज, धर्म आदि विषयों पर बातचीत होती थी। कभी-कभी बहस भी हो जाती थी। आंबेडकर ध्यान से सविता जी के तर्क सुनते थे। फिर अपनी बात कहते। 1947 आते-आते आंबेडकर अपनी तबियत के बारे में चिंतित रहने लगे थे। उनकी तबियत का ध्यान रखने के लिए कोई व्यक्ति होना चाहिए। 16 मार्च, 1948 को दादासाहब गायकवाड़ को लिखे पत्र में आम्बेडकर ने कहा है, "सेवा-टहल के लिए किसी नर्स या घर सम्भालने वाली किसी औरत को रखने पर लोगों के मन मे शंकाएं पैदा होंगी। अतः शादी करना ज्यादा अच्छा मार्ग है। यशवंत की मां की मृत्यु के बाद मैंने शादी न करने का निश्चय किया था। लेकिन आज के हालात में मुझे अपना निश्चय छोड़ना पड़ेगा।" आम्बेडकर ने प्रकृति कारण से डॉक्टर शारदा कबीर से वैद्यकीय सेवा ली थी। और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया।
विवाह[सम्पादन]
15 अप्रैल 1948 को शारदा ने भीमराव आम्बेडकर के साथ विवाह किया। शारदा कबीर अपने भाई के साथ 11 बजे दिन में पहुँचने वाले हवाई जहाज से दिल्ली आ गई थीं। शादी के लिए रजिस्ट्रार के तौर पर रामेश्वर दयाल डिप्टी कमिश्नर दिल्ली बुलाए गए थे। यह विवाह सिविल मैरिज एक्ट के अधीन सिविल मैरिज के तौर पर सम्पन्न हुआ था। इस अवसर पर शामिल होने वालों में राय साहब पूरण चंद, मिस्टर मेसी (निजी सचिव), नीलकण्ठ, रामकृष्ण चाँदीवाला, एस्टेट ऑफिसर मेश्राम, चित्रे और चित्रे का भतीजा, उनकी पत्नी, शारदा कबीर का भाई। साथ ही होम सेक्रेटरी बेनर्जी। नव दम्पति को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल चक्रवती राजगोपालाचारी ने 28 जुलाई, 1948 को स्नेह भोज के लिए आमंत्रित कर उनका अभिनन्दन किया था। विवाह के बाद पति पत्नी के अच्छे सम्बन्ध बने। विवाह के बाद शारदा ने 'सविता' नाम अपना लिया। किंतु आम्बेडकर उन्हें स्नेह से 'शारू' पुराने नाम से पुकारते थे, जो शारदा शब्द का संशिप्त था। एक दूसरे के विचारों को तो वे पहले से ही जानते थे। उस मुकाम से लेकर वे पत्नी और एक सहयोगी होने के नाते साये की तरह बाबासाहब आम्बेडकर के साथ रहीं।[३]
उनके विवाह से ब्राह्मण और दलित दोनों समुदायों के अनेक लोग कुपित हुए। अनेक ब्राह्मणों ने आम्बेडकर की दलित राजनीति और विचारधारा पर सवाल खड़े किए। दलितों के एक वर्ग ने कहा कि इससे गलत तो कुछ हो ही नहीं सकता था। क्या बाबासाहब को शादी के लिए एक ब्राह्मण स्त्री ही मिली थी। कइयों ने इसे ब्राह्मणों की साजिश कहा। कुछ ने खिल्ली भी उड़ाई। किंतु आम्बेडकर के बहुत से अनुयायियों ने माना कि वह जो करते हैंं, सोचसमझ कर करते हैं, ज्यादा विचारवान और समझदार हैंं, इसलिए उन्होंने उचित ही किया होगा।
समर्पित पत्नि[सम्पादन]
विवाह के बाद डॉक्टर शारदा कबीर को डॉक्टर सविता आम्बेडकर कहा जाने लगा। उन्होंने भीमराव आम्बेडकर की सेवा करने लगी। आम्बेडकर का स्वास्थ्य लगातार खराब होता चला जा रहा था। वे पूरी निष्ठा के साथ आम्बेडकर के आखरी समय तक सेवा करती रहीं। आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक भगवान बुद्ध और उनका धम्म की 15 मार्च 1956 को लिखी भूमिका में भावुक अंदाज में पत्नी से मदद मिलने का उल्लेख किया। इस प्रस्तावना में उन्होंने सविता आम्बेडकर ने उनकी आयु 8-10 वर्ष अधिक बढाने का उल्लेख किया हैं। आम्बेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों और अनुयायियों ने इस ग्रंथ से यह भूमिका हटवा दी। इसका पता १९८० ई. में चला जब पंजाबी बुद्धवादी लेखक भगवान दास ने उनकी इस भूमिका को दुर्लभ भूमिका के रूप में प्रकाशित करायी।
धर्मांतरण[सम्पादन]
अशोक विजयादशमी (सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धम्म स्वीकार किया गया दिवस), 14 अक्टूबर 1956 को दीक्षाभूमि, नागपूर में सविता आम्बेडकर ने पती भीमराव आम्बेडकर के साथ बौद्ध धम्म का स्वीकार किया। उन्हें म्यान्मार के भिक्खु महास्थवीर चंद्रमणी ने त्रिशरण व पंचशील देते हुए बौद्ध धम्म की दीक्षा दिलाई थी। इसके बाद डॉ आम्बेडकर ने खुद अपने ५,००,००० अनुयायीयों को त्रिशरण, पंचशील एवं बाईस प्रतिज्ञाएँ देकर बौद्ध धम्म की दीक्षा दिलाई। यह शपथग्रहण सुबह ९ बजे हुआ। सविता आम्बेडकर इस धर्मांतर आंदोलन की बौद्ध धम्म कबूल करनेवाली प्रथम महिला बनी।[४]
आरोप एवं खंडन[सम्पादन]
दिल्ली के 26, अलीपुर रोड, जहाँ आम्बेडकर रहे, वहां लोग बड़ी संख्या में उनसे मिलने आते थे। यह संभव एवं जरूरी नहीं था कि सभी से आम्बेडकर मिल लें। क्योंकि आम्बेडकर तब बिमार रहते। इसलिए हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति नाराज रहता था और इसके लिए वह सविता जी को ही दोष देता था। उनसे भी अधिक उनकी जाति को। एक दूसरे से दूसरा तीसरे से, इस तरह बात जहाँ से शुरू होती थी अंत भी वहीं होता था। यानी एक ब्राह्मणी ने बाबासाहेब को अपने चंगुल में रखा हुआ है। जबकि सविता जी पर एक पत्नी के अलावा डॉक्टर की भी दोहरी जिम्मेदारी थी।
भीमराव आम्बेडकर के निधन के बाद कुछ आम्बेडकरवादियों ने उनकी की हत्या करने का आरोप सविता जी पर लगाया। उन्हें ब्राह्मण बताकर आम्बेडकर आंदोलन से अलग कर दिया गया। उन्होंने खुद को दिल्ली में अपने मेहरौली स्थित फार्महाउस तक समेट लिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, और उस कमेटी ने जांच के बाद सविता जी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।[५]
दलित आंदोलन से पुनर्जुड़ाव[सम्पादन]
भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के नेता रामदास आठवले और गंगाधर गाडे उन्हें दोबारा आम्बेडकरवादी आंदोलन की मुख्यधारा में लौटा लाए। अधिक उम्र बढ़ने पर वह बाद में इससे अलग हो गईं। भीमराव आम्बेडकर को दिया गया ‘भारतरत्न’ यह सर्वोच्च नागरी पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण इनके हातों से स्वीकार करती हुई डॉ. सविता तथा माईसाहेब आम्बेडकर. १४ अप्रैल १९९० यह उनका शताब्धी जयंती दिवस था. यह पुरस्कार समारोह राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल/अशोक हॉल में संपन्न हुआ।
लेखन[सम्पादन]
उन्होंने आम्बेडकर पर डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात (हिंदी: 'डॉ. आम्बेडकर के सम्पर्क में') नामक संस्मरणात्मक एवं आत्मकथात्मक मराठी पुस्तक लिखी। उन्होंने आम्बेडकर पर बनी फिल्म डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर में भी योगदान दिया।
निधन[सम्पादन]
पति के निधनोपरांत सविता एकाकी हो गईं। बाद में वे कुछ समय तक दलित आंदोलन से पुनः जुड़ीं। 19 अप्रैल, 2003 को उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई तो इलाज के लिए जे.जे. हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। उनका 29 मई 2003 को 94 साल की उम्र में मुंबई के जेजे अस्पताल में निधन हो गया।[६]
आम्बेडकर पर किताबें[सम्पादन]
- बाबासाहेबांची सावली: डॉ. सविता आम्बेडकर (माईसाहेब) — लेखिका: प्रा. कीर्तिलता रामभाऊ पेटकर, २०१६ [मराठी किताब]
- माईसाहेबांचे अग्निदिव्य — लेखक: प्रा. पी.व्ही. सुखदेवे [मराठी किताब]
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
संदर्भ[सम्पादन]
- ↑ www.google.co.in/amp/s/dalitnation.wordpress.com/2007/12/14/why-babasaheb-married-a-brahmin/amp/
- ↑ जानिये, बाबा साहेब अंबेडकर के दूसरे विवाह पर क्यों फैली थी नाराजगी:पत्रिका हिंदी
- ↑ सोहन लाल शास्त्री अपनी पुस्तक ”बाबा साहेब डॉ. बी आर आंबेडकर के सम्पर्क में पच्चीस वर्ष”
- ↑ http://divyamarathi.bhaskar.com/article/EDT-babasaheb-ambedkar-column-2481860.html
- ↑ https://www.loksatta.com/lekha-news/the-buddha-and-his-dhamma-dr-b-r-ambedkar-1594868/
- ↑ http://www.thehindu.com/2003/05/30/stories/2003053002081300.htm
बाहरी कडीयाँ[सम्पादन]
- [१]
- माई
- Vijay Surwade living encyclopedia Ambedkarism
- बाबासाहेबांनी घातली होती सविता यांना मागणी, असा झाला डॉ. आम्बेडकरांचा दुसरा विवाह
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