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सुमेल-गिरी का युद्ध

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पृष्ठभूमि[सम्पादन]

सुमेल-गिरी का युद्ध ५ जनवरी, १५४४ ई. को जोधपुर-मारवाड़ के शासक राव मालदेव के सेनानायक जैता व कूँपा राठौड़ के नेतृत्व में आठ हजार वीर योद्धा व अफगान शासक शेरशाह सूरी की अस्सी हजार की विशाल सेना के बीच सुमेल-गिरी स्थान पर लड़ा गया था। इस युद्ध में बोरवाड़ (मगरांचल) के शासक नरा चौहान (नाहरसिंह) के नेतृत्व में तीन हजार राजपूत सैनिकों के नेतृत्व में युद्ध में अद्वितीय योगदान दिया।

प्रस्तावना[सम्पादन]

शेरशाह सूरी को "एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मजबूर करने वाले मारवाड़ के रण बांकुरो के शौर्य की साक्षी रही सुमेल-गिरी रणभूमि इतिहास के पन्नों में अपने गौरव के लिए जानी जाती है। सन् १५३१ ई. में राव मालदेव राठौड़ मारवाड़ के शासक बने। वे अपने समय के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे‌। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार नागौर, मेड़ता, अजमेर, जालोर, सिवाणा, भाद्राजून, बीकानेर तक किया। मुगल शासक हुमायूं शेरशाह सूरी से हारने के बाद इनकी सहायता लेने के उद्देश्य से १५४२ ई. में मारवाड़ आया, राव मालदेव ने उसे सहायता देने का वचन दिया। राव मालदेव के साम्राज्य विस्तार और हुमायूं का साथ देने से दिल्ली का अफगान शासक शेरशाह काफी चितिंत था। मारवाड़ की शक्ति को नष्ट करने की दृष्टि से शेरशाह ने १५४३ ई. में ८० हजार सैनिकों की एक विशाल सेना लेकर फतेहपुर मेड़ता होते हुए सुमेल आ पहुंचा। इधर सूचना मिलते ही मालदेव भी अपने सैनिकों के साथ गिरी आ पहुंचे और पीपाड़ को संचालन केंद्र बनाया। इसी दौरान इस क्षेत्र के नरा चौहान के नेतृत्व स्थानीय लोग भी मालदेव की सहायता हेतु आ डंटे। रोजाना दोनों सेनाओं में छुट-पुट लड़ाई होती, जिसमें शेरशाह की सेना का नुकसान होता। कई दिनों की अनिर्णीत लडा़इयों से शेरशाह तंग आ गया और उसने छुट-पुट लड़ाइयां बन्द कर दी। इस तरह कई दिनों तक सेनाएं आमने-सामने पडी़ रही। शेरशाह के अनिर्णय की स्थिति मे लौट पाना भी असंभव था,ऐसी स्थिति में उसने छल कपट का सहारा लिया। शेरशाह सूरी ने मालदेव के सरदारों में फिरोजशाही मोहरें भिजवाई और नई ढालों के अंदर शेरशाह के फरमानों को सिलवा दिया था, उनमें लिखा था कि सरदार मालदेव को बंदी बनाकर शेरशाह को सौंप देंगे। यह जाली पत्र चालाकी से राव मालदेव के पास भी पहुंचा दिये थे। इससे राव मालदेव को अपने सरदारों पर सन्देह हो गया। राव मालदेव ने जोधपुर की सुरक्षा को देखते हुए युद्ध के लिए मना कर दिया और जैता व कूंपा को भी पीछे हटने का आदेश दिया, लेकिन दोनों ने पीछे हटने से इंकार कर दिया। फिर भी मालदेव नहीं माने और सारे सैनिक लेकर वापस जोधपुर चले गए। इस तरह मारवाड़ की सेना बिखर गई।

सेना का गठन[सम्पादन]

अब केवल जैता व कूंपा के साथ बहुत कम सैनिक रह गए। ऐसी परिस्थिति में मगरे के नरा चौहान अपने नेतृत्व में ३००० सैनिकों को लेकर जैता व कूंपा के सहयोग के लिए आगे आये।

युद्ध[सम्पादन]

जोशभरे पराक्रम के साथ राव जैता, राव कूंपा, राव नरा चौहान, राव लखा चौहान, राव अखैराज देवडा़, राव पंचायण, राव खींवकरण, राव सूजा,मान चारण, अलदाद कायमखानी सहित अग्रणी सैनिकों के नेतृत्व में लगभग ८००० सैनिकों ने शेरशाह की ८० हजार सैनिकों की भारी भरकम सेना का डटकर मुकाबला किया और ऐसा भीषण संहार किया, जिससे शेरशाह की सेना में भगदड़ मच गई। वे शेरशाह की तरफ बढ़ने लगे जिस पर एक पठान ने शेरशाह को मैदान छोड़ जाने को कहा, लेकिन तुरन्त ही खवास खां व जलाल खां ने असंख्य सैनिकों के साथ दायीं और बायीं ओर घेरा बना लिया। इस घेरे में जैता राठौड़, कूंपा राठौड़, नरा चौहान व अनेक सरदार तलवारों से आखिरी सांस तक संघर्ष करते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार ८ हजार सैनिकों ने ८० हजार सैनिकों को इतनी भीषण टक्कर दी कि शेरशाह बहुत ही मुश्किल से यह युद्ध जीत पाया। इस युद्ध मे़ं सामंतों की वीरता को देखकर शहंशाह सूरी को ये कहना पडा़ कि " एक मुट्ठी बाजरे के लिए वह दिल्ली की सल्तनत खो देता।" यह पहला युद्ध ऐसा था, जिसमें साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं हिंदुत्व की रक्षार्थ हेतु लड़ा गया। इस एक दिन के युद्ध में चालीस हजार से अधिक सैनिक शहीद हुए। हिंदूत्व रक्षार्थ हेतु गिरी सुमेल रणस्थली पर अनेक पराक्रमी शूरवीर रणखेत रहे जिसमें —— १.कूंपा मेहराजोत अखैराजोत २.जेता पंचायणोत अखैराजोत ३.भदा पंचायणोत अखैराजोत ४.भोमराज पंचायणोत अखैराजोत ५.उदय जैतावत पंचायणोत ६.रायमल अखैराजोत ७. जोगा रावलोत अखैराजोत ८.पता कानावत अखैराजोत ९.वेैरसी राणावत अखैराजोत १०.हमीर सिंहावत अखैराजोत ११.सूरा अखैराजोत १२.रायमल अखैराजोत १३. राणा अखैराजोत १४.खींवकरण उदावत १५.जैतसी उदावत १६.पंचायण करमसोत १७.नीबो आणदोत १८.बीदा भारमलोत १९.सुरताण डूंगरोत २०.वीदा डूंगरोत २१.जयमल डूंगरोत २२.कला कान्हावत २३.भारमल बालावत २४.भवानीदास राठौड़ २५.हरपाल राठौड़ २६.रामसिंह ऊहड़ २७.सुरजन ऊहड़ २८.राव नरा चौहान(३०००सैनिकों का योगदान) २९.राव लखा चौहान ३०.(भोजराज अखैराज सोनगरा ३१.अखैराज सोनगरा सहित २२ सोनगरा काम आये) ३२.अखैराज देवडा़ ३३.भाटी पंचायण जोधावत ३४.भाटी सूरा पर्वतोत ३५.भाटी जेसा लवेरा ३६.भाटी महरा अचलावत ३७.भाटी माघा राघोत ३८.भाटी साकर सुरावत ३९.भाटी गांगा वरजांगोत ४०.इंदा किशनसिंह ४१.हेमा नरावत ४२.सोढा़ नाथा देदावत ४३.धनराज सांखला ४४.डूंगरसिंह सांखला ४५.चारण मान खेतावत ४६.लुबां ४७.पठान अलदाद खां । लगभग ८ हजार वीरगति को प्राप्त योद्धाओं (राठौड़, सोनगरा, भाटी,मगरे के चौहान, देवडा़, इंदा, सांखला, मांगलिया व सोढा़ राजपूत सहित कई क्षत्रियों ने भी अपना बलिदान दिया)


सन्दर्भ[सम्पादन]

https://hindi.livehistoryindia.com/amazing-india/2020/01/05/sumel-giri https://satyagrah.scroll.in/article/132491/rao-maldev-rathore-marwar-raja-itihas-ahamiyat https://hi.quora.com/मुठ्ठी-भर-बाजरे-के-लिए-मैं https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/206940/12/12_chapter%207.pdf https://web.archive.org/web/20190502131708/http://humarabharat.com/%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9-%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%A4/

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