अहीर (आभीर) वंश के राजा, सरदार व कुलीन प्रशासक
यादव और अहीर अलग-अलग कुल हैं[सम्पादन]
- यादव-प्राण-कार्ये च शक्राद अभीर-रक्शिणे।
- गुरु-मातृ-द्विजानां च पुत्र- दात्रे नमो नमः।।
(Garga Samhita 6:10:16)
Translation: जिन्होंने यादवों की रक्षा की, जिन्होंने राजा इंद्र से अहीरों की भी रक्षा की और अपनी माता, गुरु और ब्राह्मण को उनके खोए हुए बेटों को वापस दिलाया, मैं आपको आदरणीय प्रणाम करता हूँ।
- अन्ध्रा हूनाः किराताश् च पुलिन्दाः पुक्कशास् तथा
- अभीरा यवनाः कङ्काः खशाद्याः पाप-योणयः
(Sanatakumara Sahmita - Sloka 39)
Translation : अंध्र, हुण, किरात, पुलिंद, पुक्कश, अहीर, यवन, कंक, खस और सभी अन्य पापयोनि से उत्पन्न होने वाले भी मंत्र जप के लिए योग्य हैं।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
- कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥ (Ramcharitmanas 7:130)
Translation अहीर, यवन, किरात, खस, श्वपच (चाण्डाल) आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥
- किरात- हूणान्ध्र- पुलिन्द-पुक्कश आभीर- कङ्क यवनाः खशादयाः।
- येन्ये च पापा यद्-अपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः।।
(Srimad Bhagavatam 2:4:18)
Translation: किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, अहीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ॥
- ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
- आभीरोऽम्बष्ठकन्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ॥ १५ ॥
(Manusmriti 10:15)
Translation: उग्र कन्या (क्षत्रिय से शूद्रा में उत्पन्न कन्या को उग्रा कहते हैं) में ब्राह्मण से उत्पन्न बालक को आवृत, अम्बष्ठ (ब्राह्मण से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) कन्या में ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र अहीर और आयोगवी कन्या (शूद्र से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न पुत्र को धिग्वण कहते हैं।
- अन्त्यजा अपि नो कर्म यत्कुर्वन्ति विगर्हितम् आभीरा ।
- स्तच्च कुर्वति तत्किमेतत्त्वया कृतम् ॥ ३९ ॥
(Skanda Purana: Nagarkhand: Adhyaya 192 Sloka 39)
Translation: अन्यज जाति के लोग भी जो घृणित कर्म नहीं करते अहीर जाति के लोग वह कर्म करते हैं।
- आभीरैर्दस्युभिः सार्धं संगोऽभूदग्निशर्मणः ।
- आगच्छति पथा तेन यस्तं हंति स पापकृत् ॥ ७ ॥
(Skanda Puran: Khanda 5:Avanti Kshetra Mahatmyam : Adhyay 24: Sloka 7)
Translation : उस जंगल में अहीर जाति के कुछ लुटेरे रहते थे। उन्हीं के साथ अग्निशर्मण की संगति हो गयी। उसके बाद बन के मार्ग में आने वाले लोकों को वह पापी मारने लगा।
- उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः ।
- आभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३३ ॥
- तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः ।
- अमोघः क्रियतां राम अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३४ ॥
- तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः ।
- मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३५ ॥
(Valmiki Ramayan -Yudhkand: Sarg22: Shlok 33-35)
Translation : वहाँ अहीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सब-के-सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ॥ ३३ ॥ उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं नहीं सह सकता। श्रीराम ! आप अपने इस उत्तम बाण को वहीं सफल कीजिये ॥ ३४ ॥ महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दिखाये अनुसार उसी देश में श्रीरामचन्द्रजी ने वह अत्यन्त प्रज्वलित बाण छोड़ दिया ॥ ३५ ॥
- शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम्।
- वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिनः।। १०।।
(Mahabharata -Sabhaparva:Adhyay 35:Shlok 10)
Translation : सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले शूद्र अहीर गण थे। मत्यस्यगण के पास रहने वाले और पर्वतवासी इन सबको नकुल ने वश में कर लिया ।
यादव महिलाओं के साथ अहीरों ने किया बलात्कार[सम्पादन]
- ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतसः
- आभीरा मंत्रयामासः समेत्याशुभदर्शन का "
- प्रेक्षतस्तवेव पार्थस्य वृषणयन्धकवरस्त्रीय
- मुरादाय ते मल्लेछा समन्ताजज्नमेय् ।
(Mahabharata: Mausalparva: Adhyay 7 Shlok -47,63)
Translation: लोभ से उनकी विवेक शक्ति नष्ठ हो गयी, उन अशुभदर्शी पापाचारी अहीरो ने परस्पर मिलकर हमले की सलाह की। अर्जुन देखता ही रह गया, वह म्लेच्छ डाकू (अहीर) सब ओर से यदुवंशी - वृष्णिवंश और अन्धकवंश कि सुंदर स्त्रियों पर टूट पड़े।